Answer: तमिलनाडु
पवन ऊर्जा, जिसे पवन शक्ति के रूप में भी जाना जाता है, स्वच्छ, नवीकरणीय ऊर्जा का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। यह हवा की गतिज ऊर्जा को बिजली में परिवर्तित करने के सिद्धांत पर काम करती है। हवा, जो सूर्य की गर्मी के कारण वायुमंडलीय दबाव में भिन्नता के कारण उत्पन्न होती है, पवन टरबाइन के ब्लेड को घुमाती है। ये ब्लेड एक शाफ्ट से जुड़े होते हैं, जो एक जनरेटर को शक्ति प्रदान करता है, जिससे बिजली का उत्पादन होता है। पवन ऊर्जा का उपयोग हजारों वर्षों से किया जा रहा है, शुरुआत में इसे अनाज पीसने और पानी पंप करने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। आज, यह एक प्रमुख नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत के रूप में उभरा है, जो जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करने और जलवायु परिवर्तन से लड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
भारत पवन ऊर्जा के मामले में एक प्रमुख देश है और लगातार अपनी स्थापित क्षमता का विस्तार कर रहा है। देश के पास विशाल तटरेखा और अनुकूल भौगोलिक परिस्थितियां हैं जो पवन ऊर्जा उत्पादन के लिए आदर्श हैं। भारत में पवन ऊर्जा के विकास को सरकारी नीतियों, सब्सिडी और निजी निवेश से बढ़ावा मिला है। राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान (NIWE) जैसे संस्थान पवन ऊर्जा की क्षमता का आकलन करने, प्रौद्योगिकी विकास को बढ़ावा देने और नीतियों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
तमिलनाडु, भारत का अग्रणी पवन ऊर्जा उत्पादक राज्य है। इसकी लंबी तटरेखा, विशेष रूप से कन्याकुमारी और रामनाथपुरम जैसे क्षेत्रों में, शक्तिशाली और सुसंगत हवाएं प्रदान करती हैं। राज्य ने पवन ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण निवेश किया है और देश की कुल स्थापित पवन ऊर्जा क्षमता में इसका एक बड़ा हिस्सा है। तमिलनाडु में कई बड़े पवन फार्म स्थापित किए गए हैं, जिनमें से कुछ भारत के सबसे बड़े हैं। ये फार्म स्थानीय ग्रिड को बिजली प्रदान करते हैं और राज्य की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में मदद करते हैं।
तमिलनाडु के बाद, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान और मध्य प्रदेश अन्य प्रमुख राज्य हैं जो पवन ऊर्जा उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। इन राज्यों में भी पवन ऊर्जा की अच्छी क्षमता है और सरकारें इन क्षेत्रों में नवीकरणीय ऊर्जा के विकास को प्रोत्साहित कर रही हैं। पवन ऊर्जा उत्पादन में वृद्धि न केवल ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाती है, बल्कि स्थानीय समुदायों के लिए रोजगार के अवसर भी पैदा करती है और प्रदूषण को कम करने में मदद करती है।
पवन ऊर्जा के कुछ प्रमुख लाभों में इसका स्वच्छ होना, कार्बन उत्सर्जन न करना, ईंधन की लागत न होना (हवा मुफ्त है), और ऊर्जा का एक स्थायी स्रोत होना शामिल है। हालांकि, इसके कुछ नुकसान भी हैं, जैसे कि हवा की अप्रत्याशितता (जब हवा नहीं चलती तो उत्पादन रुक जाता है), ब्लेड के कारण पक्षियों और चमगादड़ों को होने वाला खतरा, और टरबाइन की स्थापना के लिए बड़ी भूमि की आवश्यकता। इन चुनौतियों के बावजूद, प्रौद्योगिकी में प्रगति और लागत में कमी के साथ, पवन ऊर्जा का भविष्य उज्ज्वल है।
भारत सरकार ने 2022 तक 60 गीगावाट (GW) पवन ऊर्जा की क्षमता का लक्ष्य रखा था, और देश इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। हाल के वर्षों में, पवन टरबाइन प्रौद्योगिकी में महत्वपूर्ण सुधार हुए हैं, जिससे अधिक कुशल और शक्तिशाली मशीनें विकसित हुई हैं। ऑनशोर (भूमि पर) पवन फार्मों के अलावा, ऑफशोर (समुद्र में) पवन ऊर्जा भी भारत के लिए एक उभरता हुआ क्षेत्र है, जिसमें विशाल क्षमता है, हालांकि इसके विकास में कुछ चुनौतियां हैं।
पवन ऊर्जा के महत्व को समझते हुए, सरकारें और निजी क्षेत्र मिलकर काम कर रहे हैं ताकि भारत को पवन ऊर्जा के क्षेत्र में एक वैश्विक नेता बनाया जा सके। अनुसंधान और विकास में निवेश, कुशल कार्यबल का प्रशिक्षण, और निवेश के लिए अनुकूल नीतियां इस क्षेत्र की निरंतर वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण हैं। पवन ऊर्जा न केवल भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में सहायक है, बल्कि एक हरित और स्थायी भविष्य के निर्माण में भी महत्वपूर्ण योगदान देती है।
पवन ऊर्जा के व्यापक प्रसार के बावजूद, इस क्षेत्र में अभी भी बहुत अधिक क्षमता का उपयोग किया जाना बाकी है। भारत के विभिन्न हिस्सों में पवन ऊर्जा की क्षमता का पूरी तरह से दोहन करने के लिए और अधिक अध्ययन और निवेश की आवश्यकता है। क्या आप जानते हैं कि भारत में पवन ऊर्जा का इतिहास क्या है और समय के साथ इसमें कैसे बदलाव आया है?