Answer: चंद्रगुप्त मौर्य ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की और उसने लगभग 322 ईसा पूर्व में मगध पर विजय प्राप्त की।
मौर्य साम्राज्य, प्राचीन भारत के इतिहास में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और प्रभावशाली साम्राज्य था। इसका उदय ईसा पूर्व चौथी शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ और यह लगभग डेढ़ शताब्दी तक चला। इस साम्राज्य ने भारतीय उपमहाद्वीप के एक बड़े हिस्से को पहली बार राजनीतिक रूप से एकीकृत किया, जिससे एक सुदृढ़ केंद्रीय सत्ता की स्थापना हुई। मौर्य साम्राज्य की स्थापना का श्रेय महान शासक चंद्रगुप्त मौर्य को जाता है, जिन्होंने नंद वंश के अत्याचारी शासन का अंत कर एक नए युग का सूत्रपात किया।
चंद्रगुप्त मौर्य का प्रारंभिक जीवन रहस्यमय है। पारंपरिक कथाओं के अनुसार, वह एक साधारण पृष्ठभूमि से आए थे। चाणक्य (जिन्हें कौटिल्य या विष्णुगुप्त के नाम से भी जाना जाता है) नामक एक चतुर ब्राह्मण विद्वान ने चंद्रगुप्त की प्रतिभा को पहचाना और उसे मगध के सिंहासन तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। चाणक्य का 'अर्थशास्त्र' नामक ग्रंथ राज्य-व्यवस्था, कूटनीति और अर्थशास्त्र पर एक अमूल्य कृति है, जो उस समय के मौर्य प्रशासन की झलक प्रदान करता है।
लगभग 322 ईसा पूर्व में, चंद्रगुप्त मौर्य ने मगध में नंद वंश के अंतिम शासक धनानंद को पराजित कर सत्ता पर अपना अधिकार जमाया। इस विजय ने न केवल मगध के राजनैतिक परिदृश्य को बदला, बल्कि संपूर्ण उत्तर भारत में मौर्य शक्ति का विस्तार किया। चंद्रगुप्त की सैन्य कुशलता और चाणक्य की रणनीतिक योजनाएँ इस विजय की कुंजी थीं। इस प्रकार, 322 ईसा पूर्व वह वर्ष माना जाता है जब मौर्य साम्राज्य की नींव रखी गई।
चंद्रगुप्त मौर्य का शासनकाल लगभग 24 वर्षों तक चला (लगभग 322 ईसा पूर्व से 298 ईसा पूर्व तक)। अपने शासनकाल के दौरान, उन्होंने एक विशाल साम्राज्य का निर्माण किया, जिसमें वर्तमान भारत का अधिकांश भाग, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के कुछ हिस्से शामिल थे। उन्होंने एक सुसंगठित प्रशासन, एक शक्तिशाली सेना और एक कुशल राजस्व प्रणाली की स्थापना की। उनके साम्राज्य की सीमाएं उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में दक्कन तक फैली हुई थीं।
चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल की एक महत्वपूर्ण घटना सेल्यूकस निकेटर के साथ उसका युद्ध था। सेल्यूकस, सिकंदर महान का एक सेनापति था, जिसने भारत पर आक्रमण करने का प्रयास किया। हालाँकि, चंद्रगुप्त ने उसे सफलतापूर्वक पराजित किया और सेल्यूकस को अपनी बेटी का विवाह चंद्रगुप्त से करना पड़ा, साथ ही अफगानिस्तान, बलूचिस्तान और सिंधु नदी के पश्चिम के कुछ प्रदेश मौर्य साम्राज्य को सौंपने पड़े। इस संधि ने मौर्य साम्राज्य की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा को बढ़ाया।
चंद्रगुप्त के बाद, उनका पुत्र बिंदुसार गद्दी पर बैठा। बिंदुसार ने भी अपने पिता के साम्राज्य को बनाए रखा और उसका विस्तार किया। यूनानी स्रोतों में उसे 'अमित्रोचेट्स' (अमित्रघातक) के नाम से जाना जाता है, जिसका अर्थ है 'शत्रुओं का संहार करने वाला'। उसने अपने साम्राज्य को और मजबूत किया और साम्राज्य में शांति और व्यवस्था बनाए रखी।
मौर्य साम्राज्य का सबसे महान शासक बिंदुसार का पुत्र, अशोक महान था। अशोक के शासनकाल (लगभग 268 ईसा पूर्व से 232 ईसा पूर्व तक) को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग माना जाता है। प्रारंभ में, अशोक एक महत्वाकांक्षी और क्रूर शासक था, जिसने कलिंग पर एक विनाशकारी युद्ध लड़ा। इस युद्ध में हुए भारी रक्तपात और विनाश ने अशोक के हृदय को झकझोर दिया।
कलिंग युद्ध के बाद, अशोक ने बौद्ध धर्म को अपना लिया और शांति, अहिंसा और धर्म के सिद्धांतों का प्रचार-प्रसार किया। उसने अपने साम्राज्य में बौद्ध धर्म को बढ़ावा देने के लिए कई स्तूप, मठ और स्तंभ लेख बनवाए। अशोक के शिलालेख, जो पूरे भारत में पाए जाते हैं, उस समय के समाज, धर्म और शासन व्यवस्था के बारे में अमूल्य जानकारी प्रदान करते हैं। वह एक ऐसे शासक के रूप में जाना जाता है जिसने व्यक्तिगत परिवर्तन के माध्यम से एक विशाल साम्राज्य पर धर्म और नैतिकता के आधार पर शासन किया।
मौर्य प्रशासन अत्यधिक केंद्रीकृत था। सम्राट सर्वोच्च अधिकारी होता था और उसके पास असीमित अधिकार होते थे। प्रशासन को विभिन्न विभागों में बांटा गया था, जैसे कि राजस्व, न्याय, रक्षा, वाणिज्य आदि। प्रांतों का शासन राज्यपालों (जिन्हें कुमार कहा जाता था) द्वारा किया जाता था, जो अक्सर शाही परिवार के सदस्य होते थे। स्थानीय स्तर पर, ग्राम सभाएँ स्थानीय मामलों का प्रबंधन करती थीं।
अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर आधारित थी, लेकिन व्यापार और वाणिज्य का भी महत्वपूर्ण स्थान था। मौर्य काल में मुद्रा का प्रचलन था और व्यापार मार्गों का विकास किया गया था। राज्य ने भूमि कर, उत्पादन कर और अन्य करों के माध्यम से राजस्व अर्जित किया।
मौर्य साम्राज्य की वास्तुकला और कला भी उल्लेखनीय है। अशोक के स्तंभ, जो पॉलिश किए हुए पत्थरों से बने थे और उन पर सिंह, हाथी या अन्य जानवरों की मूर्तियाँ उकेरी गई थीं, मौर्य कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। पाटलिपुत्र, मौर्य साम्राज्य की राजधानी, उस समय के सबसे बड़े और सबसे समृद्ध शहरों में से एक थी।
लगभग 187 ईसा पूर्व में, मौर्य साम्राज्य का पतन शुरू हो गया। इसके पतन के कई कारण थे, जिनमें आंतरिक विद्रोह, आर्थिक समस्याएं, उत्तराधिकार के संघर्ष और बाह्य आक्रमण शामिल थे। अंतिम मौर्य शासक बृहद्रथ की हत्या उसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने की, जिसने शुंग वंश की स्थापना की।
मौर्य साम्राज्य के पतन के बावजूद, इसने भारतीय उपमहाद्वीप पर एक अमिट छाप छोड़ी। इसने पहली बार एक एकीकृत राजनीतिक इकाई का निर्माण किया, एक कुशल प्रशासनिक प्रणाली की स्थापना की, और भारतीय संस्कृति, धर्म और कला के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। अशोक के धर्म और नैतिकता के संदेश आज भी प्रासंगिक हैं। क्या चंद्रगुप्त मौर्य की विजय को केवल सैन्य कौशल का परिणाम माना जा सकता है, या इसके पीछे तत्कालीन सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियाँ भी जिम्मेदार थीं?