Answer: सैन फ्रांसिस्को
द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिका ने मानवता को एक ऐसे स्थायी अंतर्राष्ट्रीय संगठन की आवश्यकता का एहसास कराया, जो भविष्य में ऐसे विनाशकारी संघर्षों को रोक सके और राष्ट्रों के बीच शांति व सहयोग को बढ़ावा दे सके। इसी भावना के साथ, संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nations - UN) की कल्पना की गई। यह सिर्फ एक संगठन नहीं, बल्कि वैश्विक शांति, सुरक्षा और मानव अधिकारों के प्रति एक सामूहिक प्रतिबद्धता का प्रतीक है। इसका जन्म ऐसे समय में हुआ जब दुनिया ने दो विश्व युद्धों के घावों को झेला था और परमाणु युग की भयावहता की शुरुआत हो रही थी।
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना का विचार कोई नया नहीं था; इसके पूर्ववर्ती के रूप में राष्ट्र संघ (League of Nations) अस्तित्व में था, जिसकी स्थापना प्रथम विश्व युद्ध के बाद की गई थी। हालांकि, राष्ट्र संघ अपनी स्थापना के आदर्शों को पूरी तरह से पूरा करने में विफल रहा और द्वितीय विश्व युद्ध को रोकने में असमर्थ साबित हुआ। इसकी विफलताओं ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को यह सोचने पर मजबूर किया कि एक अधिक मजबूत, समावेशी और प्रभावी संगठन की आवश्यकता है, जिसके पास शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए आवश्यक अधिकार और साधन हों।
संयुक्त राष्ट्र के गठन की नींव कई महत्वपूर्ण बैठकों और घोषणाओं के माध्यम से रखी गई थी। अटलांटिक चार्टर (1941) ने अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के सिद्धांतों की रूपरेखा तैयार की, जिसके बाद डम्बर्टन ओक्स सम्मेलन (1944) में एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन की संरचना पर विस्तार से चर्चा हुई। याल्टा सम्मेलन (1945) में सुरक्षा परिषद में वीटो शक्ति के विवादास्पद मुद्दे पर सहमति बनी, जिसने स्थायी सदस्यों को विशेष अधिकार दिए। ये सभी कदम सैन फ्रांसिस्को में होने वाली अंतिम और निर्णायक सभा के लिए मंच तैयार कर रहे थे।
सैन फ्रांसिस्को सम्मेलन, जिसे औपचारिक रूप से 'संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय संगठन सम्मेलन' के नाम से जाना जाता है, 25 अप्रैल से 26 जून, 1945 तक सैन फ्रांसिस्को, कैलिफोर्निया, संयुक्त राज्य अमेरिका में आयोजित किया गया था। इस ऐतिहासिक सम्मेलन में 50 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया, जिन्होंने तीन महीने तक अथक परिश्रम किया। उनका मुख्य कार्य डम्बर्टन ओक्स प्रस्तावों के आधार पर संयुक्त राष्ट्र चार्टर का मसौदा तैयार करना और उसे अंतिम रूप देना था। यह एक जटिल प्रक्रिया थी जिसमें कई देशों के हितों और चिंताओं को संतुलित करना था, लेकिन एक साझा उद्देश्य - युद्ध को रोकना और शांति को बढ़ावा देना - ने सभी को एकजुट रखा।
26 जून, 1945 को, सैन फ्रांसिस्को के वेटरन्स मेमोरियल ओपेरा हाउस में, सभी 50 संस्थापक सदस्य देशों के प्रतिनिधियों ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर पर गर्व के साथ हस्ताक्षर किए। यह एक ऐतिहासिक क्षण था जिसने मानव इतिहास में सहयोग और सामूहिक सुरक्षा के एक नए अध्याय की शुरुआत की। हालांकि चार्टर पर हस्ताक्षर 26 जून को हुए थे, संयुक्त राष्ट्र संघ औपचारिक रूप से 24 अक्टूबर, 1945 को अस्तित्व में आया, जब चीन, फ्रांस, सोवियत संघ, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका और अधिकांश अन्य हस्ताक्षरकर्ता देशों द्वारा चार्टर को अनुमोदित कर दिया गया। 24 अक्टूबर को अब 'संयुक्त राष्ट्र दिवस' के रूप में मनाया जाता है।
संयुक्त राष्ट्र के मुख्य उद्देश्य इसके चार्टर में स्पष्ट रूप से उल्लिखित हैं: अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखना; राष्ट्रों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध विकसित करना; अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं को हल करने और मानवाधिकारों के सम्मान को बढ़ावा देने में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करना; और इन सामान्य लक्ष्यों की प्राप्ति में राष्ट्रों के कार्यों को सामंजस्य स्थापित करने के लिए एक केंद्र बनना। ये उद्देश्य आज भी संगठन के कार्यों को दिशा प्रदान करते हैं और इसकी प्रासंगिकता को स्थापित करते हैं।
अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए, संयुक्त राष्ट्र के छह मुख्य अंग हैं: महासभा, सुरक्षा परिषद, आर्थिक और सामाजिक परिषद, न्यास परिषद (जो अब निष्क्रिय है), अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय और सचिवालय। प्रत्येक अंग की अपनी विशिष्ट भूमिका और जिम्मेदारियां हैं, जो सामूहिक रूप से संगठन के व्यापक मिशन में योगदान करती हैं। ये अंग एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करते हैं ताकि दुनिया भर में शांति, सुरक्षा, विकास और मानवाधिकारों को बढ़ावा दिया जा सके।
सुरक्षा परिषद सबसे शक्तिशाली अंगों में से एक है, जो अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए प्राथमिक जिम्मेदारी वहन करती है। इसमें 15 सदस्य होते हैं, जिनमें से पांच स्थायी सदस्य (चीन, फ्रांस, रूस, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका) हैं जिनके पास वीटो शक्ति है, और दस अस्थायी सदस्य जो दो साल के कार्यकाल के लिए चुने जाते हैं। वीटो शक्ति अक्सर विवाद का विषय रही है, क्योंकि यह एक स्थायी सदस्य को किसी भी प्रस्ताव को अवरुद्ध करने की शक्ति देती है, भले ही अधिकांश सदस्य उसके पक्ष में हों।
महासभा को 'राष्ट्रों की संसद' कहा जा सकता है, जहाँ संयुक्त राष्ट्र के सभी 193 सदस्य राष्ट्रों का प्रतिनिधित्व होता है, और प्रत्येक सदस्य का एक वोट होता है। यह अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करती है, सिफारिशें करती है, बजट को मंजूरी देती है और गैर-स्थायी सुरक्षा परिषद के सदस्यों का चुनाव करती है। महासभा महत्वपूर्ण वैश्विक चुनौतियों पर अंतर्राष्ट्रीय सहमति बनाने का एक मंच प्रदान करती है, हालांकि इसके प्रस्ताव कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं होते हैं।
आर्थिक और सामाजिक परिषद (ECOSOC) अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय मुद्दों को संबोधित करने के लिए जिम्मेदार है। यह संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर विभिन्न विशेष एजेंसियों, निधियों और कार्यक्रमों के काम का समन्वय करती है, जो गरीबी उन्मूलन, शिक्षा, स्वास्थ्य, जलवायु परिवर्तन और सतत विकास जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह परिषद वैश्विक विकास एजेंडा को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice - ICJ) संयुक्त राष्ट्र का मुख्य न्यायिक अंग है, जिसका मुख्यालय हेग, नीदरलैंड में है। इसका कार्य अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार राज्यों के बीच कानूनी विवादों को निपटाना और संयुक्त राष्ट्र के अंगों और विशेष एजेंसियों द्वारा संदर्भित कानूनी प्रश्नों पर सलाहकार राय देना है। इसके निर्णय बाध्यकारी होते हैं, लेकिन इसका क्षेत्राधिकार केवल उन्हीं राज्यों पर होता है जो इसकी अधिकारिता को स्वीकार करते हैं।
सचिवालय संयुक्त राष्ट्र का प्रशासनिक अंग है, जिसके प्रमुख महासचिव होते हैं। महासचिव संगठन के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी और मुख्य राजनयिक होते हैं, जो वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण मुद्दों पर मध्यस्थता करते हैं और संयुक्त राष्ट्र के चेहरे के रूप में कार्य करते हैं। वे महासभा द्वारा सुरक्षा परिषद की सिफारिश पर पांच साल के कार्यकाल के लिए नियुक्त किए जाते हैं और दुनिया भर में संगठन के आदर्शों और कार्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
इन प्रमुख अंगों के अलावा, संयुक्त राष्ट्र प्रणाली में कई विशेष एजेंसियां, कार्यक्रम और निधियां शामिल हैं, जैसे कि यूनिसेफ (UNICEF), विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), यूनेस्को (UNESCO), विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) आदि। ये संस्थाएं अपने-अपने क्षेत्रों में विशेषज्ञता प्रदान करती हैं और संयुक्त राष्ट्र के व्यापक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण कार्य करती हैं, जैसे बच्चों की सुरक्षा, बीमारियों का उन्मूलन, सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण और आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा देना।
संयुक्त राष्ट्र ने अपने अस्तित्व के सात दशकों से अधिक समय में कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं। इसने अनगिनत संघर्षों को रोकने या शांत करने में मदद की है, लाखों लोगों को मानवीय सहायता प्रदान की है, उपनिवेशवाद के अंत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, मानवाधिकारों को बढ़ावा देने और उनकी रक्षा के लिए अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों और कानूनों को स्थापित किया है, और सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) जैसे महत्वाकांक्षी वैश्विक एजेंडा निर्धारित किए हैं। इसके शांति स्थापना मिशनों ने दुनिया के कई हिस्सों में स्थिरता लाने में मदद की है।
हालांकि, संयुक्त राष्ट्र को कई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है। सुरक्षा परिषद में सुधार की आवश्यकता, विशेष रूप से स्थायी सदस्यों और वीटो शक्ति की संरचना को लेकर, लंबे समय से बहस का विषय रहा है। संगठन को अक्सर अपर्याप्त वित्तपोषण, सदस्य राष्ट्रों के हितों के टकराव, और राष्ट्रीय संप्रभुता के सम्मान और अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप की आवश्यकता के बीच संतुलन साधने की मुश्किलों से जूझना पड़ता है। आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, महामारियां और साइबर सुरक्षा जैसी नई वैश्विक चुनौतियां इसकी अनुकूलनशीलता और प्रभावशीलता की परीक्षा ले रही हैं।
इन चुनौतियों के बावजूद, संयुक्त राष्ट्र 21वीं सदी में भी एक अपरिहार्य वैश्विक मंच बना हुआ है। यह एकमात्र ऐसा संगठन है जहाँ दुनिया के सभी राष्ट्र एक समान मंच पर आते हैं, संवाद करते हैं और सामूहिक रूप से सबसे जटिल वैश्विक समस्याओं का समाधान खोजने का प्रयास करते हैं। यह बहुपक्षीय कूटनीति का केंद्र है और एक वैश्विक समाज में, जहां अंतर-निर्भरता बढ़ती जा रही है, इसकी भूमिका पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। यह सिर्फ एक अंतरराष्ट्रीय ब्यूरोक्रेसी नहीं है, बल्कि एक ऐसा आदर्श है जो मानता है कि राष्ट्र मिलकर काम करके एक बेहतर और सुरक्षित दुनिया का निर्माण कर सकते हैं।
संयुक्त राष्ट्र ने शांति, सुरक्षा और मानव कल्याण के लिए अथक प्रयास किए हैं और इसकी स्थापना के आदर्श आज भी प्रासंगिक हैं। यह एक सतत विकसित होने वाला संगठन है जो बदलती वैश्विक परिस्थितियों के अनुरूप ढलने का प्रयास कर रहा है। आज भी यह दुनिया भर में आशा और सहयोग का प्रतीक बना हुआ है।
क्या संयुक्त राष्ट्र संघ अपनी वर्तमान संरचना और शक्तियों के साथ भविष्य की वैश्विक चुनौतियों का प्रभावी ढंग से सामना कर पाएगा?