Answer: मोहनजोदड़ो
सिंधु घाटी सभ्यता, जिसे हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है, प्राचीन विश्व की सबसे महत्वपूर्ण और रहस्यमय सभ्यताओं में से एक है। यह सभ्यता लगभग 2600 ईसा पूर्व से 1900 ईसा पूर्व तक अपनी चरम पर थी और इसने भारतीय उपमहाद्वीप के विशाल क्षेत्र को अपने आगोश में ले लिया था, जिसमें वर्तमान पाकिस्तान और उत्तर-पश्चिमी भारत के हिस्से शामिल थे। इस सभ्यता की खोज 20वीं सदी की शुरुआत में हुई थी, जिसने भारतीय इतिहास की समझ में क्रांति ला दी।
सिंधु घाटी सभ्यता की सबसे उल्लेखनीय विशेषताओं में से एक इसका शहरी नियोजन था। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसे प्रमुख शहर सुनियोजित ग्रिड पैटर्न पर बनाए गए थे, जिनमें पक्की ईंटों से बनी सड़कें, नालियों की व्यवस्था और सार्वजनिक भवन थे। घरों में अक्सर शौचालय और स्नानघर होते थे, जो उस समय की अन्य सभ्यताओं की तुलना में एक उन्नत स्वच्छता प्रणाली का संकेत देते हैं।
मोहनजोदड़ो, जिसका अर्थ है 'मृतकों का टीला', इस सभ्यता के सबसे बड़े और सबसे महत्वपूर्ण शहरी केंद्रों में से एक था। यहाँ खुदाई में जो संरचनाएं मिली हैं, उन्होंने इतिहासकारों और पुरातत्वविदों को चकित कर दिया है। इनमें सबसे प्रमुख है 'विशाल स्नानागार' (The Great Bath)। यह एक विशाल आयताकार जलकुंड है, जिसे ईंटों से बनाया गया था और संभवतः धार्मिक या अनुष्ठानिक उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जाता था। इसकी संरचना और निर्माण तकनीक उस समय की उन्नत इंजीनियरिंग कौशल का प्रमाण है।
विशाल स्नानागार का माप लगभग 12 मीटर लंबा, 7 मीटर चौड़ा और 2.4 मीटर गहरा है। इसके चारों ओर ईंटों की मोटी दीवारें हैं, और इसे जलरोधक बनाने के लिए विशेष जिप्सम मोर्टार का उपयोग किया गया था। स्नानागार में उतरने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई थीं, और संभवतः इसे पानी भरने और निकालने के लिए एक जटिल प्रणाली भी थी। इसके चारों ओर कमरे भी थे, जिनका उपयोग संभवतः तैयारियों या विश्राम के लिए किया जाता था।
विशाल स्नानागार के अलावा, मोहनजोदड़ो से कई अन्य महत्वपूर्ण कलाकृतियाँ और संरचनाएं प्राप्त हुई हैं। इनमें 'भवन सी' (Building Complex C) नामक एक बड़ा सार्वजनिक भवन, जिसमें 27 स्तंभ थे, अन्न भंडार (Granary), और कई छोटी आवासीय इमारतें शामिल हैं। यहां से मिली मुहरें, टेराकोटा मूर्तियाँ, आभूषण और मिट्टी के बर्तन सिंधु घाटी सभ्यता की कला, शिल्प और वाणिज्यिक गतिविधियों की जानकारी देते हैं।
मोहनजोदड़ो से प्राप्त कुछ सबसे प्रसिद्ध कलाकृतियों में 'नर्तकी' की कांस्य प्रतिमा, 'दाढ़ी वाला पुजारी' (Priest-King) की पत्थर की मूर्ति और विभिन्न जानवरों, जैसे बैल, हाथी, बाघ और गेंडा की आकृतियों वाली मुहरें शामिल हैं। इन मुहरों पर लिखी गई लिपि, जिसे सिंधु लिपि कहा जाता है, अभी तक पूरी तरह से पढ़ी नहीं जा सकी है, जो इस सभ्यता के रहस्यों में से एक है।
सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के कारणों पर आज भी बहस जारी है। कुछ प्रमुख सिद्धांतों में जलवायु परिवर्तन, नदियों के मार्ग में परिवर्तन, बाढ़, भूकंप, या बाहरी आक्रमण शामिल हैं। जो भी कारण रहे हों, इस सभ्यता का अंत एक महत्वपूर्ण युग का अवसान था, जिसने बाद की भारतीय संस्कृतियों को गहराई से प्रभावित किया।
हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसी साइटों की खुदाई ने न केवल प्राचीन भारत के इतिहास को उजागर किया है, बल्कि शहरी नियोजन, जल प्रबंधन और सामाजिक संगठन के क्षेत्र में उस समय की उन्नत समझ को भी प्रदर्शित किया है। विशाल स्नानागार, विशेष रूप से, उस समाज की जटिलता और उनके जीवन के अनुष्ठानिक पहलुओं में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
यह स्नानागार न केवल एक भौतिक संरचना थी, बल्कि यह तत्कालीन समाज की सामाजिक और धार्मिक मान्यताओं का भी प्रतीक थी। यह दर्शाता है कि जल का शुद्धिकरण और अनुष्ठानिक स्नान उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थे। इस प्रकार के सार्वजनिक स्नानघर अक्सर धार्मिक समारोहों या समुदायों के सामूहिक आयोजनों का केंद्र होते थे।
सिंधु घाटी सभ्यता की जल प्रबंधन प्रणाली भी अत्यंत प्रभावशाली थी। उन्होंने नहरों, कुओं और संभवतः जलाशयों का उपयोग करके पानी को प्रभावी ढंग से संग्रहीत और वितरित किया। घरों में व्यक्तिगत कुएं और स्नानघर की उपलब्धता, साथ ही सार्वजनिक नालियों की व्यवस्था, स्वच्छता के प्रति उनके उच्च स्तर को दर्शाती है।
मोहनजोदड़ो से प्राप्त अन्य महत्वपूर्ण खोजों में 'धान्यागार' (Granary) भी शामिल है। यह एक विशाल संरचना है जो संभवतः अधिशेष अनाज के भंडारण के लिए उपयोग की जाती थी। इसका आकार और निर्माण की तकनीक उस समय के कृषि उत्पादन और अर्थव्यवस्था की शक्ति को इंगित करती है।
सिंधु घाटी सभ्यता की कला और शिल्प भी उल्लेखनीय थे। वे मिट्टी के बर्तन बनाने, धातु विज्ञान (विशेषकर कांस्य), और मनके बनाने में कुशल थे। उनकी कलाकृतियाँ अक्सर ज्यामितीय पैटर्न, जानवरों और मानव आकृतियों से सजी होती थीं, जो उनकी सौंदर्य चेतना को दर्शाती हैं।
सिंधु लिपि, हालांकि अभी भी एक रहस्य बनी हुई है, उस समय के संचार और संभवतः धार्मिक या प्रशासनिक रिकॉर्ड रखने के महत्व को दर्शाती है। इस लिपि को समझने का प्रयास सदियों से जारी है और यह सभ्यता के बारे में और अधिक जानकारी उजागर कर सकता है।
मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के अलावा, लोथल, धोलावीरा, कालीबंगा, राखीगढ़ी और रोपड़ जैसे कई अन्य महत्वपूर्ण स्थल भी खोजे गए हैं, जिन्होंने सिंधु घाटी सभ्यता की व्यापकता और विविधता को समझने में मदद की है। प्रत्येक स्थल की अपनी अनूठी विशेषताएं हैं, लेकिन वे सभी एक समान शहरीकरण, कला और जीवन शैली साझा करते हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता की खोज ने प्राचीन भारतीय इतिहास के कालक्रम को महत्वपूर्ण रूप से बदल दिया। इसने दिखाया कि भारतीय उपमहाद्वीप में पहले से ही एक अत्यंत विकसित सभ्यता मौजूद थी, जो मेसोपोटामिया और मिस्र जैसी समकालीन सभ्यताओं के बराबर या उससे भी आगे थी।
आज, मोहनजोदड़ो और हड़प्पा यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं, जो उनकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता को रेखांकित करते हैं। ये स्थल दुनिया भर के पर्यटकों और शोधकर्ताओं को आकर्षित करते हैं, जो इस प्राचीन सभ्यता के रहस्यों को जानने के लिए उत्सुक रहते हैं।
विशाल स्नानागार, अपने समय के लिए एक इंजीनियरिंग चमत्कार होने के साथ-साथ, हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि आज के समाजों में सामूहिक स्थान और जल का उपयोग किस प्रकार सामाजिक और सांस्कृतिक प्रथाओं को आकार देता है। क्या हम अपनी जल प्रबंधन और सार्वजनिक स्थानों के उपयोग में सिंधु घाटी सभ्यता से कुछ सीख सकते हैं?