Answer: खुला प्रस्ताव (Open Offer)
खुला प्रस्ताव (Open Offer) कॉर्पोरेट जगत में, विशेष रूप से विलय और अधिग्रहण (Mergers & Acquisitions) के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण अवधारणा है। यह एक ऐसा प्रस्ताव है जो किसी अधिग्रहणकर्ता द्वारा, किसी लक्ष्य कंपनी के सार्वजनिक शेयरधारकों को अपनी हिस्सेदारी बेचने का अवसर प्रदान करने के लिए दिया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य छोटे निवेशकों के हितों की रक्षा करना और उन्हें कंपनी के स्वामित्व में बदलाव की स्थिति में उचित निकास विकल्प प्रदान करना है। जब कोई अधिग्रहणकर्ता किसी सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध कंपनी में एक निश्चित सीमा से अधिक हिस्सेदारी हासिल करता है, तो नियामक प्राधिकरणों द्वारा अनिवार्य रूप से उसे यह खुला प्रस्ताव देना पड़ता है। यह प्रक्रिया बाजार में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करती है, जिससे सभी हितधारकों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार हो सके।
भारत में, खुले प्रस्ताव को भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) के (सबस्टैंशियल एक्विजिशन ऑफ शेयर्स एंड टेकओवर) विनियम, 2011 (जिसे SAST रेगुलेशंस भी कहा जाता है) द्वारा विनियमित किया जाता है। इन विनियमों के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति या संस्था किसी सूचीबद्ध कंपनी में 25% या उससे अधिक की वोटिंग शेयर पूंजी या नियंत्रण का अधिग्रहण करने का इरादा रखता है, तो उसे सार्वजनिक शेयरधारकों के लिए एक अनिवार्य खुला प्रस्ताव देना होगा। इसके अलावा, यदि कोई अधिग्रहणकर्ता पहले से ही 25% या अधिक लेकिन 75% से कम हिस्सेदारी रखता है, और वह वित्तीय वर्ष में अतिरिक्त 5% या अधिक शेयर हासिल करना चाहता है, तो उसे भी एक खुला प्रस्ताव देना अनिवार्य है। ये नियम सुनिश्चित करते हैं कि कंपनी के नियंत्रण में कोई भी बड़ा बदलाव पारदर्शी और विनियमित तरीके से हो, जिससे बाजार की अखंडता बनी रहे।
एक खुले प्रस्ताव में कई प्रमुख घटक शामिल होते हैं। सबसे पहले, 'अधिग्रहणकर्ता' (Acquirer) होता है, जो कंपनी में हिस्सेदारी हासिल करना चाहता है। दूसरा, 'लक्ष्य कंपनी' (Target Company) होती है, जिसके शेयर अधिग्रहित किए जा रहे हैं। तीसरा, 'प्रस्ताव मूल्य' (Offer Price) होता है, जिस पर अधिग्रहणकर्ता शेयर खरीदने की पेशकश करता है। चौथा, 'प्रस्ताव का आकार' (Offer Size) होता है, यानी अधिग्रहणकर्ता सार्वजनिक शेयरधारकों से कितनी प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने का इरादा रखता है, जो SEBI SAST विनियमों के तहत आमतौर पर न्यूनतम 26% होता है। प्रस्ताव की प्रक्रिया एक 'सार्वजनिक घोषणा' (Public Announcement - PA) के साथ शुरू होती है, जिसे अधिग्रहणकर्ता एक सेबी-पंजीकृत मर्चेंट बैंकर के माध्यम से करता है। इस घोषणा में अधिग्रहणकर्ता की पहचान, लक्ष्य कंपनी, प्रस्तावित अधिग्रहण का उद्देश्य, प्रस्ताव मूल्य और प्रस्ताव का आकार जैसी महत्वपूर्ण जानकारी शामिल होती है।
सार्वजनिक घोषणा के बाद, अधिग्रहणकर्ता को SEBI को एक विस्तृत मसौदा प्रस्ताव पत्र (Draft Letter of Offer) प्रस्तुत करना होता है। SEBI इस मसौदा पत्र की समीक्षा करता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह सभी नियामक आवश्यकताओं का पालन करता है और निवेशकों के हितों की रक्षा करता है। SEBI द्वारा मंजूरी मिलने के बाद, 'प्रस्ताव अवधि' (Offer Period) शुरू होती है, जिसके दौरान लक्ष्य कंपनी के सार्वजनिक शेयरधारक खुले प्रस्ताव में अपने शेयर प्रस्तुत करने का विकल्प चुन सकते हैं। इस प्रक्रिया में, अधिग्रहणकर्ता को एक 'एस्क्रो खाते' (Escrow Account) में पर्याप्त राशि जमा करनी होती है, जो प्रस्तावित शेयरों की खरीद के लिए आवश्यक कुल राशि का एक हिस्सा होता है। यह एस्क्रो खाता अधिग्रहणकर्ता की वित्तीय क्षमता का प्रमाण होता है और यह सुनिश्चित करता है कि भुगतान करने के लिए धन उपलब्ध है। प्रस्ताव अवधि आमतौर पर 10 कार्य दिवसों तक चलती है।
खुले प्रस्ताव का मूल्य निर्धारण एक अत्यंत महत्वपूर्ण पहलू है। SEBI के नियमों के अनुसार, प्रस्तावित मूल्य कुछ बेंचमार्क मूल्यों में से 'उच्चतम' होना चाहिए। इन बेंचमार्क में अधिग्रहणकर्ता द्वारा पिछले 26 सप्ताह या 60 ट्रेडिंग दिनों के दौरान अधिग्रहित किए गए शेयरों का उच्चतम मूल्य, या सार्वजनिक घोषणा की तारीख से पहले 60 ट्रेडिंग दिनों के दौरान स्टॉक एक्सचेंज पर स्टॉक का वॉल्यूम-वेटेड औसत मूल्य (VWAP), या जिस कीमत पर नियंत्रण अधिग्रहण किया जा रहा है, वह शामिल हो सकता है। यह सुनिश्चित करता है कि सार्वजनिक शेयरधारकों को अपने शेयरों के लिए एक उचित और प्रतिस्पर्धी मूल्य मिले, जिससे उन्हें अपने निवेश पर उचित प्रतिफल मिल सके।
सार्वजनिक शेयरधारकों के लिए, एक खुला प्रस्ताव कई निहितार्थ रखता है। यह उन्हें अपनी हिस्सेदारी को नकदी में बदलने का एक अवसर प्रदान करता है, खासकर यदि वे कंपनी के नए प्रबंधन या भविष्य की दिशा के बारे में अनिश्चित हों। कभी-कभी, खुले प्रस्ताव का मूल्य बाजार मूल्य से अधिक होता है, जिससे शेयरधारकों को प्रीमियम पर अपने शेयर बेचने का मौका मिलता है। यह भी महत्वपूर्ण है कि शेयरधारक प्रस्ताव की शर्तों का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करें और निर्णय लेने से पहले कंपनी के भविष्य की संभावनाओं और अन्य उपलब्ध विकल्पों पर विचार करें। उन्हें इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि क्या अधिग्रहणकर्ता सभी टेंडर किए गए शेयरों को खरीद पाएगा, खासकर यदि प्रस्ताव ओवरसब्सक्राइब हो जाता है।
अधिग्रहणकर्ता के दृष्टिकोण से, खुला प्रस्ताव एक कंपनी में अपनी हिस्सेदारी और नियंत्रण बढ़ाने का एक कानूनी और विनियमित तरीका है। यह उन्हें वांछित नियंत्रण हिस्सेदारी प्राप्त करने में मदद करता है, जिससे वे कंपनी के रणनीतिक निर्णयों को प्रभावित कर सकें। हालांकि, इसमें वित्तीय लागत भी शामिल होती है, क्योंकि उन्हें सार्वजनिक शेयरधारकों से शेयर खरीदने के लिए महत्वपूर्ण पूंजी आवंटित करनी होती है। उन्हें SEBI के सख्त नियमों का पालन भी करना होता है, जिसमें प्रक्रियात्मक समय-सीमा और पारदर्शिता शामिल है। खुले प्रस्ताव के सफल समापन से अधिग्रहणकर्ता को कंपनी के दीर्घकालिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक मजबूत मंच मिलता है, लेकिन विफलता के मामले में, यह उनकी अधिग्रहण रणनीति को बाधित कर सकता है।
खुले प्रस्ताव मुख्य रूप से दो प्रकार के हो सकते हैं: अनिवार्य खुला प्रस्ताव (Mandatory Open Offer) और स्वैच्छिक खुला प्रस्ताव (Voluntary Open Offer)। अनिवार्य खुला प्रस्ताव वे होते हैं जो SEBI SAST विनियमों में निर्धारित विशिष्ट अधिग्रहण सीमाओं (जैसे 25% की सीमा या अतिरिक्त 5% अधिग्रहण) को पार करने पर स्वचालित रूप से ट्रिगर होते हैं। यह नियामक द्वारा शेयरधारकों की सुरक्षा के लिए लगाया गया एक दायित्व है। दूसरी ओर, स्वैच्छिक खुला प्रस्ताव एक ऐसा प्रस्ताव है जो अधिग्रहणकर्ता द्वारा अपनी इच्छानुसार दिया जाता है, भले ही वह नियामक सीमा को पार न कर रहा हो। इसका उद्देश्य कंपनी में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाना हो सकता है, जिससे उसे अधिक नियंत्रण या वोटिंग अधिकार मिल सकें। स्वैच्छिक प्रस्ताव भी SEBI के नियमों के अधीन होते हैं।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि खुला प्रस्ताव हमेशा डीलिस्टिंग (Delisting) प्रस्ताव के समान नहीं होता है। डीलिस्टिंग तब होती है जब एक कंपनी स्टॉक एक्सचेंज से अपने शेयरों को हटाने का फैसला करती है, जिससे वे सार्वजनिक रूप से कारोबार करना बंद कर दें। डीलिस्टिंग के लिए भी शेयरधारकों को एक निकास विकल्प दिया जाता है, अक्सर रिवर्स बुक बिल्डिंग प्रक्रिया के माध्यम से। जबकि खुले प्रस्ताव का प्राथमिक उद्देश्य अधिग्रहणकर्ता को नियंत्रण हिस्सेदारी हासिल करने की अनुमति देना और अल्पसंख्यक शेयरधारकों को एक निकास विकल्प प्रदान करना है, डीलिस्टिंग का उद्देश्य कंपनी को निजी बनाना है। हालांकि दोनों में सार्वजनिक शेयरधारकों से शेयर खरीदना शामिल हो सकता है, उनके अंतर्निहित उद्देश्य और नियामक प्रक्रियाएं भिन्न होती हैं।
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) खुले प्रस्तावों की पूरी प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण नियामक भूमिका निभाता है। SEBI यह सुनिश्चित करता है कि सभी पक्ष नियमों का सख्ती से पालन करें और बाजार में किसी भी हेरफेर या अनुचित व्यापार प्रथाओं को रोकते हैं। पारदर्शिता और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए यह नियामक निगरानी आवश्यक है। कॉर्पोरेट जगत के विकास के साथ, खुले प्रस्तावों की जटिलता भी बढ़ रही है, जिसमें क्रॉस-बॉर्डर अधिग्रहण और विभिन्न वित्तपोषण संरचनाएं शामिल हैं। यह सुनिश्चित करने के लिए कि निवेशक हमेशा संरक्षित रहें और बाजार कुशलता से कार्य करे, नियामक ढांचे को लगातार अपडेट किया जा रहा है।
क्या भविष्य में छोटे निवेशकों की सक्रिय भागीदारी और उनकी सूचना तक पहुंच को और बेहतर बनाने के लिए खुले प्रस्तावों के नियमों में और अधिक नवाचार की आवश्यकता है?