Answer: 1984
ऑपरेशन मेघदूत, भारतीय सैन्य इतिहास की सबसे साहसी और महत्वपूर्ण कार्रवाइयों में से एक है। यह ऑपरेशन 13 अप्रैल 1984 को भारतीय सेना द्वारा सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए चलाया गया था। इस ऑपरेशन का मुख्य उद्देश्य पाकिस्तान को इस रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र पर कब्ज़ा करने से रोकना था, जो कि दुनिया का सबसे ऊंचा युद्ध क्षेत्र है। सियाचिन ग्लेशियर, काराकोरम रेंज में स्थित है और इसकी औसत ऊंचाई 20,000 फीट से अधिक है। यह क्षेत्र अत्यंत दुर्गम और प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों वाला है, जहाँ तापमान -50 डिग्री सेल्सियस तक गिर सकता है।
सियाचिन ग्लेशियर का भौगोलिक महत्व बहुत अधिक है। यह ग्लेशियर कई महत्वपूर्ण नदियों का स्रोत है, जिनमें नुब्रा नदी भी शामिल है, जो अंततः सिंधु नदी में मिलती है। यदि यह क्षेत्र दुश्मन के हाथ में चला जाता, तो भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों के जल संसाधनों पर गंभीर खतरा उत्पन्न हो सकता था। इसके अतिरिक्त, सियाचिन पर नियंत्रण भारत को इस क्षेत्र में अपनी सैन्य उपस्थिति बनाए रखने और किसी भी प्रकार की घुसपैठ को रोकने में सक्षम बनाता है। यह भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा (Line of Control - LoC) का सबसे उत्तरी बिंदु भी है।
1984 से पहले, भारत और पाकिस्तान दोनों ही सियाचिन क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन किसी भी पक्ष का इस पर पूर्ण नियंत्रण नहीं था। 1970 के दशक में, पाकिस्तान ने विदेशी पर्वतारोहण अभियानों को इस क्षेत्र में जाने की अनुमति देना शुरू कर दिया था, जिसे भारत ने अपनी संप्रभुता पर अतिक्रमण माना। भारतीय खुफिया एजेंसियों को इस बात की पक्की खबर मिली कि पाकिस्तान इस क्षेत्र पर सैन्य कब्जा करने की योजना बना रहा है। इस सूचना के बाद, भारतीय नेतृत्व ने तुरंत कार्रवाई करने का निर्णय लिया।
ऑपरेशन मेघदूत की योजना अत्यंत गुप्त रखी गई थी। इसे भारतीय सेना के उत्तरी कमान के तत्कालीन लेफ्टिनेंट जनरल पी.एन. हून (Lt. Gen. P.N. Hoon) और मेजर जनरल निरभय सिंह (Major General Nirbhay Singh) की देखरेख में तैयार किया गया था। इस ऑपरेशन में भारतीय सेना की कई टुकड़ियों को शामिल किया गया था, जिनमें पैराशूट रेजिमेंट, कुमाऊं रेजिमेंट और गोरखा राइफल्स की बटालियनें प्रमुख थीं। इन सैनिकों को अत्यंत कठिन परिस्थितियों में, ऊंचे पहाड़ों पर चढ़ने और युद्ध करने का विशेष प्रशिक्षण दिया गया था।
ऑपरेशन की शुरुआत 13 अप्रैल 1984 को हुई। भारतीय सेना के सैनिकों ने विशेष रूप से तैयार किए गए सैन्य वाहनों और हेलीकॉप्टरों की मदद से ग्लेशियर के महत्वपूर्ण पोस्टों पर तेजी से चढ़ाई की। अत्यधिक ठंड, ऑक्सीजन की कमी और बर्फीले तूफानों जैसी चुनौतियों का सामना करते हुए, भारतीय सैनिकों ने अविश्वसनीय साहस का परिचय दिया। उन्होंने बिना किसी बड़ी बाधा के ग्लेशियर के प्रमुख स्थानों, जैसे कि सिया ला (Sia La), खारदुंग ला (Khardung La) और बिलाफोंड ला (Bilaphond La) पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया।
ऑपरेशन मेघदूत की सफलता ने पाकिस्तान को चौंका दिया। वे इस तीव्र और सुनियोजित कार्रवाई के लिए तैयार नहीं थे। पाकिस्तान ने तुरंत इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने का प्रयास किया, लेकिन तब तक भारतीय सेना अपनी स्थिति मजबूत कर चुकी थी। इसके बाद, दोनों देशों के बीच सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण के लिए लंबा संघर्ष चला, जिसे 'सियाचिन युद्ध' के नाम से जाना जाता है। इस युद्ध में दोनों पक्षों को भारी जनहानि उठानी पड़ी, लेकिन भारतीय सेना ने अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखी।
ऑपरेशन मेघदूत के बाद, भारतीय सेना ने सियाचिन ग्लेशियर पर स्थायी चौकियां स्थापित कीं, जिन्हें 'ऑप. वाइपर' (Op. Viper) के नाम से जाना जाता है। इन चौकियों को बनाए रखना एक अत्यंत जटिल और महंगा कार्य है। सेना को न केवल सैनिकों के लिए रसद और आपूर्ति पहुंचाने की चुनौती का सामना करना पड़ता है, बल्कि उन्हें अत्यधिक ठंड और ऊंचाई की बीमारियों से बचाने के लिए विशेष उपकरणों और प्रशिक्षण की भी आवश्यकता होती है। भारतीय सेना ने यहाँ अपने आप को बेहतर ढंग से स्थापित करने के लिए उन्नत तकनीक और सामग्री का उपयोग किया है।
सियाचिन ग्लेशियर पर भारतीय सेना की उपस्थिति का रणनीतिक महत्व आज भी सर्वोपरि है। यह क्षेत्र भारत की सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है और किसी भी कीमत पर इसे खोया नहीं जा सकता। ऑपरेशन मेघदूत ने न केवल भारत की क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखा, बल्कि भारतीय सेना की क्षमता और समर्पण का भी एक उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया। यह ऑपरेशन भारतीय सैन्य पराक्रम का एक ज्वलंत प्रतीक बन गया है, जिसने विषम परिस्थितियों में विजय प्राप्त की।
आज भी, सियाचिन दुनिया का सबसे ऊंचा युद्ध क्षेत्र बना हुआ है, जहाँ भारतीय सैनिक कड़ाके की ठंड और प्रतिकूल मौसम का सामना करते हुए देश की सेवा कर रहे हैं। इस क्षेत्र में तैनात सैनिकों को 'सियाचिन वॉरियर्स' के नाम से जाना जाता है और उनके बलिदान को हमेशा याद किया जाएगा। सियाचिन पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए भारत सरकार और सेना द्वारा लगातार प्रयास किए जाते हैं, जिसमें आधुनिक तकनीक का विकास और सैनिकों के लिए बेहतर सुविधाओं का प्रावधान शामिल है।
ऑपरेशन मेघदूत के बाद से, भारत और पाकिस्तान के बीच सियाचिन पर युद्धविराम की स्थिति बनी हुई है, हालांकि तनावपूर्ण। कई वर्षों से, दोनों देश इस मुद्दे को सुलझाने के लिए बातचीत कर रहे हैं, लेकिन अभी तक कोई स्थायी समाधान नहीं निकला है। इस क्षेत्र की सामरिक महत्वता को देखते हुए, यह उम्मीद की जाती है कि भविष्य में भी भारत अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए यहाँ अपनी उपस्थिति बनाए रखेगा। यह ऑपरेशन भारतीय सेना के अदम्य साहस और देशभक्ति का प्रमाण है, जिसने देश की सीमाओं की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाने की अपनी क्षमता को साबित किया। क्या सियाचिन जैसे दुर्गम क्षेत्रों में तैनात सैनिकों के लिए स्थायी शांति की संभावना कभी विद्यमान होगी?