Answer: किसानों को उनकी उपज के लिए एक निश्चित न्यूनतम मूल्य सुनिश्चित करना और बाजार की कीमतों में अत्यधिक उतार-चढ़ाव से बचाना।
न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) भारतीय कृषि क्षेत्र की एक महत्वपूर्ण नीति है, जिसे भारतीय सरकार द्वारा लागू किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य किसानों को उनकी फसलों के लिए एक गारंटीशुदा न्यूनतम मूल्य प्रदान करना है, ताकि वे बाजार में अत्यधिक मूल्य गिरावट की स्थिति में भी अपनी उपज का उचित मूल्य प्राप्त कर सकें। यह नीति विशेष रूप से छोटे और सीमांत किसानों के लिए महत्वपूर्ण है, जिनके पास बाजार की अस्थिरता का सामना करने की सीमित क्षमता होती है।
MSP की अवधारणा को समझने के लिए, हमें भारतीय कृषि की विशेषताओं पर गौर करना होगा। भारत एक कृषि प्रधान देश है जहाँ बड़ी आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है। कृषि क्षेत्र अनेक चुनौतियों का सामना करता है, जिनमें मौसम की अनिश्चितता, कीटों का प्रकोप, भूमि की घटती उत्पादकता, ऋणग्रस्तता, और सबसे महत्वपूर्ण, बाजार की कीमतों में अत्यधिक उतार-चढ़ाव शामिल हैं। यह उतार-चढ़ाव किसानों की आय को गंभीर रूप से प्रभावित करता है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर होती है और वे कृषि छोड़ने पर मजबूर हो सकते हैं।
MSP की शुरुआत 1960 के दशक में हरित क्रांति के दौरान हुई थी। उस समय, भारत खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रयासरत था। सरकार ने किसानों को अधिक उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करने और उन्हें निवेश करने के लिए प्रेरित करने हेतु एक मूल्य गारंटी तंत्र की आवश्यकता महसूस की। इस प्रकार, MSP को कृषि उत्पादन को बढ़ाने और किसानों को जोखिम से बचाने के एक उपकरण के रूप में पेश किया गया। शुरुआत में, यह मुख्य रूप से गेहूं और चावल जैसी प्रमुख खाद्यान्न फसलों के लिए लागू किया गया था।
MSP की गणना करते समय, सरकार विभिन्न कारकों पर विचार करती है, जिनमें उत्पादन की लागत (जैसे बीज, उर्वरक, कीटनाशक, श्रम, सिंचाई, आदि), भूमि का किराया, और किसानों द्वारा निवेशित पूंजी पर अपेक्षित लाभ शामिल होता है। 'कमीशन फॉर एग्रीकल्चरल कॉस्ट्स एंड प्राइसेस' (CACP) नामक एक निकाय MSP की सिफारिश करता है, जो विभिन्न राज्यों में फसल की लागत और बाजार की स्थितियों का अध्ययन करता है। CACP अपनी सिफारिशों में किसानों के लिए उचित रिटर्न सुनिश्चित करने का प्रयास करता है।
MSP दो प्रकार के मूल्यों पर आधारित हो सकता है: A2 लागत, जिसमें किसानों द्वारा सीधे किए गए सभी नकद और वस्तुगत व्यय शामिल होते हैं, और A2+FL लागत, जिसमें A2 लागत के साथ-साथ परिवार श्रम का अनुमानित मूल्य (Farm and Labors) भी शामिल होता है। CACP अक्सर A2+FL लागत से 50% अधिक MSP की सिफारिश करता है, जैसा कि 2014-15 के बजट में वादा किया गया था। हालांकि, व्यवहार में MSP निर्धारण की प्रक्रिया और उसमें शामिल विभिन्न लागतों को लेकर अक्सर बहस होती रहती है।
MSP की घोषणा सरकार द्वारा प्रत्येक फसल वर्ष की शुरुआत से पहले की जाती है। यह मूल्य सरकार द्वारा नियुक्त एजेंसियों, जैसे कि भारतीय खाद्य निगम (FCI) और अन्य राज्य एजेंसियों के माध्यम से किसानों से उनकी उपज खरीदने की गारंटी देता है। यदि बाजार मूल्य MSP से कम हो जाता है, तो सरकार MSP पर खरीददारी करके किसानों को राहत प्रदान करती है। यह प्रणाली देश की खाद्य सुरक्षा को बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, क्योंकि यह सुनिश्चित करती है कि पर्याप्त मात्रा में खाद्यान्न का उत्पादन हो और उसका भंडारण किया जा सके।
MSP के कई फायदे हैं। सबसे पहले, यह किसानों को आय की सुरक्षा प्रदान करता है, जिससे वे कृषि में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित होते हैं। दूसरे, यह बाजार में मूल्य स्थिरता को बढ़ावा देता है और किसानों को बिचौलियों द्वारा शोषण से बचाता है। तीसरे, यह खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करता है, क्योंकि किसान निश्चित मूल्य की उम्मीद में अधिक उत्पादन के लिए प्रेरित होते हैं। चौथे, यह कृषि में आधुनिक तकनीकों और इनपुट के उपयोग को बढ़ावा देता है।
हालांकि, MSP के आलोचक भी हैं। कुछ का तर्क है कि यह प्रणाली बाजार विकृतियों को जन्म देती है, क्योंकि यह उत्पादन को उन फसलों की ओर धकेलती है जिनकी MSP घोषित की जाती है, भले ही उनकी बाजार में उतनी मांग न हो। इससे अन्य महत्वपूर्ण फसलों के उत्पादन में कमी आ सकती है। इसके अलावा, MSP का लाभ अक्सर बड़े किसानों तक ही सीमित रह जाता है, जबकि छोटे और सीमांत किसानों को, जिनके पास बाजार तक पहुंचने के साधन कम होते हैं, उतना लाभ नहीं मिल पाता। MSP की खरीद प्रक्रिया में पारदर्शिता और पहुंच को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं।
कुछ विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि MSP का वर्तमान स्वरूप किसानों को नकदी फसलों या उन फसलों की ओर बढ़ने से हतोत्साहित कर सकता है जिनकी बाजार में अधिक मांग है लेकिन MSP घोषित नहीं है। इसके अलावा, MSP के कारण होने वाली सरकारी खरीद से बड़े पैमाने पर खाद्यान्न का भंडारण होता है, जिसके रखरखाव और वितरण में काफी लागत आती है। यह भी तर्क दिया जाता है कि MSP की बजाय, किसानों को सीधे वित्तीय सहायता या अन्य प्रकार की सब्सिडी प्रदान की जानी चाहिए, ताकि वे अपनी पसंद की फसलें उगा सकें और बाजार की शक्तियों के अनुसार लाभ कमा सकें।
हाल के वर्षों में, MSP को और अधिक प्रभावी बनाने और इसे व्यापक फसलों तक विस्तारित करने की मांग जोर पकड़ रही है। किसानों के आंदोलन और विभिन्न नीतिगत चर्चाओं में MSP का मुद्दा प्रमुख रहा है। यह नीति भारत की कृषि अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण स्तंभ बनी हुई है, और इसके इर्द-गिर्द की बहसें भविष्य में कृषि क्षेत्र में होने वाले सुधारों की दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाएंगी। MSP का प्रभावी कार्यान्वयन और समय-समय पर इसमें आवश्यक सुधार भारतीय किसानों की आय बढ़ाने और कृषि क्षेत्र को मजबूत करने के लिए अत्यंत आवश्यक है।
MSP ने निस्संदेह भारतीय कृषि में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लेकिन इसके भविष्य और प्रभावशीलता को लेकर निरंतर मूल्यांकन और सुधार की आवश्यकता है। क्या MSP को केवल चुनिंदा फसलों तक सीमित रखना चाहिए या इसे अधिक व्यापक बनाना चाहिए, और क्या यह भारतीय कृषि की भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए पर्याप्त है, ये ऐसे प्रश्न हैं जिन पर विचार करना आवश्यक है।