Answer: मोहनजोदड़ो
सिंधु घाटी सभ्यता, जिसे हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है, प्राचीन विश्व की सबसे रहस्यमयी और महत्वपूर्ण सभ्यताओं में से एक है। लगभग 2600 ईसा पूर्व से 1900 ईसा पूर्व तक फली-फूली यह सभ्यता भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भाग में, वर्तमान पाकिस्तान और उत्तर-पश्चिमी भारत में विस्तृत थी। इस सभ्यता की खोज 20वीं सदी की शुरुआत में हुई और इसने भारतीय इतिहास के ज्ञान में क्रांति ला दी। इसने तत्कालीन विश्व की अन्य प्रमुख सभ्यताओं, जैसे मेसोपोटामिया और मिस्र, के साथ व्यापारिक और सांस्कृतिक संबंध भी स्थापित किए थे।
सिंधु घाटी सभ्यता अपनी सुनियोजित शहरी नियोजन, उन्नत जल निकासी प्रणालियों, और परिष्कृत कला और शिल्प के लिए जानी जाती है। इस सभ्यता के दो सबसे बड़े और सबसे महत्वपूर्ण शहर हड़प्पा और मोहनजोदड़ो थे, जिनके नाम पर ही इस सभ्यता का नामकरण किया गया है। इन शहरों में मिली खुदाईयों से प्राप्त कलाकृतियाँ, मुहरें, और इमारतों के अवशेष हमें उस समय के लोगों के जीवन, समाज, अर्थव्यवस्था, और धर्म के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान करते हैं।
मोहनजोदड़ो, जिसका शाब्दिक अर्थ 'मृतकों का टीला' है, सिंधु नदी के तट पर स्थित एक प्रमुख शहरी केंद्र था। यह सभ्यता के सबसे भव्य स्थलों में से एक है और यहां की खुदाईयों ने अनेक महत्वपूर्ण खोजें की हैं। इन खोजों में विशाल स्नानागार (Great Bath), अन्न भंडार (Granary), और आवासीय भवन शामिल हैं, जो उस समय की इंजीनियरिंग और वास्तुकला की उत्कृष्टता को दर्शाते हैं। मोहनजोदड़ो के सबसे प्रसिद्ध निष्कर्षों में से एक 'नृत्यरत स्त्री' की कांस्य प्रतिमा है।
यह 'नृत्यरत स्त्री' की प्रतिमा केवल 10.5 सेंटीमीटर (लगभग 4 इंच) लंबी है, लेकिन यह अविश्वसनीय रूप से सजीव और गतिशील है। यह प्रतिमा उस समय की धातु विज्ञान (metallurgy) और मूर्तिकला के उत्कृष्ट कौशल का प्रमाण है। जिस तकनीक से इसे गढ़ा गया है, उसे 'लॉस्ट-वैक्स कास्टिंग' (lost-wax casting) या 'मोम पिघलाकर ढलाई' विधि कहा जाता है, जो अत्यंत जटिल प्रक्रिया है। यह तकनीक दर्शाती है कि सिंधु घाटी के कारीगर धातु को अत्यंत कुशलता से ढालने में सक्षम थे।
प्रतिमा में दर्शाई गई स्त्री का शरीर पतली और लचीली काया के साथ, आत्मविश्वासपूर्ण मुद्रा में है। उसके हाथ और पैर थोड़े फैले हुए हैं, जो नृत्य की किसी विशेष मुद्रा को इंगित करते हैं। उसके चेहरे के भाव रहस्यमय हैं, और उसकी आँखें थोड़ी चौड़ी और तिरछी हैं। उसके लंबे बाल एक पोनीटेल में बंधे हैं जो उसकी पीठ पर लटक रही है। सबसे आश्चर्यजनक विशेषता उसकी आभूषणों की भरमार है। उसने अपनी गर्दन, कलाईयों और बाजुओं पर भारी मात्रा में चूड़ियाँ पहनी हुई हैं, जो तत्कालीन सामाजिक स्थिति और सौंदर्य बोध को दर्शाती हैं।
यह प्रतिमा सिंधु घाटी सभ्यता के कलात्मक कौशल और सौंदर्यशास्त्र का एक जीवंत प्रमाण है। यह न केवल तकनीकी महारत को दर्शाती है, बल्कि उस समय के समाज में कला और कलाकृतियों के महत्व को भी उजागर करती है। नर्तकी की गतिशील मुद्रा और उसके चेहरे के भाव, भले ही रहस्यमय हों, एक जीवन शक्ति और ऊर्जा का संचार करते हैं जो इसे अत्यंत आकर्षक बनाती है। यह प्रतिमा उस समय के कलाकारों की कल्पनाशीलता और रचनात्मकता का एक शानदार उदाहरण है।
इस प्रतिमा के अलावा, मोहनजोदड़ो से कई अन्य महत्वपूर्ण कलाकृतियाँ प्राप्त हुई हैं, जिनमें टेराकोटा की मूर्तियाँ, मुहरें जिन पर विभिन्न जानवरों और लिप्यांकित चिह्न अंकित हैं, और मिट्टी के बर्तन शामिल हैं। ये सभी वस्तुएँ हमें सिंधु घाटी के निवासियों के दैनिक जीवन, धार्मिक विश्वासों, और व्यापारिक गतिविधियों की एक झलक प्रदान करती हैं। मुहरों पर अंकित लिपियाँ अभी तक पूरी तरह से पढ़ी नहीं गई हैं, जो इस सभ्यता के रहस्यों को और बढ़ाती हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता का पतन एक विवादास्पद विषय है, जिसके कई संभावित कारण माने जाते हैं, जैसे जलवायु परिवर्तन, नदियों के मार्ग में परिवर्तन, बाढ़, या बाहरी आक्रमण। हालांकि, इस सभ्यता के प्रभाव को पूरी तरह से नकारा नहीं जा सकता। इसके शहरी नियोजन के सिद्धांत, जल प्रबंधन की तकनीकें, और कलात्मक परंपराएँ बाद की भारतीय संस्कृतियों में भी देखी जा सकती हैं।
'नृत्यरत स्त्री' की कांस्य प्रतिमा, मोहनजोदड़ो के महतत्व का एक प्रतिष्ठित प्रतीक बन गई है। यह प्रतिमा न केवल भारतीय पुरातत्व की सबसे महत्वपूर्ण खोजों में से एक है, बल्कि मानव इतिहास की कलात्मक उपलब्धियों का एक अमूल्य खजाना भी है। यह हमें उस प्राचीन काल में ले जाती है जब मानव ने धातु को आकार देना सीखा और अपनी भावनाओं और कल्पनाओं को कला के माध्यम से व्यक्त करना शुरू किया। यह दर्शाती है कि आज से हजारों साल पहले भी, मानव अपनी रचनात्मकता और कलात्मक अभिव्यक्ति में कितना समृद्ध था।
यह प्रतिमा सिंधु घाटी सभ्यता की उन्नत संस्कृति और कलात्मक समझ का एक अद्भुत नमूना है। क्या इस प्रतिमा में दर्शाई गई नृत्य मुद्रा किसी विशिष्ट धार्मिक अनुष्ठान या सामाजिक समारोह का हिस्सा थी, यह अभी भी शोध का विषय है।