Answer: हिमालय पर्वत श्रृंखला
भारतीय उपमहाद्वीप का भूगोल, विशेष रूप से इसकी उत्तरी सीमा, अविश्वसनीय रूप से शानदार और भूवैज्ञानिक रूप से महत्वपूर्ण पर्वत श्रृंखलाओं से सुशोभित है। इन पर्वतों ने न केवल भारत की जलवायु, जल विज्ञान और जैव विविधता को आकार दिया है, बल्कि वे सदियों से भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता और इतिहास का एक अभिन्न अंग भी रहे हैं। इनमें सबसे प्रमुख और भूवैज्ञानिक रूप से सबसे युवा पर्वत श्रृंखला, हिमालय, न केवल भारत के लिए बल्कि पूरे एशिया के लिए एक महत्वपूर्ण शक्ति है। हिमालय, जिसका अर्थ संस्कृत में 'बर्फ का निवास' है, दुनिया की सबसे ऊंची चोटियों का घर है और यह भारतीय उपमहाद्वीप को तिब्बती पठार से अलग करती है।
हिमालय का निर्माण एक आकर्षक भूवैज्ञानिक प्रक्रिया का परिणाम है जिसे महाद्वीपीय टकराव कहा जाता है। लगभग 50 मिलियन वर्ष पहले, भारतीय प्लेट, जो दक्षिण से उत्तर की ओर बढ़ रही थी, यूरेसियन प्लेट से टकरा गई। यह टक्कर आज भी जारी है, जिसके कारण पृथ्वी की पपड़ी में भारी वलन और उत्थान हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप हिमालय का निर्माण हुआ। यह प्रक्रिया इतनी शक्तिशाली रही है कि हिमालय आज भी प्रति वर्ष कुछ मिलीमीटर की दर से बढ़ रहा है। इस निरंतर उत्थान के कारण ही यहाँ विश्व की सबसे ऊंची चोटियाँ, जैसे माउंट एवरेस्ट (जो नेपाल-चीन सीमा पर स्थित है, लेकिन भारतीय भूविज्ञान का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है) और भारत की कंचनजंघा जैसी चोटियाँ पाई जाती हैं।
हिमालय को मोटे तौर पर तीन समानांतर श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है: वृहत् हिमालय (The Greater Himalayas), लघु हिमालय (The Lesser Himalayas) और शिवालिक श्रेणी (The Siwalik Range)। वृहत् हिमालय, जो सबसे उत्तरी और सबसे ऊंची श्रेणी है, में सभी प्रमुख चोटियाँ शामिल हैं, जिनमें एवरेस्ट और कंचनजंघा शामिल हैं। ये ऊँची चोटियाँ साल भर बर्फ से ढकी रहती हैं और यहाँ कई हिमनद (ग्लेशियर) पाए जाते हैं, जो भारत की प्रमुख नदियों, जैसे गंगा, यमुना, सिंधु और ब्रह्मपुत्र के उद्गम स्थल हैं। ये नदियाँ न केवल भारतीय उपमहाद्वीप की जीवनरेखा हैं, बल्कि इन्होंने उपजाऊ जलोढ़ मैदानों का निर्माण भी किया है, जो कृषि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
लघु हिमालय, वृहत् हिमालय के दक्षिण में स्थित है और यह कम ऊंचाई वाली चोटियों, घाटियों और पहाड़ी स्टेशनों की श्रृंखला है। शिमला, नैनीताल, दार्जिलिंग और मसूरी जैसे प्रसिद्ध हिल स्टेशन इसी श्रेणी में स्थित हैं। ये क्षेत्र अपनी प्राकृतिक सुंदरता, सुखद जलवायु और पर्यटन के लिए जाने जाते हैं। लघु हिमालय में समशीतोष्ण वन भी पाए जाते हैं, जो विभिन्न प्रकार के पौधों और जानवरों के लिए निवास स्थान प्रदान करते हैं। यह क्षेत्र कृषि के लिए भी महत्वपूर्ण है, जहाँ सीढ़ीदार खेती के माध्यम से कई प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं।
शिवालिक श्रेणी, हिमालय की सबसे दक्षिणी और सबसे युवा श्रेणी है। यह लघु हिमालय के दक्षिण में स्थित है और यह मुख्य रूप से बलुआ पत्थर और कांग्लोमेरेट से बनी है। शिवालिक अपने तीव्र ढलानों और घाटियों के लिए जानी जाती है। इन पहाड़ियों में भी वनस्पति पाई जाती है, लेकिन यह वृहत् और लघु हिमालय की तुलना में कम घनी होती है। शिवालिक श्रेणी के दक्षिण में तराई क्षेत्र है, जो दलदली और घने जंगलों से आच्छादित है।
हिमालय के अलावा, भारत में कई अन्य महत्वपूर्ण पर्वत श्रृंखलाएँ भी हैं, जो इसके भौगोलिक विविधता को बढ़ाती हैं। पश्चिम में, अरावली श्रेणी, जो दुनिया की सबसे पुरानी वलित पर्वत श्रृंखलाओं में से एक मानी जाती है, एक महत्वपूर्ण भूवैज्ञानिक विशेषता है। यह श्रेणी राजस्थान और गुजरात में फैली हुई है और इसका महत्व इसके ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के साथ-साथ इसके खनिज भंडार में भी निहित है। विंध्य और सतपुड़ा श्रेणियाँ मध्य भारत में फैली हुई हैं और ये दक्कन के पठार को उत्तर भारतीय मैदानों से अलग करती हैं। ये श्रेणियाँ भी अपने जैव विविधता और ऐतिहासिक महत्व के लिए जानी जाती हैं।
दक्षिण भारत में, पश्चिमी घाट और पूर्वी घाट दो प्रमुख पर्वत श्रृंखलाएँ हैं। पश्चिमी घाट, जो अरब सागर के समानांतर चलता है, जैव विविधता का एक हॉटस्पॉट है और इसे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में नामित किया गया है। यह श्रृंखला भारत के दक्षिण-पश्चिमी मानसून को भी प्रभावित करती है, जिससे इस क्षेत्र में भारी वर्षा होती है। पूर्वी घाट, जो बंगाल की खाड़ी के समानांतर चलता है, कम ऊंची और टूटी हुई श्रृंखला है, जो अपने घाटियों और खनिज भंडारों के लिए जानी जाती है। नीलगिरि, अन्नामलाई और पालनी पहाड़ियाँ जैसे दक्षिण भारत के अन्य महत्वपूर्ण पहाड़ी क्षेत्र भी पश्चिमी घाट का हिस्सा हैं, जो अपनी अनूठी वनस्पति और जीव-जंतुओं के लिए प्रसिद्ध हैं।
इन पर्वत श्रृंखलाओं का मानव जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा है। वे न केवल प्राकृतिक संसाधनों के स्रोत रहे हैं, बल्कि उन्होंने स्थानीय समुदायों की संस्कृति, जीवन शैली और अर्थव्यवस्था को भी आकार दिया है। विभिन्न जनजातियाँ इन पहाड़ी क्षेत्रों में निवास करती हैं, जिनकी अपनी अनूठी परंपराएँ और जीवन शैली है। पर्वतीय नदियाँ सिंचाई, पनबिजली उत्पादन और परिवहन के लिए महत्वपूर्ण हैं। पर्यटन, विशेष रूप से हिमालय और पश्चिमी घाट में, इन क्षेत्रों के लिए आय का एक प्रमुख स्रोत बन गया है।
हिमालय की भूवैज्ञानिक युवावस्था का अर्थ है कि यह अभी भी सक्रिय टेक्टोनिक क्षेत्र में स्थित है। यह क्षेत्र भूकंपीय गतिविधि के लिए प्रवण है, और भारत ने अतीत में कई विनाशकारी भूकंपों का अनुभव किया है। भूवैज्ञानिकों द्वारा हिमालय की निरंतर निगरानी इस क्षेत्र की सुरक्षा और भविष्य के संभावित खतरों को समझने के लिए महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन इन पर्वतीय पारिस्थितिक तंत्रों के लिए एक बड़ा खतरा पैदा कर रहा है, जिससे ग्लेशियरों के पिघलने और जैव विविधता के नुकसान का खतरा बढ़ रहा है।
संक्षेप में, भारतीय पर्वत और पहाड़ियाँ केवल भूवैज्ञानिक संरचनाएँ नहीं हैं; वे भारत के प्राकृतिक सौंदर्य, सांस्कृतिक विरासत और आर्थिक विकास के आधार स्तंभ हैं। हिमालय, अपनी विशालता और भूवैज्ञानिक महत्व के साथ, विशेष रूप से, भारतीय उपमहाद्वीप के परिदृश्य और जीवन पर एक अमिट छाप छोड़ता है। क्या आप जानते हैं कि भारत की सबसे ऊंची पर्वत चोटी कौन सी है जो पूरी तरह से भारत की सीमा के भीतर स्थित है?