Answer: कोनवॉय सिस्टम ( काफिला प्रणाली)
द्वितीय विश्व युद्ध, जिसे महायुद्ध भी कहा जाता है, 1939 से 1945 तक चला एक वैश्विक संघर्ष था। यह मानव इतिहास का सबसे व्यापक युद्ध था, जिसमें 100 मिलियन से अधिक लोग 30 से अधिक देशों से शामिल हुए। इस युद्ध में दुनिया की प्रमुख शक्तियां दो विरोधी सैन्य गठबंधनों में बंट गईं: मित्र राष्ट्र (मुख्य रूप से यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ, चीन और फ्रांस) और धुरी राष्ट्र (मुख्य रूप से जर्मनी, जापान और इटली)। युद्ध का तत्काल कारण 1 सितंबर 1939 को जर्मनी द्वारा पोलैंड पर आक्रमण था, जिसके परिणामस्वरूप यूनाइटेड किंगडम और फ्रांस ने जर्मनी के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अटलांटिक महासागर एक प्रमुख युद्धक्षेत्र बन गया था। जर्मनी की नौसेना, विशेष रूप से उसकी पनडुब्बियां (U-boats), मित्र देशों के शिपिंग मार्गों को बाधित करने और ब्रिटेन तक पहुंचने वाले महत्वपूर्ण आपूर्ति लाइनों को काटने के लिए एक गंभीर खतरा थीं। शुरुआत में, जर्मन पनडुब्बियों ने मित्र देशों के जहाजों को व्यक्तिगत रूप से शिकार करने में अत्यधिक सफलता प्राप्त की। मित्र देशों के जहाजों को काफिले में एक साथ न चलाने के कारण, वे जर्मन पनडुब्बियों के लिए आसान लक्ष्य बन गए। इन पनडुब्बियों के 'ग्रे वुल्फ' के नाम से जानी जाने वाली पनडुब्बियों ने मित्र देशों की आपूर्ति को भारी नुकसान पहुँचाया, जिससे ब्रिटेन की युद्ध क्षमता पर गंभीर संकट आ गया था।
इस गंभीर स्थिति का मुकाबला करने के लिए, मित्र देशों ने एक नई रणनीति अपनाई: काफिला प्रणाली (Convoy System)। इस प्रणाली के तहत, व्यापारी जहाजों को नौसैनिक जहाजों (जैसे विध्वंसक और फ्रिगेट) के संरक्षण में समूहों में एक साथ यात्रा करने का आदेश दिया गया। ये जहाज दुश्मन की पनडुब्बियों से रक्षा के लिए एक सुरक्षा घेरा बनाते थे। काफिले को एक विशेष गति से यात्रा करनी पड़ती थी, जो सबसे धीमे जहाज के अनुरूप होती थी, जिससे उन्हें संगठित तरीके से आगे बढ़ना आसान हो जाता था।
काफिला प्रणाली का उद्देश्य पनडुब्बियों के लिए व्यक्तिगत जहाजों का पीछा करना अधिक कठिन बनाना था। अब उन्हें पूरे समूह पर हमला करना पड़ता था, जिससे उन्हें पता चलने और नौसैनिक escorts द्वारा नष्ट किए जाने का खतरा बढ़ जाता था। इसके अलावा, नौसैनिक escorts के पास पनडुब्बियों का पता लगाने और उन्हें नष्ट करने के लिए बेहतर उपकरण और प्रशिक्षण था। वे सोनार (Sonar) जैसी तकनीकों का उपयोग करते थे, जो पानी के नीचे की वस्तुओं का पता लगा सकती थीं, और डेप्थ चार्ज (Depth Charges) जैसे हथियारों का इस्तेमाल करती थीं, जो पानी के नीचे फटकर पनडुब्बियों को नुकसान पहुंचा सकते थे।
काफिला प्रणाली को लागू करने में कई चुनौतियां थीं। सबसे पहले, नौसैनिक escorts की कमी थी, खासकर युद्ध के शुरुआती वर्षों में। मित्र देशों को अधिक नौसैनिक जहाजों का निर्माण करने और उन्हें प्रशिक्षित करने की आवश्यकता थी। दूसरे, काफिले की गति धीमी हो जाती थी, जिससे यात्रा का समय बढ़ जाता था। हालाँकि, इस प्रणाली के लाभ अंततः नुकसान से कहीं अधिक थे।
धीरे-धीरे, काफिला प्रणाली ने अटलांटिक में पनडुब्बी युद्ध के रुख को मोड़ना शुरू कर दिया। 1942 के मध्य तक, मित्र देशों की पनडुब्बी-रोधी क्षमताओं में काफी सुधार हुआ था। नए पनडुब्बी-रोधी विमानों, बेहतर सोनार, और अधिक पनडुब्बी-रोधी जहाजों के विकास ने इस प्रणाली को और अधिक प्रभावी बना दिया। इसके अतिरिक्त, मित्र देशों ने 'ब्लू-पार्क' (Blue-Park) जैसी नई तकनीकों का भी इस्तेमाल करना शुरू कर दिया, जिसमें जहाजों को अत्यधिक ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों से बचाने के लिए विशेष सुरक्षा प्रदान की जाती थी।
काफिला प्रणाली का सफल कार्यान्वयन मित्र देशों के लिए एक महत्वपूर्ण जीत साबित हुआ। इसने ब्रिटेन को निरंतर आपूर्ति बनाए रखने में मदद की, जिससे वह युद्ध जारी रख सका। इसने जर्मनी को एक प्रमुख रणनीतिक संसाधन, अटलांटिक में अपनी पनडुब्बी शक्ति का प्रभावी ढंग से उपयोग करने से भी रोका। युद्ध के अंत तक, पनडुब्बियों द्वारा मित्र देशों के जहाजों के डूबने की दर में काफी गिरावट आई थी, और धुरी राष्ट्रों को भारी नुकसान उठाना पड़ा था।
इस प्रणाली के अलावा, अन्य कारक भी अटलांटिक की लड़ाई में महत्वपूर्ण थे। इनमें कोड-ब्रेकिंग (Code-breaking) का उपयोग शामिल था, विशेष रूप से 'अल्ट्रा' (Ultra) प्रोजेक्ट के माध्यम से, जिसने मित्र देशों को जर्मन नौसैनिक संचार को डिक्रिप्ट करने में सक्षम बनाया। इससे उन्हें पनडुब्बी के ठिकानों और आंदोलनों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिली। लंबी दूरी के पनडुब्बी-रोधी विमानों का विकास, जैसे कि पीबीवाई कैटालिना (PBY Catalina) और बी-24 लिबरेटर (B-24 Liberator), ने पनडुब्बियों का पता लगाने और उन्हें नष्ट करने की क्षमता को और बढ़ाया, खासकर 'गैप' (The Gap) में, जो अटलांटिक का वह हिस्सा था जहाँ मित्र देशों के हवाई जहाजों की पहुँच नहीं थी।
द्वितीय विश्व युद्ध में काफिला प्रणाली केवल एक सैन्य रणनीति से कहीं अधिक थी; यह एक जीवन रेखा थी जिसने मित्र देशों की विजय में महत्वपूर्ण योगदान दिया। यह दर्शाता है कि कैसे संगठित प्रयास, नवाचार और दृढ़ संकल्प प्रतिकूल परिस्थितियों में भी सफलता दिला सकते हैं। इस प्रणाली ने युद्ध के परिणाम को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अटलांटिक की लड़ाई को निर्णायक रूप से मित्र देशों के पक्ष में मोड़ दिया। इस प्रकार, काफिला प्रणाली को द्वितीय विश्व युद्ध के सबसे प्रभावी रक्षात्मक नवाचारों में से एक माना जाता है।
द्वितीय विश्व युद्ध में काफिला प्रणाली को अपनाने से पहले, मित्र देशों को भारी जनहानि और सामग्री का नुकसान हुआ था। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि यदि यह प्रणाली लागू नहीं की गई होती तो युद्ध का परिणाम क्या हो सकता था?