Answer: जीन-पॉल सार्त्र
विश्व के इतिहास में अनेकों महान दार्शनिक हुए हैं जिन्होंने मानव जीवन, समाज और ब्रह्मांड के रहस्यों को समझने का प्रयास किया है। इनमें से कुछ ने अपने विचारों से पूरी दुनिया को प्रभावित किया और मानव सभ्यता के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। प्रत्येक दार्शनिक के विचार अलग-अलग थे, परन्तु सभी ने अपने तरीके से सत्य की खोज की। कुछ ने तर्क और तार्किकता पर जोर दिया, जबकि कुछ ने अनुभव और आध्यात्मिकता को महत्व दिया।
अस्तित्ववाद (एग्ज़िस्टेंशियलिज़्म), 20वीं सदी के एक प्रमुख दार्शनिक विचारधारा है जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता, जिम्मेदारी और मानवीय अस्तित्व के अर्थ पर केंद्रित है। इस दर्शन ने मानव अस्तित्व की अनिश्चितता और स्वतंत्रता को स्वीकार किया। अस्तित्ववादियों के अनुसार, मनुष्य अपने अस्तित्व को स्वयं बनाता है, और उसका कोई पूर्व निर्धारित सार नहीं होता। यह स्वतंत्रता एक बोझ भी बन सकती है, क्योंकि इसके साथ ही व्यक्ति अपनी पसंद के परिणामों के लिए भी ज़िम्मेदार होता है।
जीन-पॉल सार्त्र, अल्बर्ट कैमुस, और सिमोने द बोवोयर जैसे दार्शनिक इस दर्शन के प्रमुख प्रवक्ता थे। सार्त्र ने अपनी कृति 'बीइंग एंड नथिंगनेस' में अस्तित्ववाद के सिद्धांतों को विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि मनुष्य 'अपने अस्तित्व से पहले है' अर्थात पहले उसके अस्तित्व का कोई सार या निश्चित रूप नहीं होता, वह अपने कार्यों और विकल्पों से अपना सार स्वयं बनाता है।
अल्बर्ट कैमुस ने 'द मिथ ऑफ़ सिज़िफ़स' में अस्तित्ववादी विद्रोह और व्यर्थता के विचारों को प्रस्तुत किया। उन्होंने तर्क दिया कि जीवन मूलतः व्यर्थ है, लेकिन मनुष्य इस व्यर्थता के प्रति विद्रोह कर सकता है और जीवन में अर्थ खोज सकता है। सिमोने द बोवोयर ने महिलाओं के अस्तित्व और उनके सामाजिक-सांस्कृतिक दमन पर अस्तित्ववादी दृष्टिकोण से विचार किया।
अस्तित्ववाद का प्रभाव साहित्य, कला और राजनीति पर भी व्यापक रूप से पड़ा है। इस दर्शन ने व्यक्ति की स्वतंत्रता और जिम्मेदारी पर बल दिया, जिससे लोगों में अपने जीवन के प्रति जागरूकता बढ़ी। यह दर्शन आधुनिक दुनिया की चुनौतियों से जूझने और जीवन के अर्थ को खोजने में मदद करता है। यह दर्शन केवल दार्शनिक चर्चा का विषय नहीं है, बल्कि यह हमारे दैनिक जीवन से भी जुड़ा हुआ है। हर व्यक्ति को अपने जीवन के प्रति चुनाव करने और उसके परिणामों को स्वीकार करने की ज़िम्मेदारी है।
अस्तित्ववाद केवल एक दर्शन नहीं है, बल्कि एक जीवन दर्शन है जो प्रत्येक व्यक्ति को अपने अस्तित्व को स्वयं निर्मित करने की स्वतंत्रता और जिम्मेदारी देता है। यह एक जटिल और चुनौतीपूर्ण दर्शन है, लेकिन यह हमें अपने जीवन और दुनिया को गहराई से समझने में मदद करता है। यह दर्शन हमें यह भी सिखाता है कि हमारी पसंद और कार्य भविष्य को कैसे आकार देते हैं। अस्तित्ववाद की अवधारणाओं को समझना, आधुनिक समय में बेहतर जीवन जीने के लिए बेहद ज़रूरी है।
अस्तित्ववाद के प्रभाव को समझने के लिए, हमें अन्य दार्शनिक विचारधाराओं जैसे कि नीतिशास्त्र, राजनीतिक दर्शन, और मनोविज्ञान के साथ इसके संबंधों पर भी विचार करना होगा। यह एक बहुआयामी दर्शन है जिसके कई पहलू हैं, और इसका अध्ययन हमें अपने अस्तित्व और दुनिया के बारे में गहरी समझ प्रदान करता है। इसके विचारों को समझने से हमें आत्म-जागरूकता और जिम्मेदारी का बोध होता है।
अंततः, अस्तित्ववाद हमसे एक गहरा सवाल पूछता है: क्या हम अपने अस्तित्व को सार्थक बनाने के लिए ज़िम्मेदार हैं, और यदि हाँ, तो हम ऐसा कैसे करते हैं?