Answer: मोहनजोदड़ो को 'मृतकों का टीला' कहा जाता था।
सिंधु घाटी सभ्यता, जिसे हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है, विश्व की सबसे प्राचीन नगरीय सभ्यताओं में से एक है। यह सभ्यता लगभग 2500 ईसा पूर्व से 1750 ईसा पूर्व तक फली-फूली और इसका विस्तार वर्तमान भारत और पाकिस्तान के बड़े भूभाग में था। इस सभ्यता की खोज 20वीं सदी की शुरुआत में हुई थी और इसने भारतीय इतिहास की समझ में क्रांति ला दी। पुरातात्विक उत्खननों से प्राप्त साक्ष्यों ने एक अत्यंत विकसित और सुसंगठित समाज की तस्वीर प्रस्तुत की, जिसने मानव इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान अर्जित किया है।
मोहनजोदड़ो, जो वर्तमान पाकिस्तान के सिंध प्रांत में स्थित है, सिंधु घाटी सभ्यता के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण शहरों में से एक था। इस शहर का नाम 'मोहनजोदड़ो' स्थानीय सिंधी भाषा से लिया गया है, जिसका शाब्दिक अर्थ 'मृतकों का टीला' (Mound of the Dead) है। यह नाम संभवतः इसलिए पड़ा क्योंकि जब इस स्थल की खोज हुई, तो यह एक विशाल टीले के रूप में दिखाई दे रहा था, जिसके नीचे प्राचीन शहर के अवशेष दबे हुए थे। यह नाम एक रहस्यमय और ऐतिहासिक महत्व को दर्शाता है, जो इस प्राचीन नगरीय केंद्र के दफन रहस्यों की ओर इशारा करता है।
मोहनजोदड़ो की नगरीय योजना अत्यंत प्रभावशाली थी। शहर को सुनियोजित ग्रिड पैटर्न पर बनाया गया था, जिसमें सड़कें एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। यहाँ की इमारतें पकी हुई ईंटों से बनी थीं, जो उस समय की एक महत्वपूर्ण तकनीकी उपलब्धि थी। यहाँ जल निकासी व्यवस्था भी अत्यंत उन्नत थी, जिसमें सड़कों के नीचे नालियों का जाल बिछा हुआ था और प्रत्येक घर में शौचालय और स्नानघर की सुविधा उपलब्ध थी। यह स्वच्छता और सार्वजनिक स्वास्थ्य के प्रति उस काल के लोगों की जागरूकता को दर्शाता है।
मोहनजोदड़ो के सबसे महत्वपूर्ण संरचनाओं में से एक 'महास्नानघर' (Great Bath) है। यह एक विशाल, आयताकार जलकुंड है, जो ईंटों से निर्मित है और इसके चारों ओर सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। माना जाता है कि इसका उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों या सार्वजनिक स्नान के लिए किया जाता था। इसकी जलरोधी बनाने की तकनीक उस समय के लिए असाधारण थी। महास्नानघर के आसपास के कक्षों का उपयोग संभवतः अनुष्ठानों की तैयारी या प्रतिभागियों के लिए किया जाता था।
मोहनजोदड़ो में एक विशाल 'अन्न भंडार' (Granary) भी मिला है, जो संभवतः शहर के लिए अनाज के भंडारण का कार्य करता था। यह इमारत भी काफी बड़ी थी और इसकी संरचना से यह अनुमान लगाया जाता है कि यह शहर के आर्थिक और खाद्य सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण थी। इसके अलावा, विभिन्न आवासीय भवनों, सार्वजनिक भवनों और कार्यशालाओं के अवशेष भी मिले हैं, जो शहर के सामाजिक और आर्थिक जीवन की विविधता को दर्शाते हैं।
यहाँ की मूर्तिकला और कलाकृतियाँ भी उल्लेखनीय हैं। 'नर्तकी' की कांस्य प्रतिमा, जो मोहनजोदड़ो से मिली है, अपनी सजीवता और कलात्मक उत्कृष्टता के लिए प्रसिद्ध है। यह प्रतिमा प्राचीन भारतीय मूर्तिकला के बेहतरीन उदाहरणों में से एक मानी जाती है। इसके अलावा, मुहरें (seals) भी बड़ी संख्या में मिली हैं, जिन पर विभिन्न जानवरों, पौराणिक आकृतियों और सिंधु लिपि में लेखन खुदा हुआ है। ये मुहरें व्यापार, प्रशासन और धार्मिक प्रथाओं के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती हैं।
सिंधु लिपि, जो इन मुहरों पर पाई जाती है, अभी तक पूरी तरह से पढ़ी नहीं जा सकी है। यह लिपि चित्रलिपि (pictographic) या वर्णमाला-आधारित (alphabetic) हो सकती है, और इसके अध्ययन से सिंधु सभ्यता के भाषा, साहित्य और धार्मिक विश्वासों के बारे में और अधिक जानकारी मिलने की उम्मीद है। लिपि को दाएँ से बाएँ या बाएँ से दाएँ लिखा जा सकता था, जो इसे और भी रहस्यमय बनाता है।
मोहनजोदड़ो का पतन कब और क्यों हुआ, यह अभी भी एक रहस्य बना हुआ है। विभिन्न सिद्धांत प्रस्तुत किए गए हैं, जिनमें जलवायु परिवर्तन, नदियों के मार्ग में परिवर्तन, बाढ़, भूकंप, या बाहरी आक्रमण शामिल हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि यह सभ्यता धीरे-धीरे क्षीण हुई, जबकि अन्य मानते हैं कि इसका अंत अचानक हुआ। इस पतन के कारणों की खोज आज भी जारी है और यह विद्वानों के बीच चर्चा का एक प्रमुख विषय है।
मोहनजोदड़ो, 'मृतकों का टीला' होने के बावजूद, जीवन और सभ्यता के एक समृद्ध इतिहास का प्रतीक है। इसने यह सिद्ध किया कि प्राचीन भारत में भी एक अत्यंत उन्नत नगरीय संस्कृति मौजूद थी, जिसने वास्तुकला, जल प्रबंधन, स्वच्छता, कला और सामाजिक संगठन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल कीं। इस सभ्यता की प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है, जो हमें हमारे गौरवशाली अतीत की याद दिलाती है।
मोहनजोदड़ो के खुदाई से प्राप्त कलाकृतियाँ और संरचनाएं हमें उस समय के लोगों के जीवन, उनकी मान्यताओं और उनकी तकनीकी क्षमताओं की एक झलक दिखाती हैं। यह शहर न केवल एक ऐतिहासिक स्थल है, बल्कि मानव सभ्यता के विकास के अध्ययन के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत भी है। इस सभ्यता के बारे में अधिक जानने के लिए, इसके अन्य प्रमुख स्थलों, जैसे हड़प्पा, लोथल, कालीबंगा और धोलावीरा का अध्ययन करना भी आवश्यक है। प्रत्येक स्थल अपनी अनूठी विशेषताओं के साथ सिंधु घाटी सभ्यता के विशाल ताने-बाने को समझने में मदद करता है।
मोहनजोदड़ो में मिली 'पुजारी-राजा' की छोटी पत्थर की मूर्ति, हालांकि इसके वास्तविक महत्व पर बहस है, लेकिन यह उस समय के सामाजिक पदानुक्रम और शासन प्रणाली के बारे में अनुमान लगाने में मदद करती है। इसकी शांत मुद्रा और विस्तृत दाढ़ी उस समय की कलात्मक शैली का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। साथ ही, टेराकोटा (मिट्टी के बर्तन) से बनी विभिन्न आकृतियाँ, खिलौने और पशुओं के मॉडल बच्चों के जीवन और मनोरंजन के साधनों पर प्रकाश डालते हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित थी, और मोहनजोदड़ो जैसे शहर व्यापार के महत्वपूर्ण केंद्र थे। यहाँ से प्राप्त औजार, बर्तन और अन्य सामग्री इंगित करती है कि वे विभिन्न प्रकार की शिल्पकलाओं में निपुण थे। तांबे, कांसे और सोने जैसी धातुओं का उपयोग गहने, हथियार और औजार बनाने में किया जाता था। वस्त्र निर्माण भी एक महत्वपूर्ण उद्योग रहा होगा, जैसा कि टेराकोटा की मूर्तियों पर कपड़ों के चित्रण से अनुमान लगाया जा सकता है।
मोहनजोदड़ो का शहरी नियोजन, विशेष रूप से सड़कों का जाल और जल निकासी प्रणाली, उस समय की इंजीनियरिंग और सार्वजनिक स्वास्थ्य के प्रति प्रतिबद्धता का एक ज्वलंत प्रमाण है। चौड़ी सड़कें, समकोण पर चौराहे और प्रत्येक घर से जुड़ी हुई नालियाँ यह दर्शाती हैं कि उन्होंने शहरी जीवन की गुणवत्ता को कितना महत्व दिया। यह आधुनिक शहरों के लिए भी एक मिसाल है।
सिंधु घाटी सभ्यता का अंत एक जटिल और बहुआयामी विषय है। यह संभावना है कि कई कारक एक साथ मिलकर इस महान सभ्यता के पतन का कारण बने। जलवायु परिवर्तन, जिसने कृषि को प्रभावित किया होगा, या नदियों के जल स्तर में बदलाव, जो जीवन रेखाएँ थीं, प्रमुख कारण हो सकते हैं। इन सब के बावजूद, सिंधु घाटी सभ्यता की विरासत आज भी जीवित है, जो हमें हमारे पूर्वजों की उपलब्धियों पर गर्व करने का अवसर देती है। क्या सिंधु सभ्यता के पतन से मिले सबक आज की सभ्यताओं के लिए प्रासंगिक हैं?