Answer: पश्चिमी घाट
जैव विविधता, जिसे 'जैविक विविधता' भी कहा जाता है, पृथ्वी पर जीवन के विभिन्न रूपों, आनुवंशिक भिन्नता और पारिस्थितिक तंत्र की जटिलता को दर्शाती है। यह न केवल प्रजातियों की संख्या है, बल्कि उन सभी अंतःक्रियाओं का भी समूह है जो इन प्रजातियों को एक साथ बांधती हैं और उन्हें जीवित रहने में मदद करती हैं। एक स्वस्थ ग्रह के लिए जैव विविधता अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदान करती है, जैसे स्वच्छ हवा और पानी, उपजाऊ मिट्टी, परागण, जलवायु विनियमन और रोग नियंत्रण। यह मानव समाज के लिए भी आवश्यक है, क्योंकि यह भोजन, दवा, फाइबर और ईंधन जैसे संसाधन प्रदान करती है, और सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व रखती है।
जैव विविधता को तीन मुख्य स्तरों पर समझा जा सकता है: आनुवंशिक विविधता (एक प्रजाति के भीतर जीन की विविधता), प्रजाति विविधता (विभिन्न प्रजातियों की संख्या और उनकी प्रचुरता), और पारिस्थितिक तंत्र विविधता (विभिन्न प्रकार के पारिस्थितिक तंत्र, जैसे जंगल, घास के मैदान, आर्द्रभूमि, और महासागर)। प्रत्येक स्तर एक दूसरे से गहराई से जुड़ा हुआ है और समग्र पारिस्थितिक तंत्र के स्वास्थ्य और स्थिरता में योगदान देता है। आनुवंशिक विविधता एक प्रजाति को बदलती पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुकूल होने की क्षमता प्रदान करती है, जबकि प्रजाति विविधता पारिस्थितिक तंत्र की जटिलता और लचीलापन सुनिश्चित करती है। पारिस्थितिक तंत्र विविधता पृथ्वी की विभिन्न जलवायु और भौगोलिक परिस्थितियों में जीवन के विभिन्न रूपों के विकास को दर्शाती है।
दुनिया भर में, कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जिन्हें 'जैव विविधता हॉटस्पॉट' के रूप में नामित किया गया है। ये वे क्षेत्र हैं जो प्रजातियों की उच्च स्तर की एंडेमिज्म (यानी, वे प्रजातियां जो केवल वहीं पाई जाती हैं) और गंभीर खतरे का सामना कर रहे हैं, क्योंकि उन्होंने अपने मूल वनस्पति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा खो दिया है। इन हॉटस्पॉट को संरक्षित करना वैश्विक जैव विविधता के संरक्षण के लिए सर्वोपरि है, क्योंकि ये क्षेत्र पृथ्वी पर जीवन के एक छोटे से हिस्से में प्रजातियों के एक बड़े हिस्से को धारण करते हैं। ऐसे क्षेत्रों में अक्सर मानव गतिविधियों, जैसे कि वनों की कटाई, कृषि विस्तार, शहरीकरण और प्रदूषण के कारण तीव्र दबाव होता है।
भारत, अपनी विशाल भौगोलिक विविधता और विभिन्न जलवायु क्षेत्रों के साथ, दुनिया के सबसे समृद्ध जैव विविधता वाले देशों में से एक है। देश में चार प्रमुख जैव विविधता हॉटस्पॉट हैं: हिमालय, पश्चिमी घाट, इंडो-बर्मा और सुंडालैंड। इन हॉटस्पॉट में अविश्वसनीय रूप से विविध प्रकार के पौधों और जानवरों की प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से कई विश्व स्तर पर अद्वितीय हैं। भारत सरकार और विभिन्न गैर-सरकारी संगठन इन क्षेत्रों के संरक्षण के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं, राष्ट्रीय उद्यानों, वन्यजीव अभयारण्यों और बायोस्फीयर रिजर्व की स्थापना के माध्यम से।
इनमें से, पश्चिमी घाट एक विशेष रूप से महत्वपूर्ण जैव विविधता हॉटस्पॉट है। यह पर्वत श्रृंखला भारत के पश्चिमी तट के समानांतर फैली हुई है, जो गुजरात के दक्षिण से लेकर केरल तक विस्तृत है। पश्चिमी घाट को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में भी मान्यता प्राप्त है, जो इसके असाधारण प्राकृतिक महत्व को दर्शाता है। इस क्षेत्र की अनूठी स्थलाकृति, जिसमें ऊंचे पहाड़, घाटियाँ, झरने और उष्णकटिबंधीय वर्षावन शामिल हैं, ने विभिन्न प्रकार के आवासों का निर्माण किया है, जिसने अद्वितीय और स्थानिक प्रजातियों के विकास को बढ़ावा दिया है।
पश्चिमी घाट की जैव विविधता अद्भुत है। यहाँ पौधों की लगभग 6,000 प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें से 2,000 से अधिक स्थानिक हैं। इनमें विभिन्न प्रकार के फूल, जड़ी-बूटियाँ, झाड़ियाँ और पेड़ शामिल हैं। स्तनधारियों की 139 प्रजातियाँ, 500 से अधिक पक्षी प्रजातियाँ, 200 से अधिक सरीसृप और उभयचर, और लगभग 250 ताजे पानी की मछली की प्रजातियाँ भी इस क्षेत्र का घर हैं। इनमें से कई प्रजातियाँ, जैसे कि नीलगिरि तहर, शेर-पूंछ वाला मकाक, मालाबार सिवेट और विभिन्न प्रकार के ऑर्किड, केवल पश्चिमी घाट में ही पाई जाती हैं।
पश्चिमी घाट का पारिस्थितिक महत्व केवल प्रजातियों की संख्या तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह महत्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं को भी बनाए रखता है। यह क्षेत्र भारत के प्रायद्वीपीय क्षेत्र के लिए जल चक्र का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, जो कई प्रमुख नदियों को जन्म देता है जो लाखों लोगों के लिए पानी का स्रोत हैं। यहाँ के घने जंगल मिट्टी के कटाव को रोकते हैं, बाढ़ को नियंत्रित करते हैं और जलवायु को विनियमित करने में मदद करते हैं। इसके अलावा, यह क्षेत्र स्थानीय समुदायों के लिए पारंपरिक ज्ञान, संसाधनों और आजीविका का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
हालांकि, पश्चिमी घाट आज गंभीर खतरों का सामना कर रहा है। मानवीय गतिविधियों, जैसे कि कॉफी, चाय और मसालों के बागानों के लिए वनों की कटाई, अवैध लॉगिंग, खनन, अवसंरचना विकास (जैसे बांध और सड़कें) और पर्यटन का दबाव तेजी से बढ़ रहा है। इन गतिविधियों के कारण प्राकृतिक आवासों का विखंडन और क्षरण हो रहा है, जिससे कई प्रजातियों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। जलवायु परिवर्तन भी इस नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक और चुनौती पेश कर रहा है, जिससे तापमान और वर्षा पैटर्न में बदलाव आ रहा है।
इन चुनौतियों से निपटने के लिए, पश्चिमी घाट के संरक्षण के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं। इनमें संरक्षित क्षेत्रों का विस्तार, अवैध गतिविधियों पर नियंत्रण, स्थायी भूमि उपयोग प्रथाओं को बढ़ावा देना, और स्थानीय समुदायों को संरक्षण प्रयासों में शामिल करना शामिल है। वैज्ञानिक और शोधकर्ता लगातार इस क्षेत्र की जैव विविधता का अध्ययन कर रहे हैं ताकि इसके संरक्षण के लिए बेहतर रणनीतियाँ विकसित की जा सकें। यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता भी अंतर्राष्ट्रीय ध्यान और सहायता को आकर्षित करने में मदद करती है।
निष्कर्ष रूप में, पश्चिमी घाट भारत की अविश्वसनीय जैव विविधता का एक अमूल्य रत्न है। इसकी अनूठी प्रजातियाँ, जटिल पारिस्थितिक तंत्र और आवश्यक पारिस्थितिक तंत्र सेवाएं इसे न केवल भारत के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए महत्वपूर्ण बनाती हैं। इस क्षेत्र का संरक्षण एक जटिल लेकिन अत्यंत आवश्यक कार्य है, जिसके लिए सरकार, वैज्ञानिकों, स्थानीय समुदायों और आम जनता के सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है। क्या हम यह सुनिश्चित करने में सफल होंगे कि आने वाली पीढ़ियाँ भी इस अद्भुत प्राकृतिक विरासत का अनुभव कर सकें?