भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा जारी 'बैंक दर' वह न्यूनतम ब्याज दर है जिस पर वह वाणिज्यिक बैंकों को बिना प्रतिभूति के दीर्घकालिक ऋण देता है। यह मौद्रिक नीति का एक महत्वपूर्ण उपकरण है जो अर्थव्यवस्था में धन की आपूर्ति, ब्याज दरों और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में सहायक होता है। हालांकि रेपो दर अधिक प्रमुख है, बैंक दर अंतिम उपाय के रूप में और नीतिगत बेंचमार्क के रूप में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखती है।
योजना आयोग और नीति आयोग दोनों ही भारत के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं, लेकिन उनके दृष्टिकोण और कार्यप्रणाली में अंतर है। योजना आयोग केंद्रीय नियोजन पर केंद्रित था जबकि नीति आयोग सहकारी संघवाद और नीतिगत सलाह पर ज़ोर देता है। नीति आयोग का उद्देश्य अधिक समावेशी और सहयोगी विकास मॉडल को बढ़ावा देना है।
1991 के उदारीकरण ने भारत की अर्थव्यवस्था को तेज़ी से बढ़ाया, लेकिन असमानता भी बढ़ाई। विदेशी निवेश बढ़ा और उपभोक्ताओं के लिए विकल्प बढ़े, लेकिन पर्यावरणीय क्षति और छोटे उद्योगों को नुकसान भी हुआ। संतुलित दृष्टिकोण आवश्यक है जो विकास के साथ सामाजिक न्याय और पर्यावरण संरक्षण को भी प्राथमिकता दे।