Answer: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य (P5) चीन, फ्रांस, रूस, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका हैं।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) संयुक्त राष्ट्र के छह प्रमुख अंगों में से एक है, और इसे अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने का प्राथमिक उत्तरदायित्व सौंपा गया है। 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद स्थापित, UNSC ने वैश्विक सुरक्षा परिदृश्य को आकार देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसकी संरचना और कार्यप्रणाली द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की शक्ति-संतुलन को दर्शाती है, जिसमें पांच स्थायी सदस्य (P5) और दस गैर-स्थायी सदस्य शामिल हैं, जिन्हें महासभा द्वारा दो साल के कार्यकाल के लिए चुना जाता है।
सुरक्षा परिषद की सबसे विशिष्ट और विवादास्पद विशेषता इसके पांच स्थायी सदस्यों - चीन, फ्रांस, रूस, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका - की वीटो शक्ति है। वीटो शक्ति परिषद के किसी भी महत्वपूर्ण प्रस्ताव को अवरुद्ध करने की क्षमता प्रदान करती है, भले ही बाकी सभी सदस्य सहमत हों। यह शक्ति परिषद के निर्णयों की प्रभावशीलता और निष्पक्षता पर बहस का एक निरंतर स्रोत रही है। वीटो शक्ति का उपयोग अक्सर सदस्य राष्ट्रों के अपने राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाने के लिए किया जाता है, जिससे परिषद के लिए सर्वसम्मति से निर्णय लेना मुश्किल हो जाता है, खासकर संवेदनशील भू-राजनीतिक मुद्दों पर।
प्रत्येक स्थायी सदस्य के पास अपनी वीटो शक्ति का प्रयोग करने का अधिकार है। इसका मतलब है कि यदि कोई भी स्थायी सदस्य किसी प्रस्ताव के खिलाफ मतदान करता है, तो वह प्रस्ताव पारित नहीं हो सकता। यह व्यवस्था द्वितीय विश्व युद्ध के विजेताओं की शक्तियों को मान्यता देती है और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की वैश्विक व्यवस्था को बनाए रखने के उद्देश्य से बनाई गई थी। हालाँकि, समय के साथ, इस व्यवस्था की प्रासंगिकता और न्यायसंगतता पर सवाल उठने लगे हैं, विशेष रूप से दुनिया की बदलती शक्ति-संतुलन और वैश्विक शासन में अधिक समावेशिता की बढ़ती मांग के आलोक में।
सुरक्षा परिषद की भूमिका केवल शांति बनाए रखने तक ही सीमित नहीं है। यह शांति स्थापना मिशन स्थापित कर सकती है, प्रतिबंध लगा सकती है, और अंतर्राष्ट्रीय कानून के उल्लंघन के लिए सैन्य कार्रवाई को अधिकृत भी कर सकती है। परिषद की कार्यवाही को गुप्त रखने का अधिकार भी होता है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है, लेकिन पारदर्शिता पर भी सवाल उठाता है।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्य देशों की संख्या और स्थायी सदस्यों की वीटो शक्ति के संबंध में सुधार के लिए कई प्रस्ताव दिए गए हैं। इनमें स्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाना, वीटो के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाना, या वीटो शक्ति को समाप्त करना शामिल है। हालांकि, इन सुधारों को लागू करना अत्यंत कठिन रहा है, क्योंकि इसके लिए मौजूदा स्थायी सदस्यों की सहमति की आवश्यकता होती है, जो अपने विशेषाधिकारों को छोड़ने के इच्छुक नहीं हैं।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से, वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य में भारी बदलाव आया है। कई देशों का उदय हुआ है और उनकी आर्थिक और राजनीतिक शक्ति बढ़ी है। ऐसे में, वर्तमान सुरक्षा परिषद की संरचना, जो 1945 की शक्ति-संतुलन पर आधारित है, की निष्पक्षता और प्रतिनिधित्व पर अक्सर सवाल उठाए जाते हैं। नए उभरते हुए वैश्विक खिलाड़ियों, जैसे कि भारत, ब्राजील, जर्मनी और जापान, को स्थायी सदस्यता देने की मांग जोर पकड़ रही है।
वीटो शक्ति का प्रयोग अक्सर राजनीतिक गतिरोध पैदा करता है। उदाहरण के लिए, सीरियाई गृहयुद्ध, यूक्रेन संकट, और फिलिस्तीनी मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के निर्णयों को वीटो शक्ति के कारण अवरुद्ध किया गया है, जिससे अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया बाधित हुई है। यह अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और प्रभावी वैश्विक शासन में बाधा उत्पन्न करता है।
सुरक्षा परिषद का एक अन्य महत्वपूर्ण कार्य शांति स्थापना मिशनों का प्रवर्तन है। ये मिशन संघर्ष क्षेत्रों में शांति और स्थिरता बनाए रखने, नागरिकों की सुरक्षा करने, और शांति समझौतों को लागू करने के लिए भेजे जाते हैं। इन मिशनों की सफलता संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों के सहयोग और समर्थन पर निर्भर करती है।
समय-समय पर, सुरक्षा परिषद अंतरराष्ट्रीय कानून के उल्लंघन के जवाब में प्रतिबंध भी लगाती है। ये प्रतिबंध देशों को अपने व्यवहार को बदलने के लिए मजबूर करने के उद्देश्य से लगाए जाते हैं। हालांकि, इन प्रतिबंधों का अक्सर आम नागरिकों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे उनकी प्रभावशीलता और नैतिकता पर बहस छिड़ जाती है।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की संरचना और कार्यप्रणाली में सुधार की आवश्यकता एक जटिल और बहुआयामी मुद्दा है। यह वैश्विक न्याय, प्रतिनिधित्व, और प्रभावी अंतरराष्ट्रीय सहयोग के सिद्धांतों से जुड़ा हुआ है। जब तक स्थायी सदस्यों के बीच सहमति नहीं बनती, तब तक इस दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति की संभावना कम है, जिससे वैश्विक शांति और सुरक्षा बनाए रखने के इसके प्रयासों पर अनिश्चितता बनी रहेगी। क्या भविष्य में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की संरचना में ऐसे परिवर्तन संभव होंगे जो वैश्विक शक्ति-संतुलन और न्यायसंगतता को बेहतर ढंग से प्रतिबिंबित करें?