भारत के प्रमुख लोक नृत्य कौन-कौन से हैं और वे किन राज्यों से संबंधित हैं, साथ ही उनका सांस्कृतिक महत्व क्या है?
Answer: भारत में विभिन्न राज्यों के अपने अनूठे लोक नृत्य हैं जो उनकी सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक हैं। उदाहरण के लिए, पंजाब का भांगड़ा और गिद्दा, राजस्थान का घूमर और कालबेलिया, असम का बिहू, गुजरात का गरबा और डांडिया रास, उत्तर प्रदेश का नौटंकी और रासलीला, महाराष्ट्र का लावणी, ओडिशा और पश्चिम बंगाल का छऊ, तथा तमिलनाडु का करगट्टम प्रमुख हैं। ये नृत्य स्थानीय समुदायों की परंपराओं, त्योहारों और जीवन शैली को दर्शाते हैं और सांस्कृतिक विरासत को सहेजने का माध्यम हैं।
भारत एक ऐसा देश है जहाँ सांस्कृतिक विविधता हर क्षेत्र में देखने को मिलती है, और लोक नृत्य इस विविधता का एक जीवंत प्रतीक हैं। ये नृत्य स्थानीय समुदायों की कहानियों, परंपराओं, त्योहारों, रीति-रिवाजों और जीवन शैली को दर्शाते हैं। ये केवल मनोरंजन के साधन नहीं हैं, बल्कि ये पीढ़ियों से चली आ रही सांस्कृतिक विरासत को सहेजने और उसे नई पीढ़ियों तक पहुँचाने का माध्यम भी हैं। प्रत्येक राज्य के अपने विशिष्ट लोक नृत्य हैं जो उसकी पहचान का अभिन्न अंग बन गए हैं और सामाजिक सौहार्द व उत्सव के माहौल को बढ़ावा देते हैं।उत्तरी भारत में, पंजाब का जोशपूर्ण "भांगड़ा" और महिलाओं द्वारा किया जाने वाला "गिद्दा" ऊर्जा और खुशी का प्रतीक है, खासकर फसल कटाई के दौरान। ये नृत्य ढोल की थाप पर किए जाते हैं और सामुदायिक भावना को सुदृढ़ करते हैं। राजस्थान का "घूमर", जो महिलाएँ घेरे में घूमते हुए करती हैं, अपनी शालीनता और रंगीन परिधानों के लिए प्रसिद्ध है, जबकि "कालबेलिया" नृत्य कालबेलिया समुदाय की अनोखी सांस्कृतिक पहचान दर्शाता है, जिसमें सर्प-नृत्य की मुद्राएँ शामिल होती हैं। उत्तर प्रदेश में "नौटंकी" और "रासलीला" धार्मिक कथाओं पर आधारित लोकप्रिय लोक नाट्य और नृत्य शैलियाँ हैं जो अक्सर भगवान कृष्ण और राम की लीलाओं का मंचन करती हैं।पश्चिमी भारत में भी लोक नृत्यों की समृद्ध परंपरा विद्यमान है। गुजरात का "गरबा" और "डांडिया रास" नवरात्रि के दौरान देवी दुर्गा की आराधना का अभिन्न अंग हैं, जिसमें रंगीन कपड़े और लयबद्ध संगीत का प्रयोग होता है। ये नृत्य सामूहिक भागीदारी और भक्ति का प्रदर्शन करते हैं। महाराष्ट्र का "लावणी" अपने तेज संगीत, मनमोहक गायन और अभिव्यंजक आंदोलनों के लिए जाना जाता है, जिसमें अक्सर सामाजिक या राजनीतिक व्यंग्य भी शामिल होता है। "कोली" नृत्य मछुआरों के जीवन और उनके समुदायों की गतिविधियों को दर्शाता है। गोवा में "देखनी" और "फुगड़ी" जैसे नृत्य स्थानीय परंपराओं और कोंकणी संस्कृति को जीवंत रखते हैं।पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत भी लोक नृत्यों की समृद्ध परंपरा से ओतप्रोत है। असम का "बिहू" नृत्य बिहू त्योहार के दौरान खुशी और नई फसल के आगमन का जश्न मनाता है, जिसमें युवा पुरुष और महिलाएँ पारंपरिक परिधानों में ऊर्जावान प्रदर्शन करते हैं। पश्चिम बंगाल और ओडिशा के कुछ हिस्सों में प्रचलित "छऊ" एक अर्ध-शास्त्रीय आदिवासी मार्शल आर्ट नृत्य है, जो पौराणिक कथाओं और लोक कथाओं को मुखौटों और शक्तिशाली शारीरिक भंगिमाओं के माध्यम से प्रदर्शित करता है। झारखंड और छत्तीसगढ़ में "करमा" नृत्य प्रमुख है, जो प्रकृति और फसल से जुड़ा हुआ है, और अक्सर वृक्षारोपण एवं कटाई के समय किया जाता है।दक्षिण भारत में भी लोक नृत्यों की भव्यता देखने को मिलती है। तमिलनाडु का "करगट्टम" संतुलन और शक्ति का नृत्य है, जहाँ नर्तक अपने सिर पर पानी का बर्तन रखकर नाचते हैं, जो वर्षा और समृद्धि के लिए प्रार्थना का प्रतीक है। कर्नाटक का "डोलू कुनिथा" एक ड्रम नृत्य है जिसमें पुरुष कलाकार बड़े ड्रम बजाते हुए ऊर्जावान प्रदर्शन करते हैं, जो अक्सर धार्मिक जुलूसों और त्योहारों में देखा जाता है। आंध्र प्रदेश का "लामबडी" नृत्य बंजारा समुदाय की जीवन शैली और उनके त्योहारों को दर्शाता है, जिसमें रंगीन परिधान और आभूषण प्रमुख होते हैं। केरल में "थिरुवाथिराकाली" (ओणम पर महिलाओं द्वारा किया जाने वाला) और "ओप्पना" (मुस्लिम समुदाय का विवाह नृत्य) जैसे कई पारंपरिक लोक नृत्य प्रचलित हैं।ये लोक नृत्य न केवल कला के रूप हैं, बल्कि ये भारत की सांस्कृतिक पहचान के संरक्षक भी हैं। ये देश की विविधता में एकता को दर्शाते हैं और स्थानीय कला एवं कलाकारों को बढ़ावा देते हैं। इन नृत्यों का संरक्षण और प्रचार-प्रसार भारत की समृद्ध विरासत को जीवित रखने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, जो पर्यटन को भी बढ़ावा देता है और विश्व मंच पर भारत की सांस्कृतिक धाक जमाता है। यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि ये पारंपरिक कला रूप आधुनिक समय में भी अपनी प्रासंगिकता और जीवंतता बनाए रखें।
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