भारत छोड़ो आंदोलन 1942 में महात्मा गांधी के 'करो या मरो' के नारे के साथ शुरू हुआ, जिसका उद्देश्य तत्काल ब्रिटिश शासन को समाप्त करना था। क्रिप्स मिशन की विफलता और द्वितीय विश्व युद्ध में भारत की भागीदारी के विरोध में यह एक जन आंदोलन बन गया, जिसमें सभी वर्गों के लोगों ने भाग लिया। हालांकि इसे बलपूर्वक दबाया गया, इसने ब्रिटिश राज की नींव कमजोर कर दी और भारत की स्वतंत्रता की दिशा में एक निर्णायक कदम साबित हुआ।
भारत के इतिहास में कई महत्वपूर्ण युद्ध हुए जिनमें पानीपत के युद्ध, हल्दीघाटी का युद्ध, प्लासी का युद्ध और विश्व युद्ध शामिल हैं। इन युद्धों ने भारत के राजनीतिक परिदृश्य, सामाजिक संरचना और आर्थिक स्थिति को गहराई से प्रभावित किया। ये युद्ध भारत के इतिहास को समझने और उसके वर्तमान स्वरूप को जानने के लिए आवश्यक हैं।
द्वितीय विश्व युद्ध में भारत ने ब्रिटिश सेना के लिए लाखों सैनिकों और महत्वपूर्ण आर्थिक संसाधनों का योगदान दिया। हालांकि, भारत की स्वतंत्रता युद्ध में उसके योगदान का सीधा परिणाम नहीं थी, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम के लंबे संघर्ष का फल थी। भारत की युद्धकालीन भूमिका जटिल थी, जिसमें ब्रिटिश शासन के अधीन मजबूरी और स्वतंत्रता संग्राम का समन्वय शामिल था।
महात्मा गांधी के नेतृत्व और अहिंसा के सिद्धांतों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नया रूप दिया। असहयोग, सविनय अवज्ञा, और भारत छोड़ो आंदोलन जैसे आंदोलनों ने ब्रिटिश शासन को चुनौती दी और जनसमर्थन जुटाया। गांधीजी का योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अद्वितीय और अत्यंत महत्वपूर्ण रहा।