भारत में 'मिश्रित' विश्व धरोहर स्थल की अवधारणा क्या है, और यूनेस्को इन स्थलों को सांस्कृतिक और प्राकृतिक दोनों दृष्टियों से किस विशिष्ट महत्व के आधार पर मान्यता देता है? भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) और अन्य संबंधित संस्थाएँ इनके संरक्षण में कैसे योगदान करती हैं?
Answer: भारत में 'मिश्रित' विश्व धरोहर स्थल वे हैं जो उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य (Outstanding Universal Value) के सांस्कृतिक और प्राकृतिक दोनों मानदंडों को पूरा करते हैं। यूनेस्को इन स्थलों को ऐसे अद्वितीय स्थानों के रूप में पहचानता है जहाँ मानव सभ्यता और प्राकृतिक पर्यावरण के बीच गहरा संबंध स्थापित होता है, जो ऐतिहासिक, सौंदर्यवादी, वैज्ञानिक या पारिस्थितिक महत्व को दर्शाता है। खंगचेंदज़ोंगा राष्ट्रीय उद्यान इसका एकमात्र उदाहरण है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) मुख्य रूप से सांस्कृतिक स्थलों के संरक्षण, मरम्मत, प्रलेखन और प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जबकि वन और पर्यावरण मंत्रालय तथा राज्य वन विभाग प्राकृतिक और मिश्रित स्थलों के पारिस्थितिकीय संरक्षण और जैव विविधता प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करते हैं। ये संस्थाएँ मिलकर इन अमूल्य विरासतों को भविष्य की पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखती हैं।
भारत, अपनी समृद्ध सांस्कृतिक और प्राकृतिक विविधता के साथ, यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में कई असाधारण स्थलों का घर है। ये स्थल अद्वितीय सार्वभौमिक मूल्य (Outstanding Universal Value - OUV) के रूप में विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त हैं, जो मानवता के लिए महत्वपूर्ण हैं और जिन्हें भविष्य की पीढ़ियों के लिए संरक्षित किया जाना चाहिए। वर्तमान में, भारत में 42 यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं, जिनमें सांस्कृतिक, प्राकृतिक और एक मिश्रित श्रेणी का स्थल शामिल है, जो देश की गौरवशाली विरासत और प्राकृतिक सौंदर्य को दर्शाते हैं। इन स्थलों का संरक्षण न केवल भारत के लिए बल्कि पूरे विश्व समुदाय के लिए एक साझा जिम्मेदारी है।यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों को मुख्य रूप से तीन श्रेणियों में वर्गीकृत करता है: सांस्कृतिक, प्राकृतिक और मिश्रित। सांस्कृतिक स्थल वे हैं जो मानव रचनात्मकता की उत्कृष्ट कृति, ऐतिहासिक घटनाओं के अद्वितीय साक्ष्य, या किसी सभ्यता के विशेष कलात्मक और स्थापत्य विकास का प्रतिनिधित्व करते हैं। प्राकृतिक स्थल वे हैं जो पृथ्वी के इतिहास के प्रमुख चरणों, भूवैज्ञानिक प्रक्रियाओं, या असाधारण प्राकृतिक सुंदरता, पारिस्थितिकीय महत्व और जैव विविधता के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण हैं। 'मिश्रित' स्थल वे होते हैं जो सांस्कृतिक और प्राकृतिक दोनों प्रकार के उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य के मानदंडों को एक साथ पूरा करते हैं। इन स्थलों को मान्यता देने के लिए यूनेस्को के दस विशिष्ट मानदंड होते हैं, जिनमें से कम से कम एक को पूरा करना आवश्यक है।भारत के सांस्कृतिक स्थलों में आगरा का ताजमहल, फतेहपुर सीकरी, दिल्ली का लाल किला, अजंता और एलोरा की गुफाएँ, कोणार्क का सूर्य मंदिर, सांची के बौद्ध स्मारक और खजुराहो के मंदिर जैसे अनेक उदाहरण शामिल हैं। ये स्थल प्राचीन से मध्यकालीन भारत की स्थापत्य कला, मूर्तिकला, धार्मिक परंपराओं और शहरी नियोजन की उत्कृष्ट झलक प्रस्तुत करते हैं। दूसरी ओर, काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान, मानस वन्यजीव अभयारण्य, सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान और पश्चिमी घाट जैसे प्राकृतिक स्थल भारत की समृद्ध जैव विविधता, अनूठी पारिस्थितिकी प्रणालियों और महत्वपूर्ण प्राकृतिक आवासों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जहाँ कई लुप्तप्राय प्रजातियाँ पाई जाती हैं।'मिश्रित' विश्व धरोहर स्थलों की अवधारणा भारत में खंगचेंदज़ोंगा राष्ट्रीय उद्यान (Khangchendzonga National Park) के रूप में एक अद्वितीय उदाहरण पाती है। सिक्किम में स्थित यह उद्यान भारत का एकमात्र मिश्रित विश्व धरोहर स्थल है, जिसे 2016 में यूनेस्को द्वारा मान्यता दी गई थी। यह स्थल न केवल दुनिया की तीसरी सबसे ऊँची चोटी, माउंट कंचनजंगा, के आसपास के शानदार पहाड़ी परिदृश्य, हिमनदों और विविध जैव विविधता को समेटे हुए है (प्राकृतिक महत्व), बल्कि यह सिक्किमी बौद्ध धर्म के साथ गहराई से जुड़े स्वदेशी लेप्चा समुदाय की पवित्र मान्यताओं और प्रथाओं का भी प्रतिनिधित्व करता है (सांस्कृतिक महत्व)। लेप्चा लोग कंचनजंगा को एक पवित्र पर्वत और अपने संरक्षक देवता का निवास स्थान मानते हैं, जिससे यह स्थल सांस्कृतिक और प्राकृतिक दोनों दृष्टियों से अद्वितीय और अमूल्य बन जाता है।भारत में विश्व धरोहर स्थलों के संरक्षण में कई संस्थाएँ महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India - ASI) सांस्कृतिक स्थलों की देखरेख, मरम्मत, बहाली और प्रलेखन के लिए प्राथमिक संस्था है। यह प्राचीन स्मारकों और पुरातात्विक स्थलों की सुरक्षा और प्रबंधन सुनिश्चित करता है। प्राकृतिक और मिश्रित स्थलों के लिए, केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change), राज्य वन विभाग और वन्यजीव संरक्षण संगठन (जैसे वन्यजीव ट्रस्ट ऑफ इंडिया) जिम्मेदार होते हैं। ये संस्थाएँ जैव विविधता के संरक्षण, पारिस्थितिकीय संतुलन बनाए रखने और स्थानीय समुदायों को शामिल करते हुए सतत प्रबंधन योजनाएँ लागू करती हैं। इन सभी प्रयासों का उद्देश्य इन अमूल्य विरासतों को वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के लिए अक्षुण्ण रखना है।
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