Answer: वे राष्ट्राध्यक्षों/शासनाध्यक्षों के व्यक्तिगत प्रतिनिधि होते हैं जो शिखर सम्मेलन के एजेंडे को तैयार करने, मुख्य मुद्दों पर बातचीत करने, आम सहमति बनाने और अंतिम घोषणापत्र का मसौदा तैयार करने के लिए जिम्मेदार होते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति और बहुपक्षीय मंचों में 'शेरपा ट्रैक' एक विशिष्ट और अत्यंत महत्वपूर्ण अवधारणा है। यह एक ऐसा मंच है जहाँ विभिन्न देशों के राष्ट्राध्यक्षों या शासनाध्यक्षों के व्यक्तिगत प्रतिनिधि, जिन्हें 'शेरपा' कहा जाता है, उच्च-स्तरीय शिखर सम्मेलनों की आधारशिला रखते हैं। G7, G20 जैसे प्रमुख वैश्विक मंचों पर होने वाले निर्णयों और घोषणाओं के पीछे इन्हीं शेरपाओं का अथक परिश्रम और गहन कूटनीतिक कौशल छिपा होता है। आम जनता के लिए अक्सर अदृश्य रहने वाला यह ट्रैक, वैश्विक शासन और सहयोग के जटिल ताने-बाने को बुनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से जटिल वैश्विक मुद्दों पर आम सहमति बनाई जाती है, और राष्ट्राध्यक्षों के लिए अंतिम राजनीतिक निर्णय लेने का मार्ग प्रशस्त किया जाता है।
'शेरपा' शब्द का उपयोग हिमालयी क्षेत्र के शेरपा समुदाय से लिया गया है, जो अपनी पर्वतारोहण विशेषज्ञता, दृढ़ता और पर्वतारोहियों को ऊंचे पहाड़ों की चोटियों तक सुरक्षित पहुँचाने की क्षमता के लिए जाने जाते हैं। ठीक इसी तरह, अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में 'शेरपा' राष्ट्राध्यक्षों को जटिल वैश्विक चुनौतियों के 'शिखर' तक पहुँचने और सफलतापूर्वक उनका समाधान करने में मदद करते हैं। वे एक मार्गदर्शक, वाहक और मध्यस्थ की भूमिका निभाते हैं, जो रास्ते की बाधाओं को दूर करते हैं और नेताओं के लिए अंतिम निर्णय लेना आसान बनाते हैं। यह समानता केवल शब्द के चुनाव तक सीमित नहीं है, बल्कि उस भावना और कार्यप्रणाली को भी दर्शाती है जिसमें ये कूटनीतिक प्रतिनिधि काम करते हैं।
G7 और G20 जैसे प्रमुख आर्थिक और राजनीतिक मंचों के शिखर सम्मेलन केवल कुछ दिनों के औपचारिक कार्यक्रम नहीं होते, बल्कि ये महीनों की गहन तैयारी और बातचीत का परिणाम होते हैं। शेरपा ही होते हैं जो इस पूरी प्रक्रिया का नेतृत्व करते हैं। उनका मुख्य कार्य शिखर सम्मेलन के एजेंडे को तैयार करना है, जिसमें यह तय किया जाता है कि कौन से मुद्दे चर्चा के लिए उठाए जाएंगे। वे मेजबान देश के शेरपा के साथ मिलकर काम करते हैं, जो एजेंडा का प्रारंभिक मसौदा तैयार करता है और अन्य देशों के शेरपाओं के इनपुट को शामिल करता है। इस प्रक्रिया में वैश्विक अर्थव्यवस्था, जलवायु परिवर्तन, सतत विकास, स्वास्थ्य, ऊर्जा और डिजिटल परिवर्तन जैसे विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित मुद्दे शामिल होते हैं।
एक बार जब एजेंडा तय हो जाता है, तो शेरपाओं की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका बातचीत और आम सहमति बनाने में शुरू होती है। वे अपने संबंधित राष्ट्राध्यक्षों के विचारों, हितों और प्राथमिकताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। बहुपक्षीय मंचों पर, अक्सर सदस्य देशों के हितों में टकराव होता है, और ऐसे में आम सहमति तक पहुंचना एक कठिन कार्य होता है। शेरपा इन मतभेदों को पाटने, रचनात्मक समाधान खोजने और सभी पक्षों के लिए स्वीकार्य समझौतों पर पहुंचने के लिए अथक प्रयास करते हैं। ये बैठकें अक्सर गोपनीय होती हैं, जिससे प्रतिनिधियों को अधिक खुलकर और लचीले ढंग से बातचीत करने का अवसर मिलता है। वे विभिन्न मंत्रालयों और सरकारी विभागों के विशेषज्ञों से भी सलाह लेते हैं ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उनकी स्थिति अच्छी तरह से सूचित और सुदृढ़ है।
शिखर सम्मेलन के अंत में जारी किया जाने वाला 'घोषणापत्र' (Communiqué) या 'नेताओं की घोषणा' (Leaders' Declaration) शेरपा ट्रैक के काम का सबसे मूर्त परिणाम होता है। यह दस्तावेज़ उन प्रतिबद्धताओं और निर्णयों को रेखांकित करता है जिन पर राष्ट्राध्यक्ष सहमत हुए हैं। शेरपा ही होते हैं जो इस घोषणापत्र के हर शब्द, हर वाक्य और हर पैराग्राफ का मसौदा तैयार करने, उसे संशोधित करने और उस पर बातचीत करने में लगे रहते हैं। यह एक अत्यंत संवेदनशील और विवरण-उन्मुख कार्य है, क्योंकि प्रत्येक शब्द का अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और भविष्य की नीतियों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है। वे यह सुनिश्चित करते हैं कि दस्तावेज़ सभी सदस्य देशों की चिंताओं को दर्शाता है और भविष्य की कार्रवाई के लिए एक स्पष्ट रोडमैप प्रदान करता है।
शेरपा ट्रैक की एक प्राथमिक महत्ता यह है कि यह राष्ट्राध्यक्षों को जटिल विवरणों और तकनीकी विशिष्टताओं में उलझे बिना महत्वपूर्ण राजनीतिक निर्णय लेने की सुविधा प्रदान करता है। जब नेता शिखर सम्मेलन में मिलते हैं, तो उन्हें पहले से ही एक सुविचारित और बातचीत के माध्यम से तैयार किया गया एजेंडा और घोषणापत्र का मसौदा मिलता है। इससे वे बड़े रणनीतिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर पाते हैं और कम समय में महत्वपूर्ण निर्णय ले पाते हैं। शेरपा नेताओं के राजनीतिक संदेशों और प्राथमिकताओं को तकनीकी भाषा में अनुवादित करते हैं और फिर उन्हें नीतिगत सिफारिशों में बदलते हैं, जिससे सर्वोच्च स्तर पर निर्णय लेने की प्रक्रिया सुगम हो जाती है।
अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में, सरकारों और नेताओं के बदलने के साथ नीतियों में बदलाव आ सकता है। शेरपा ट्रैक निरंतरता सुनिश्चित करने में मदद करता है। चूंकि एक शेरपा अक्सर कई शिखर सम्मेलनों में अपने देश का प्रतिनिधित्व करता है, वे संस्थागत स्मृति बनाए रखते हैं और पिछली प्रतिबद्धताओं और चल रही वार्ताओं की गहरी समझ रखते हैं। इसके अतिरिक्त, शेरपा आपस में व्यक्तिगत संबंध विकसित करते हैं, जो कठिन वार्ताओं के दौरान विश्वास और लचीलापन बनाने में अमूल्य साबित होते हैं। ये व्यक्तिगत संबंध अनौपचारिक संचार चैनलों को खोलते हैं, जिससे संकट के समय भी बातचीत जारी रह सकती है और संभावित गतिरोध को टाला जा सकता है।
शेरपाओं का काम चुनौतियों से भरा होता है। उन्हें अक्सर कई हितधारकों - अपने स्वयं के मंत्रालयों, अन्य देशों के प्रतिनिधियों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और कभी-कभी निजी क्षेत्र के दबावों का सामना करना पड़ता है। समय की कमी, गोपनीय जानकारी को बनाए रखने की आवश्यकता, और तीव्र राजनीतिक संवेदनशीलता के बीच संतुलन बनाना उनके लिए एक सामान्य चुनौती है। उन्हें अपने देश के राष्ट्रीय हितों को मजबूत ढंग से आगे बढ़ाना होता है, जबकि साथ ही बहुपक्षीय सहयोग के लिए समझौता करने की इच्छा भी दिखानी पड़ती है। इसके अलावा, वैश्विक भू-राजनीतिक परिवर्तनों और अचानक उत्पन्न होने वाले संकटों के प्रति उन्हें लचीला और त्वरित प्रतिक्रिया देने में सक्षम होना पड़ता है, जिससे उनका काम और भी जटिल हो जाता है।
हाल के वर्षों में, G20 जैसे मंचों पर भारत की भूमिका तेजी से महत्वपूर्ण हुई है। भारत ने वैश्विक दक्षिण की चिंताओं को उठाने और समावेशी विकास को बढ़ावा देने में अग्रणी भूमिका निभाई है। भारत के शेरपाओं ने इन वार्ताओं में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, यह सुनिश्चित करते हुए कि भारत की प्राथमिकताएं - जैसे डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढाँचा, जलवायु वित्त, खाद्य सुरक्षा और स्वास्थ्य देखभाल - वैश्विक एजेंडे में प्रमुखता से शामिल हों। भारत की अध्यक्षता के दौरान, भारतीय शेरपा ने विभिन्न देशों के बीच समन्वय स्थापित करने और आम सहमति तक पहुंचने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसके परिणामस्वरूप कई महत्वपूर्ण घोषणाएं हुईं। उनका कार्य न केवल भारत के हितों को बढ़ावा देता है बल्कि वैश्विक चुनौतियों के समाधान में भी योगदान देता है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि 'शेरपा ट्रैक' G20 जैसे मंचों में एकमात्र ट्रैक नहीं है। 'वित्त ट्रैक' भी होता है, जहां सदस्य देशों के वित्त मंत्री और केंद्रीय बैंक के गवर्नर वैश्विक आर्थिक और वित्तीय मुद्दों पर चर्चा करते हैं। शेरपा ट्रैक और वित्त ट्रैक समानांतर रूप से चलते हैं और अक्सर एक-दूसरे से इनपुट लेते हैं। जबकि वित्त ट्रैक मुख्य रूप से आर्थिक और वित्तीय नीतियों पर केंद्रित होता है, शेरपा ट्रैक व्यापक नीतिगत मुद्दों और राजनीतिक घोषणाओं को शामिल करता है। इसके अलावा, विभिन्न कार्य समूह (Working Groups) और एंगेजमेंट समूह (Engagement Groups) भी होते हैं जो विशिष्ट विषयों पर काम करते हैं और अपनी सिफारिशें शेरपा ट्रैक को भेजते हैं, जिससे समग्र प्रक्रिया अधिक प्रभावी बनती है।
संक्षेप में, 'शेरपा ट्रैक' अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति की एक अदृश्य रीढ़ है, जो उच्च-स्तरीय वैश्विक सहयोग और निर्णय लेने को संभव बनाता है। वे जटिल मुद्दों को सुलझाने, विभिन्न राष्ट्रीय हितों के बीच संतुलन बनाने और राष्ट्राध्यक्षों के लिए आम सहमति तक पहुंचने का मार्ग प्रशस्त करने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनका काम अक्सर सुर्खियों से दूर रहता है, लेकिन इसके बिना आधुनिक बहुपक्षीय शिखर सम्मेलन शायद ही सफल हो पाते। उनकी भूमिका केवल दस्तावेज़ों का मसौदा तैयार करने से कहीं बढ़कर है; यह विश्वास, समझ और साझा उद्देश्यों के निर्माण के बारे में है जो एक साथ काम करने वाले विविध राष्ट्रों के बीच आवश्यक हैं। क्या बढ़ती भू-राजनीतिक ध्रुवीकरण और राष्ट्रीय हितों के टकराव के युग में शेरपा ट्रैक की क्षमता और प्रभावशीलता पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गई है?