1991 के उदारीकरण ने भारत की अर्थव्यवस्था को तेज़ी से बढ़ाया, लेकिन असमानता भी बढ़ाई। विदेशी निवेश बढ़ा और उपभोक्ताओं के लिए विकल्प बढ़े, लेकिन पर्यावरणीय क्षति और छोटे उद्योगों को नुकसान भी हुआ। संतुलित दृष्टिकोण आवश्यक है जो विकास के साथ सामाजिक न्याय और पर्यावरण संरक्षण को भी प्राथमिकता दे।