Answer: सांकेतिक सकल घरेलू उत्पाद (Nominal GDP) की गणना में मुद्रास्फीति के प्रभाव को समायोजित नहीं किया जाता है; यह केवल वर्तमान बाजार मूल्यों पर आधारित होता है। वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (Real GDP) की गणना करते समय मुद्रास्फीति के प्रभाव को समायोजित किया जाता है।
सकल घरेलू उत्पाद (GDP) किसी देश की आर्थिक सेहत का एक महत्वपूर्ण पैमाना है। यह किसी निश्चित अवधि में देश की सीमाओं के भीतर उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का कुल मौद्रिक मूल्य होता है। जीडीपी को दो मुख्य तरीकों से मापा जा सकता है: सांकेतिक जीडीपी (Nominal GDP) और वास्तविक जीडीपी (Real GDP)। इन दोनों के बीच मुख्य अंतर मुद्रास्फीति के प्रभाव का समायोजन है।
सांकेतिक जीडीपी, जिसे वर्तमान-डॉलर जीडीपी भी कहा जाता है, किसी देश के आर्थिक उत्पादन को वर्तमान बाजार मूल्यों पर मापती है। इसका मतलब है कि यह उन वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य को शामिल करता है जो वर्तमान वर्ष की कीमतों पर उत्पादित की गई हैं। जब हम सांकेतिक जीडीपी के बारे में बात करते हैं, तो हम उस वर्ष की कीमतों का उपयोग करते हैं जिसमें वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन हुआ था। उदाहरण के लिए, यदि हम 2023 के सांकेतिक जीडीपी की गणना कर रहे हैं, तो हम 2023 में प्रचलित कीमतों का उपयोग करेंगे।
सांकेतिक जीडीपी का मुख्य लाभ यह है कि यह अपेक्षाकृत गणना करने में आसान होता है क्योंकि इसके लिए किसी आधार वर्ष (Base Year) को चुनने या मूल्य सूचकांक (Price Index) का उपयोग करने की आवश्यकता नहीं होती है। यह अर्थव्यवस्था के समग्र आकार और वर्तमान आर्थिक गतिविधि का एक त्वरित स्नैपशॉट प्रदान करता है। यह सरकार के कर राजस्व और व्यय का अनुमान लगाने में भी सहायक हो सकता है, क्योंकि ये अक्सर वर्तमान मूल्यों पर आधारित होते हैं।
हालांकि, सांकेतिक जीडीपी का एक बड़ा दोष यह है कि यह मुद्रास्फीति के कारण विकृत हो सकता है। मुद्रास्फीति वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में समग्र वृद्धि है। यदि किसी अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति दर अधिक है, तो सांकेतिक जीडीपी बढ़ सकती है, भले ही देश में वास्तव में उत्पादन की मात्रा (Output) में वृद्धि न हुई हो। केवल कीमतों में वृद्धि के कारण जीडीपी का बढ़ना आर्थिक विकास का सच्चा संकेतक नहीं है।
कल्पना कीजिए कि एक देश ने पिछले साल 100 सेब 10 रुपये प्रति किलो की दर से और इस साल 100 सेब 12 रुपये प्रति किलो की दर से बेचे। पिछले साल, सांकेतिक जीडीपी (सेब के उत्पादन के संदर्भ में) 1000 रुपये थी। इस साल, भले ही उत्पादन की मात्रा समान रही (100 किलो), सांकेतिक जीडीपी 1200 रुपये होगी। यह 20% की वृद्धि दर्शाती है, लेकिन यह वास्तविक आर्थिक विकास नहीं है, बल्कि केवल मूल्य वृद्धि है।
यहीं पर वास्तविक जीडीपी (Real GDP) की अवधारणा महत्वपूर्ण हो जाती है। वास्तविक जीडीपी मुद्रास्फीति के प्रभाव को समायोजित करती है। यह वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन को एक स्थिर आधार वर्ष (Base Year) की कीमतों पर मापती है। आधार वर्ष एक विशिष्ट वर्ष होता है जिसे तुलना के लिए चुना जाता है, और उसकी कीमतें पूरे विश्लेषण अवधि के लिए उपयोग की जाती हैं।
वास्तविक जीडीपी की गणना करने के लिए, हमें सांकेतिक जीडीपी को सकल घरेलू उत्पाद डिफ्लेटर (GDP Deflator) नामक एक मूल्य सूचकांक का उपयोग करके समायोजित करना पड़ता है। जीडीपी डिफ्लेटर सांकेतिक जीडीपी और वास्तविक जीडीपी के बीच का अनुपात है, जिसे 100 से गुणा किया जाता है। इसका सूत्र है: जीडीपी डिफ्लेटर = (सांकेतिक जीडीपी / वास्तविक जीडीपी) * 100। इस सूत्र को पुनर्व्यवस्थित करके, हम वास्तविक जीडीपी की गणना कर सकते हैं: वास्तविक जीडीपी = (सांकेतिक जीडीपी / जीडीपी डिफ्लेटर) * 100।
जीडीपी डिफ्लेटर अर्थव्यवस्था में सभी उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में औसत परिवर्तन को मापता है। जब जीडीपी डिफ्लेटर 100 से अधिक होता है, तो इसका मतलब है कि मुद्रास्फीति हुई है और कीमतें बढ़ी हैं। जब जीडीपी डिफ्लेटर 100 से कम होता है, तो इसका मतलब है कि अपस्फीति (Deflation) हुई है और कीमतें घटी हैं।
वास्तविक जीडीपी आर्थिक विकास का एक अधिक विश्वसनीय मापक है क्योंकि यह उत्पादन में वृद्धि को सटीक रूप से दर्शाता है। जब हम किसी देश के आर्थिक विकास दर की बात करते हैं, तो हम आमतौर पर वास्तविक जीडीपी में प्रतिशत परिवर्तन का उल्लेख कर रहे होते हैं। यह नीति निर्माताओं, अर्थशास्त्रियों और निवेशकों को अर्थव्यवस्था की वास्तविक स्थिति का मूल्यांकन करने में मदद करता है, चाहे मुद्रास्फीति का स्तर कुछ भी हो।
उदाहरण के लिए, यदि किसी देश का सांकेतिक जीडीपी एक वर्ष में 5% बढ़ता है, लेकिन मुद्रास्फीति 3% है, तो वास्तविक जीडीपी वृद्धि केवल 2% (5% - 3%) होगी। यह समझना महत्वपूर्ण है कि आर्थिक वृद्धि का अर्थ केवल अधिक पैसा खर्च करना नहीं है, बल्कि अधिक वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करना है।
सांकेतिक जीडीपी और वास्तविक जीडीपी दोनों का अपना महत्व है। सांकेतिक जीडीपी वर्तमान आर्थिक गतिविधि और बाजार के आकार का एक स्नैपशॉट प्रदान करता है, जो अल्पकालिक विश्लेषण और कुछ सरकारी वित्तीय नियोजन के लिए उपयोगी है। वहीं, वास्तविक जीडीपी लंबी अवधि के आर्थिक रुझानों, उत्पादकता में परिवर्तन और जीवन स्तर में सुधार का आकलन करने के लिए आवश्यक है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, विभिन्न देशों की आर्थिक तुलना करते समय वास्तविक जीडीपी का उपयोग करना अधिक सटीक होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि विभिन्न देशों में मुद्रास्फीति की दरें अलग-अलग हो सकती हैं। यदि हम केवल सांकेतिक जीडीपी की तुलना करें, तो हम गलत निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि वास्तविक जीडीपी की गणना के लिए एक उपयुक्त आधार वर्ष का चुनाव भी महत्वपूर्ण है। आधार वर्ष ऐसा होना चाहिए जो एक सामान्य आर्थिक स्थिति को दर्शाता हो और जिसमें कोई असामान्य घटनाएँ न हुई हों। आधार वर्ष का चुनाव समय के साथ बदला भी जा सकता है ताकि तुलनात्मकता बनी रहे।
संक्षेप में, सांकेतिक जीडीपी वर्तमान कीमतों पर आर्थिक उत्पादन को मापती है और इसमें मुद्रास्फीति शामिल होती है, जबकि वास्तविक जीडीपी आधार वर्ष की स्थिर कीमतों पर मापती है और मुद्रास्फीति को बाहर करती है। आर्थिक प्रदर्शन का विश्लेषण करते समय, विशेष रूप से दीर्घकालिक विकास और उत्पादकता को समझने के लिए, वास्तविक जीडीपी का उपयोग करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। क्या केवल सांकेतिक जीडीपी वृद्धि ही किसी देश की समृद्धि का एकमात्र पैमाना हो सकती है?