Answer: सितार
पंडित रविशंकर, एक नाम जो भारतीय शास्त्रीय संगीत का पर्याय बन गया है, एक ऐसे संगीतकार थे जिन्होंने न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में भारतीय संगीत की गरिमा को बढ़ाया। उनका जन्म 7 अप्रैल 1920 को वाराणसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था। रविशंकर का प्रारंभिक जीवन संगीत की दुनिया से सीधे तौर पर जुड़ा नहीं था। वे मूल रूप से एक नर्तक बनना चाहते थे और युवावस्था में उन्होंने अपने भाई उदय शंकर के नृत्य मंडली के साथ यूरोप और अमेरिका का दौरा किया। इस यात्रा के दौरान, उन्होंने पश्चिमी संगीत और संस्कृति से परिचय प्राप्त किया, जिसने बाद में उनके संगीत पर गहरा प्रभाव डाला।
1930 के दशक के अंत में, रविशंकर ने नृत्य छोड़ दिया और संगीत की ओर अपना ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने मैहर में प्रसिद्ध सरोद वादक उस्ताद अलाउद्दीन खान के सानिध्य में शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लेनी शुरू की। उस्ताद अलाउद्दीन खान, जिन्हें 'भारतीय शास्त्रीय संगीत का भीष्म पितामह' कहा जाता है, ने रविशंकर को गुरु-शिष्य परंपरा के तहत संगीत की गहन शिक्षा दी। इस दौरान, रविशंकर ने सरोद बजाना सीखा, लेकिन जल्द ही उनका रुझान सितार की ओर अधिक हुआ। सितार के नाज़ुक और अभिव्यंजक ध्वनि ने उन्हें विशेष रूप से आकर्षित किया।
सितार पर अपनी असाधारण पकड़ और नवीनता के साथ, पंडित रविशंकर ने भारतीय शास्त्रीय संगीत को एक नई दिशा दी। उन्होंने रागों (पारंपरिक भारतीय धुनें) की जटिलताओं को सूक्ष्मता से समझा और उन्हें अपनी अनूठी शैली में प्रस्तुत किया। उनकी संगीत रचनाओं में पारंपरिक भारतीय संगीत की आत्मा तो थी ही, साथ ही उनमें एक आधुनिकता का स्पर्श भी था, जिसने इसे पश्चिमी श्रोताओं के लिए भी सुलभ बनाया। रविशंकर ने न केवल एकल प्रदर्शनों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया, बल्कि उन्होंने विभिन्न संगीतकारों के साथ मिलकर भी प्रयोग किए, जिसने विश्व संगीत के क्षेत्र में नए द्वार खोले।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पंडित रविशंकर की प्रसिद्धि का सबसे बड़ा श्रेय जॉर्ज हैरिसन को जाता है, जो द बीटल्स के गिटारवादक थे। हैरिसन 1960 के दशक में भारत आए और पंडित रविशंकर के संगीत से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उनसे सितार सीखना शुरू कर दिया। हैरिसन के माध्यम से, भारतीय शास्त्रीय संगीत और सितार की ध्वनि पश्चिमी दुनिया के युवाओं के बीच लोकप्रिय हुई। 'नॉर्वेजियन वुड' जैसे बीटल्स के गीतों में सितार का प्रयोग इसी प्रभाव का परिणाम था। हैरिसन और रविशंकर की मित्रता संगीत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जिसने पूर्व और पश्चिम के बीच सांस्कृतिक पुल का निर्माण किया।
पंडित रविशंकर ने कई अन्य पश्चिमी संगीतकारों और समूहों के साथ भी सहयोग किया, जिनमें यो-यो मा (सेलो वादक) और फिलिप ग्लास (संगीतकार) शामिल हैं। उन्होंने फिल्म संगीत में भी अपना योगदान दिया, जिसमें सत्यजीत रे की 'अपू त्रयी' (Pather Panchali, Aparajito, Apur Sansar) और डेविड लीन की 'गाइड' (Gandhi) जैसे प्रतिष्ठित फिल्मों के लिए संगीत शामिल है। उनकी रचनाओं ने न केवल भारतीय सिनेमा को समृद्ध किया, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारतीय संगीत की पहचान को बढ़ाया।
अपने संगीत के माध्यम से, पंडित रविशंकर ने दुनिया को भारतीय संस्कृति की गहराई और जटिलता से परिचित कराया। उन्होंने कई सम्मान और पुरस्कार प्राप्त किए, जिनमें भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' (1999) भी शामिल है। उन्हें पांच ग्रैमी पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया, जो किसी भी भारतीय संगीतकार के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी। उनके संगीत ने पीढ़ियों को प्रेरित किया है और आज भी अनगिनत संगीतकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है।
पंडित रविशंकर का निधन 11 दिसंबर 2012 को हुआ, लेकिन उनकी विरासत आज भी जीवित है। उनके पुत्र, अनुष्का शंकर, भी एक कुशल सितार वादक हैं और अपनी पिता की विरासत को आगे बढ़ा रही हैं। रविशंकर का संगीत सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं था, बल्कि यह आत्मा को शांति देने वाला, चेतना को जागृत करने वाला और विभिन्न संस्कृतियों को जोड़ने वाला एक माध्यम था। उन्होंने साबित किया कि संगीत की कोई सीमा नहीं होती और यह दिलों को जोड़ने की सबसे शक्तिशाली भाषा है।
पंडित रविशंकर की संगीत यात्रा भारतीय शास्त्रीय संगीत के इतिहास में एक मील का पत्थर है। उन्होंने सितार को एक एकल वाद्य यंत्र से आगे बढ़कर एक वैश्विक मंच पर स्थापित किया। उनकी रचनाओं में भारतीय रागों की आत्मा, उनके वादन की उत्कृष्ट तकनीक और विभिन्न संस्कृतियों के साथ उनके सामंजस्यपूर्ण प्रयोग का संगम मिलता है। उन्होंने न केवल भारत में बल्कि विश्व भर में लाखों लोगों के दिलों को छुआ और भारतीय संगीत की समृद्ध परंपरा को अनमोल योगदान दिया। उनकी शिक्षाएं और संगीत आज भी संगीत के विद्यार्थियों और प्रेमियों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।
सितार के साथ पंडित रविशंकर का संबंध केवल एक वादक और वाद्य यंत्र का नहीं था, बल्कि यह एक गहरा आध्यात्मिक जुड़ाव था। उन्होंने सितार के माध्यम से अपनी भावनाओं, विचारों और ब्रह्मांड के प्रति अपनी समझ को व्यक्त किया। उनकी ध्वनि में शांति, गंभीरता और आनंद का अद्भुत मिश्रण था। उन्होंने अपने संगीत के माध्यम से श्रोताओं को एक गहन अनुभव प्रदान किया, जिसने उन्हें चेतना के उच्च स्तर पर पहुंचाया।
पंडित रविशंकर के कार्यों का प्रभाव सिर्फ संगीत तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि इसने दर्शन, आध्यात्मिकता और कला के अन्य रूपों को भी प्रभावित किया। उनके संगीत में एक प्रकार की सार्वभौमिकता थी, जो किसी भी सांस्कृतिक या भाषाई बाधा को पार कर सकती थी। उन्होंने दिखाया कि कैसे कला को सामाजिक और आध्यात्मिक परिवर्तन के एक शक्तिशाली माध्यम के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
आज, जब हम पंडित रविशंकर को याद करते हैं, तो हम एक ऐसे दूरदर्शी संगीतकार को याद करते हैं जिन्होंने अपनी कला से दुनिया को जोड़ा। उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत को उसकी जड़ों से उखाड़े बिना उसे एक नई ऊँचाई दी। उनकी विरासत हमें सिखाती है कि कैसे अपनी परंपराओं का सम्मान करते हुए वैश्विक मंच पर अपनी पहचान बना सकते हैं। क्या आज भी कोई ऐसा भारतीय संगीतकार है जो पंडित रविशंकर की तरह ही विश्व मंच पर अपनी छाप छोड़ सके?