भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम ने किस प्रकार आत्मनिर्भरता और वैश्विक प्रतिष्ठा हासिल की है, और इसकी प्रमुख उपलब्धियाँ क्या हैं?
Answer: भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम ने स्वदेशी प्रक्षेपण यानों और उपग्रहों के सफल विकास के माध्यम से आत्मनिर्भरता प्राप्त की है। चंद्रयान और मंगल ऑर्बिटर मिशन (MOM) जैसे ऐतिहासिक मिशनों के साथ-साथ संचार और पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों ने भारत की वैज्ञानिक और तकनीकी क्षमताओं को विश्व पटल पर स्थापित कर उसे वैश्विक प्रतिष्ठा दिलाई है, जिससे देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान मिला है।
भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम, जिसकी कल्पना डॉ. विक्रम साराभाई ने की थी, का प्राथमिक उद्देश्य राष्ट्र के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग करना था। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की स्थापना 1969 में हुई थी, जिसने देश को आत्मनिर्भर बनाने और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाने का मार्ग प्रशस्त किया। प्रारंभिक चरण में, विदेशी सहायता पर निर्भरता कम करने और पूरी तरह से स्वदेशी क्षमताओं का विकास करने पर ध्यान केंद्रित किया गया।कार्यक्रम की शुरुआत 1975 में भारत के पहले उपग्रह 'आर्यभट्ट' के सफल प्रक्षेपण से हुई, जो सोवियत संघ की सहायता से किया गया था। इसके बाद, भारत ने स्वदेशी रूप से उपग्रह विकसित करने की दिशा में तेजी से प्रगति की। भास्कर और रोहिणी श्रृंखला के उपग्रहों के बाद, इन्सैट (INSAT) और आईआरएस (IRS) श्रृंखला के उपग्रहों ने संचार, मौसम विज्ञान, आपदा प्रबंधन और पृथ्वी अवलोकन जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में क्रांति ला दी है, जिससे कृषि से लेकर शहरी नियोजन तक विभिन्न क्षेत्रों को लाभ हुआ है।लॉन्च वाहन प्रौद्योगिकी में भारत की प्रगति विशेष रूप से उल्लेखनीय रही है। SLV-3 (सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल-3) से शुरू होकर, भारत ने PSLV (पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) और GSLV (जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) जैसे शक्तिशाली प्रक्षेपण यान विकसित किए हैं। PSLV को 'भारत के वर्कहॉर्स' के रूप में जाना जाता है, जिसने सैकड़ों उपग्रहों, जिनमें कई विदेशी उपग्रह भी शामिल हैं, को सफलतापूर्वक लॉन्च किया है। इस क्षमता ने भारत को एक विश्वसनीय और लागत प्रभावी वैश्विक लॉन्च प्रदाता के रूप में स्थापित किया है, जिससे विदेशी मुद्रा की आय भी होती है।चंद्रयान-1 (2008) भारत का पहला चंद्र मिशन था, जिसने चंद्रमा पर पानी के अणुओं की उपस्थिति की खोज कर वैश्विक अंतरिक्ष अनुसंधान में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया। मंगलयान (मंगल ऑर्बिटर मिशन - MOM) 2013 में लॉन्च किया गया था, जिसने भारत को मंगल ग्रह पर पहुंचने वाला चौथा देश और अपने पहले ही प्रयास में ऐसा करने वाला दुनिया का पहला देश बना दिया। हाल ही में, चंद्रयान-3 ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंडिंग की, जिससे भारत यह उपलब्धि हासिल करने वाला चौथा देश और दक्षिणी ध्रुव पर पहुँचने वाला पहला देश बन गया, जो देश की तकनीकी क्षमता का एक बेजोड़ प्रदर्शन है।वर्तमान में, ISRO गगनयान मिशन पर काम कर रहा है, जिसका उद्देश्य मनुष्यों को अंतरिक्ष में भेजना है, जो भारत के लिए एक और बड़ी उपलब्धि होगी। इसके अलावा, भारत ने नेविगेशन के लिए NAVIC (नेविगेशन विद इंडियन कॉन्स्टेलेशन) प्रणाली विकसित की है, जो जीपीएस के भारतीय समकक्ष है। ये उपलब्धियाँ न केवल वैज्ञानिक प्रगति को दर्शाती हैं, बल्कि कृषि, जल संसाधन प्रबंधन, शहरी नियोजन, आपदा चेतावनी और शिक्षा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में सीधे तौर पर राष्ट्र की सेवा भी करती हैं, जिससे भारत एक आत्मनिर्भर और तकनीकी रूप से उन्नत राष्ट्र के रूप में उभरा है।
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