Answer: 13वां शिलालेख
सम्राट अशोक, मौर्य राजवंश के एक महान शासक थे, जिन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप के एक विशाल क्षेत्र पर शासन किया। उनका शासनकाल (लगभग 268 ईसा पूर्व से 232 ईसा पूर्व तक) भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण काल माना जाता है। अशोक को उनके साम्राज्य विस्तार के साथ-साथ उनकी धार्मिक और सामाजिक नीतियों के लिए भी जाना जाता है। अपने प्रारंभिक जीवन में, वे एक महत्वाकांक्षी और क्रूर शासक थे, जिन्होंने अपने भाइयों को मारकर सिंहासन प्राप्त किया था। उनका प्रारंभिक लक्ष्य अपने साम्राज्य का विस्तार करना था, और इसी विस्तारवादी नीति के तहत उन्होंने कलिंग (वर्तमान ओडिशा) पर आक्रमण किया।
कलिंग युद्ध, जो सम्राट अशोक के शासनकाल के आठवें वर्ष (लगभग 261 ईसा पूर्व) में हुआ था, मौर्य साम्राज्य के इतिहास में एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ। यह युद्ध अत्यंत विनाशकारी था और इसमें लाखों लोग मारे गए या घायल हुए। युद्ध के मैदान में फैली भयावहता, रक्तपात और विनाश को देखकर अशोक का हृदय द्रवित हो उठा। उन्होंने स्वयं इस युद्ध की भीषणता का वर्णन अपने शिलालेखों में किया है, विशेष रूप से 13वें प्रमुख शिलालेख में। इस युद्ध के पश्चात्, अशोक को गहरा पश्चाताप हुआ और उन्होंने बौद्ध धर्म को अपना लिया।
कलिंग युद्ध के बाद अशोक के जीवन में आए परिवर्तन का वर्णन 13वें शिलालेख में स्पष्ट रूप से मिलता है। यह शिलालेख अशोक के उन 14 प्रमुख शिलालेखों में से एक है जो पूरे मौर्य साम्राज्य में विभिन्न स्थानों पर पाए गए हैं। इन शिलालेखों के माध्यम से, अशोक ने अपने प्रजा को धम्म (धर्म) का पालन करने, अहिंसा, सत्य, दान और करुणा जैसे नैतिक मूल्यों को अपनाने का उपदेश दिया। 13वां शिलालेख विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह न केवल कलिंग युद्ध के भयानक परिणामों को दर्शाता है, बल्कि सम्राट की पश्चाताप की भावना और अहिंसा के प्रति उनके नए झुकाव को भी उजागर करता है।
13वें शिलालेख के अनुसार, कलिंग में हुए युद्ध के कारण लाखों लोगों की मृत्यु हुई और इससे भी अधिक लोग बंदी बनाए गए। अशोक ने स्वयं स्वीकार किया कि इस युद्ध के पश्चात् उन्हें अत्यंत दुख और पश्चाताप हुआ। उन्होंने कहा कि यदि कोई व्यक्ति अपने दुश्मन पर विजय प्राप्त करने के बाद भी क्रूरता करता है, तो वह स्वयं भी पाप करता है। इस अनुभव ने अशोक को युद्ध के मार्ग को त्यागने और धम्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। यह उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण परिवर्तन था, जिसने न केवल उनके व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित किया, बल्कि मौर्य साम्राज्य की नीतियों को भी गहराई से प्रभावित किया।
धम्म के प्रसार के लिए अशोक ने अपने पूरे साम्राज्य में संदेशवाहकों को भेजा और अपने पुत्र महेंद्र व पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका भेजा, जहाँ उन्होंने बौद्ध धर्म का प्रचार किया। उन्होंने बौद्ध मठों का निर्माण करवाया, धर्मशालाएँ बनवाईं और सड़कों पर छायादार वृक्ष लगवाए। उन्होंने पशुओं के प्रति क्रूरता को भी प्रतिबंधित किया और कई स्थानों पर पशुओं के लिए चिकित्सालयों की स्थापना करवाई। अशोक की धम्म नीति केवल धार्मिक प्रचार तक सीमित नहीं थी, बल्कि इसमें सामाजिक न्याय, सहिष्णुता और सभी प्राणियों के प्रति करुणा का भाव भी शामिल था।
अशोक के शिलालेख, विशेष रूप से 13वें शिलालेख, प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन के लिए अमूल्य स्रोत हैं। ये शिलालेख न केवल अशोक के शासनकाल और उनकी नीतियों के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं, बल्कि उस समय की सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक स्थितियों का भी एक विस्तृत चित्र प्रस्तुत करते हैं। पुरातात्विक साक्ष्य और इन शिलालेखों की व्याख्याओं ने मौर्य काल को समझने में इतिहासकारों की बहुत मदद की है। 13वें शिलालेख में अशोक द्वारा व्यक्त पश्चाताप और बौद्ध धर्म के प्रति उनका समर्पण, इतिहास के पन्नों पर एक असाधारण उदाहरण है।
विभिन्न स्थानों पर मिले अशोक के शिलालेखों में भाषा और लिपि का भी अध्ययन महत्वपूर्ण है। अशोक ने अपने संदेशों को आम लोगों तक पहुंचाने के लिए प्राकृत भाषा और ब्राह्मी लिपि का प्रयोग किया, जो उस समय व्यापक रूप से समझी जाती थी। कुछ शिलालेखों में खरोष्ठी और यूनानी लिपियों का भी प्रयोग किया गया है, जो साम्राज्य की व्यापकता और बाहरी संस्कृतियों के साथ उसके संपर्क को दर्शाते हैं। इन शिलालेखों की खोज और व्याख्या ने भारतीय पुरातत्व और प्राचीन इतिहास के क्षेत्र में क्रांति ला दी।
कलिंग युद्ध ने सम्राट अशोक को न केवल एक धर्मात्मा शासक बनाया, बल्कि उन्हें एक ऐसे सम्राट के रूप में भी स्थापित किया जिसने युद्ध की निरर्थकता को समझा और शांति व सहिष्णुता के मार्ग को चुना। उनकी यह नीति मौर्य साम्राज्य के लिए एक नए युग की शुरुआत थी। उन्होंने अपने शासन के माध्यम से एक ऐसे राज्य का निर्माण करने का प्रयास किया जहाँ लोग शांति, सद्भाव और नैतिक मूल्यों के साथ जी सकें। यही कारण है कि सम्राट अशोक को भारतीय इतिहास में एक महान और दूरदर्शी शासक के रूप में याद किया जाता है।
13वें शिलालेख में अशोक की व्यक्तिगत भावनाओं और उनके द्वारा लिए गए नैतिक निर्णय का वर्णन, उन्हें एक मानव सम्राट के रूप में प्रस्तुत करता है, न कि केवल एक विजेता के रूप में। यह शिलालेख दर्शाता है कि शक्ति और विजय के चरम पर भी, विवेक और करुणा का मार्ग चुना जा सकता है। कलिंग युद्ध का अनुभव अशोक के लिए एक अंधकारमय अध्याय था, लेकिन उसी ने उन्हें प्रकाश का मार्ग दिखाया, जिसने न केवल उनके जीवन को, बल्कि पूरे भारतीय उपमहाद्वीप को प्रभावित किया।
सम्राट अशोक का धम्म सिर्फ एक धार्मिक सिद्धांत नहीं था, बल्कि एक जीवन शैली थी जो सभी प्राणियों के प्रति सम्मान, सहिष्णुता और करुणा पर आधारित थी। उनके द्वारा स्थापित धम्म की अवधारणा आज भी प्रासंगिक है और हमें एक अधिक शांतिपूर्ण और न्यायपूर्ण समाज के निर्माण के लिए प्रेरित करती है। 13वें शिलालेख में व्यक्त की गई पश्चाताप की भावना और शांति की खोज, उन्हें महानतम शासकों में से एक बनाती है। क्या सम्राट अशोक की धम्म नीति आज के विश्व के लिए भी एक महत्वपूर्ण प्रेरणा स्रोत हो सकती है?