Answer: मोहनजोदड़ो
सिंधु घाटी सभ्यता, जिसे हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है, दक्षिण एशिया की सबसे पुरानी शहरी सभ्यताओं में से एक है। यह लगभग 3300 ईसा पूर्व से 1300 ईसा पूर्व तक पनपी, और इसका विस्तार वर्तमान पाकिस्तान और उत्तर-पश्चिमी भारत के क्षेत्रों में फैला हुआ था। इस सभ्यता की खोज 1920 के दशक में हुई, और तब से, पुरातत्वविदों ने इसके कई महत्वपूर्ण स्थलों का उत्खनन किया है, जिससे हमें इस सभ्यता के बारे में अमूल्य जानकारी मिली है।
सिंधु घाटी सभ्यता की एक उल्लेखनीय विशेषता इसकी शहरी नियोजन की उन्नत प्रणाली थी। इस सभ्यता के शहरों को बेहद योजनाबद्ध तरीके से बनाया गया था, जिसमें चौड़ी सड़कें, जल निकासी प्रणाली, और आवासीय और सार्वजनिक इमारतें सम्मिलित थीं। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसे प्रमुख शहरों में विशाल स्नानागार, अन्नागार, और अन्य सार्वजनिक भवन थे, जो इस सभ्यता के आर्थिक और सामाजिक विकास का प्रमाण देते हैं।
मोहनजोदड़ो, सिंधु घाटी सभ्यता का एक प्रमुख शहर था, जिसका अर्थ है 'मृतकों का टीला'। यहाँ से मिले अवशेषों से पता चलता है कि यह एक समृद्ध और विकसित शहर था। मोहनजोदड़ो में एक विशाल स्नानागार पाया गया है, जो इस सभ्यता की उन्नत इंजीनियरिंग और नगर नियोजन क्षमता का प्रमाण है। इस स्नानागार की निर्माण कला और आकार अद्भुत है, और यह उस समय की तकनीकी प्रगति को दर्शाता है।
हड़प्पा, सिंधु घाटी सभ्यता का एक और महत्वपूर्ण स्थल है, जिसका नाम इस सभ्यता के नाम से ही जुड़ा हुआ है। हड़प्पा में भी कई महत्वपूर्ण संरचनाएँ मिली हैं, जिनमें अन्नागार और आवासीय इमारतें शामिल हैं। इन संरचनाओं से पता चलता है कि हड़प्पा भी एक अच्छी तरह से नियोजित और विकसित शहर था, जहाँ व्यापार और कृषि प्रमुख गतिविधियाँ थीं।
सिंधु घाटी सभ्यता की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित थी, जिसमें गेहूँ, जौ, कपास और अन्य फसलों का उत्पादन किया जाता था। पशुधन पालन भी एक महत्वपूर्ण गतिविधि थी। इस सभ्यता के लोग व्यापार में भी लगे हुए थे, और मेसोपोटामिया जैसे दूर के क्षेत्रों से व्यापारिक संबंध थे। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में मिले मोहरे और अन्य वस्तुएँ इस व्यापारिक संपर्क को दर्शाती हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों की लिपि अभी तक पूरी तरह से समझी नहीं गई है। हालांकि, कई शिलालेख और मोहरें मिली हैं जिन पर चित्र और प्रतीक अंकित हैं। इन प्रतीकों को समझने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं, ताकि इस सभ्यता के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त की जा सके। इस सभ्यता के कला और शिल्प भी बेहद विकसित थे, और मिट्टी के बर्तन, मोहरे, और आभूषण बेहद सुंदर और कुशलता से बनाए गए थे।
सिंधु घाटी सभ्यता के अचानक पतन के कारणों को लेकर अभी भी बहस चल रही है। कुछ सिद्धांत जलवायु परिवर्तन, बाढ़, या बाहरी आक्रमणों का उल्लेख करते हैं। लेकिन, यह एक जटिल सवाल है, जिसका जवाब अभी तक पूरी तरह से नहीं मिल पाया है। इस सभ्यता के अवशेष हमें इस सभ्यता की समृद्ध संस्कृति और उन्नत तकनीक के बारे में बताते हैं, जो हमारी समझ को बढ़ाते हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता के अध्ययन से हमें प्राचीन भारत के इतिहास के बारे में अमूल्य जानकारी मिलती है। इस सभ्यता के शहरों के नियोजन, व्यापारिक संबंधों, और कला और शिल्प ने हमारी समझ को व्यापक बनाया है। लेकिन, कई रहस्य अभी भी अनसुलझे हैं, जैसे कि उनकी लिपि का रहस्य। क्या सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के और भी कारण हो सकते हैं जिन पर अभी तक विचार नहीं किया गया है?