Answer: सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण स्थापित करना।
ऑपरेशन मेघदूत भारतीय सेना द्वारा 1984 में लॉन्च किया गया एक साहसिक सैन्य अभियान था। इस ऑपरेशन का मुख्य उद्देश्य सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण स्थापित करना था, जो दुनिया का सबसे ऊंचा युद्धक्षेत्र है। यह अभियान भारत की सामरिक संप्रभुता को बनाए रखने और पाकिस्तान की संभावित घुसपैठ को रोकने के लिए महत्वपूर्ण था। भारत ने इस अभियान को अत्यंत गुप्त रखते हुए और प्रतिकूल मौसम की परवाह किए बिना अंजाम दिया, जिसने इसे सैन्य इतिहास में एक उल्लेखनीय उपलब्धि बना दिया।
सियाचिन ग्लेशियर, काराकोरम रेंज में स्थित है और इसका सामरिक महत्व अत्यंत अधिक है। यह भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा (LoC) का एक अविभाज्य हिस्सा है। 1970 के दशक के उत्तरार्ध से, दोनों देशों के बीच इस क्षेत्र पर दावों को लेकर तनाव बढ़ने लगा था। पाकिस्तान ने इस क्षेत्र में अपनी सैन्य गतिविधियों को बढ़ाना शुरू कर दिया था, जिससे भारत को अपनी सुरक्षा चिंताओं को दूर करने के लिए एक सक्रिय कदम उठाने की आवश्यकता महसूस हुई।
ऑपरेशन मेघदूत की योजना अत्यंत गोपनीय रखी गई थी। भारतीय सेना के शीर्ष कमांडरों ने इस दुर्गम क्षेत्र में संचालन की जटिलताओं को समझते हुए एक विस्तृत योजना तैयार की। इसमें रसद, सैनिकों का प्रशिक्षण, और मौसम की चरम स्थितियों का सामना करने की तैयारी शामिल थी। सेना ने इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए पैरा-ट्रूपर्स और विशेष रूप से प्रशिक्षित सैनिकों का इस्तेमाल किया।
13 अप्रैल, 1984 को, भारतीय सेना ने ऑपरेशन मेघदूत की शुरुआत की। सेना की टुकड़ियों ने ग्लेशियर के प्रमुख ठिकानों पर तेजी से कब्जा कर लिया, जिसमें बिलाफोंड ला, सोल्टोरो पास और अन्य महत्वपूर्ण चोटियाँ शामिल थीं। पाकिस्तान इस अचानक और प्रभावी कार्रवाई से आश्चर्यचकित रह गया। भारतीय सेना ने न केवल महत्वपूर्ण चौकियों पर कब्जा किया, बल्कि उन्होंने पूरे सियाचिन क्षेत्र पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली।
ऑपरेशन मेघदूत की सफलता का श्रेय भारतीय सेना की अदम्य भावना, कुशल योजना और निष्पादन को जाता है। अत्यधिक ठंड, पतली हवा और पथरीले इलाकों जैसी प्राकृतिक बाधाओं के बावजूद, सैनिकों ने असाधारण साहस और दृढ़ संकल्प का प्रदर्शन किया। इस ऑपरेशन ने भारत को सामरिक रूप से एक महत्वपूर्ण लाभ प्रदान किया, क्योंकि अब वे पूरे सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण रखते थे, जिससे पाकिस्तान के लिए किसी भी प्रकार की घुसपैठ या प्रभुत्व स्थापित करना अत्यंत कठिन हो गया।
सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए भारतीय सेना को लगातार चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। अत्यधिक ठंड, हिमस्खलन, और ऊंचाई की बीमारियाँ सैनिकों के लिए निरंतर खतरा बनी रहती हैं। इसके बावजूद, भारतीय सेना ने अपनी उपस्थिति को मजबूत रखा है और सीमा की रक्षा में अपना योगदान दिया है। यह ऑपरेशन न केवल भारतीय सैन्य पराक्रम का प्रतीक है, बल्कि यह देश की क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है।
ऑपरेशन मेघदूत के बाद, भारत और पाकिस्तान के बीच सियाचिन मुद्दे पर कई बार कूटनीतिक स्तर पर बातचीत हुई है, लेकिन अभी तक कोई स्थायी समाधान नहीं निकला है। हालांकि, भारतीय सेना की मजबूत उपस्थिति ने इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह ऑपरेशन भारत की रक्षा क्षमताओं और प्रतिकूल परिस्थितियों में निर्णायक कार्रवाई करने की क्षमता का एक सशक्त प्रमाण है।
सेना ने इस ऑपरेशन के लिए 'मेघदूत' नाम का चुनाव भी प्रतीकात्मक था। 'मेघदूत' का अर्थ है 'बादलों का संदेशवाहक', जो इस दुर्गम क्षेत्र तक पहुंचने की भारतीय सेना की क्षमता को दर्शाता है। यह नाम इस बात का भी प्रतीक था कि कैसे सेना ने अपनी पहुंच और प्रभाव को उन जगहों तक बढ़ाया जहां पहुंचना लगभग असंभव माना जाता था।
ऑपरेशन मेघदूत का महत्व केवल सैन्य विजय तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसने भारतीय सेना की लॉजिस्टिक्स और सामरिक योजना बनाने की क्षमता को भी प्रदर्शित किया। इस तरह के ऊंचे और दुर्गम इलाकों में आपूर्ति बनाए रखना एक बहुत बड़ी चुनौती होती है, और भारतीय सेना ने इसे सफलतापूर्वक पार किया। सैनिकों को गर्म कपड़े, भोजन, संचार उपकरण और अन्य आवश्यक सामग्री समय पर उपलब्ध कराई गई।
इस ऑपरेशन के दौरान, भारतीय वायु सेना ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सैनिकों और सामग्री को ऊंचाई वाले क्षेत्रों तक पहुंचाने के लिए हेलिकॉप्टरों का बड़े पैमाने पर उपयोग किया गया। वायु सेना ने सैन्य टुकड़ियों को हवाई सहायता प्रदान की और घायल सैनिकों को निकालने में भी मदद की। इस संयुक्त अभियान ने भारतीय सशस्त्र बलों के बीच तालमेल और समन्वय की शक्ति को उजागर किया।
ऑपरेशन मेघदूत के परिणामस्वरूप, भारत ने काराकोरम दर्रे के पश्चिम और पूर्व दोनों ओर अपनी पहुंच स्थापित की। इससे पाकिस्तान को कराकोरम दर्रे तक पहुंच से वंचित कर दिया गया, जो सामरिक रूप से एक बड़ा झटका था। इस ऑपरेशन ने यह भी सुनिश्चित किया कि भारत अपने उत्तरी सीमाओं पर किसी भी प्रकार की अनधिकृत गतिविधि पर नजर रख सके।
इस क्षेत्र में परिचालन लागत अत्यंत उच्च है। अत्यधिक ठंड और दुर्गम इलाकों के कारण, सैनिकों को विशेष प्रशिक्षण और उपकरणों की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, हिमस्खलन और भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं का खतरा हमेशा बना रहता है। इन चुनौतियों के बावजूद, भारतीय सेना ने सियाचिन में अपनी एक स्थायी उपस्थिति बनाए रखी है, जो राष्ट्र की सुरक्षा के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता का प्रतीक है।
आज भी, सियाचिन ग्लेशियर भारतीय सेना के लिए एक चुनौती बना हुआ है। सैनिकों को गंभीर मौसम की स्थिति और ऊंचाई की बीमारियों से जूझना पड़ता है। ऐसे में, उन्हें प्रेरित रखने और उनका मनोबल ऊंचा बनाए रखने के लिए विशेष उपाय किए जाते हैं। राष्ट्रीय नायकों के रूप में उनका सम्मान किया जाता है और उनकी बहादुरी की कहानियां देश भर में सुनाई जाती हैं।
ऑपरेशन मेघदूत ने भारत की सैन्य रणनीति में एक नया अध्याय जोड़ा। इसने दिखाया कि भारतीय सेना कितनी सक्षम और दृढ़निश्चयी है, और वह देश की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। यह ऑपरेशन आज भी भारतीय सैन्य अकादमियों में एक केस स्टडी के रूप में पढ़ाया जाता है, जो भविष्य की पीढ़ियों को प्रेरित करता है।
संक्षेप में, ऑपरेशन मेघदूत भारतीय सेना के साहस, कौशल और संकल्प का एक ज्वलंत उदाहरण है। इसने न केवल एक महत्वपूर्ण सामरिक क्षेत्र पर नियंत्रण सुनिश्चित किया, बल्कि यह भारतीय सशस्त्र बलों की क्षमता को भी प्रदर्शित किया। इस ऑपरेशन की सफलता ने यह स्थापित किया कि भारतीय सेना किसी भी चुनौती का सामना करने और राष्ट्र की सुरक्षा को सर्वोपरि रखने के लिए तैयार है। क्या भारतीय सेना इसी तरह के अन्य गुप्त ऑपरेशनों में भी शामिल रही है जिन्होंने भारत के इतिहास को आकार दिया है?