जैव विविधता पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (Convention on Biological Diversity - CBD) कब प्रभावी हुआ?

जैव विविधता पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (Convention on Biological Diversity - CBD) कब प्रभावी हुआ?

Answer: 29 दिसंबर 1993

जैव विविधता, जिसे अंग्रेजी में बायोडायवर्सिटी (Biodiversity) कहते हैं, पृथ्वी पर जीवन की अद्भुत विविधता और भिन्नता को संदर्भित करती है। इसमें सभी प्रकार के जीव-जंतु, पेड़-पौधे, सूक्ष्मजीव और उनके पारिस्थितिक तंत्र शामिल हैं। यह पृथ्वी पर जीवन का ताना-बाना है, जो हमें स्वस्थ और कार्यशील पारिस्थितिक तंत्र प्रदान करता है। जैव विविधता की अवधारणा प्रकृति की जटिलता और प्रत्येक प्रजाति की भूमिका को दर्शाती है, भले ही वह कितनी भी छोटी क्यों न हो। पृथ्वी पर जीवन के विभिन्न रूपों का यह समुच्चय ही हमारी धरती को रहने योग्य बनाता है।

जैव विविधता हमारे ग्रह के पारिस्थितिकीय संतुलन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह हमें स्वच्छ हवा, शुद्ध पानी, उपजाऊ मिट्टी और जलवायु नियंत्रण जैसी अनमोल पारिस्थितिक सेवाएं प्रदान करती है। पेड़-पौधे प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से ऑक्सीजन उत्पन्न करते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करते हैं, जबकि सूक्ष्मजीव मिट्टी को स्वस्थ बनाए रखने में मदद करते हैं। परागणक, जैसे मधुमक्खियाँ और तितलियाँ, फसलों के उत्पादन के लिए आवश्यक हैं। इस प्रकार, जैव विविधता सीधे तौर पर मानव कल्याण, खाद्य सुरक्षा और स्वास्थ्य से जुड़ी है।

आर्थिक दृष्टिकोण से भी जैव विविधता का अत्यधिक महत्व है। कृषि, मत्स्य पालन, वानिकी और पर्यटन जैसे कई उद्योग सीधे तौर पर प्राकृतिक संसाधनों और जैव विविधता पर निर्भर करते हैं। औषधीय क्षेत्र में, जैव विविधता नए दवाओं और उपचारों का एक विशाल स्रोत है। दुनिया भर में कई पारंपरिक दवाएं पौधों और जानवरों से प्राप्त होती हैं, और आधुनिक फार्मास्युटिकल्स भी अक्सर प्राकृतिक यौगिकों से प्रेरणा लेते हैं। उदाहरण के लिए, पेन्सिलिन जैसे एंटीबायोटिक्स और कैंसर रोधी दवाएं प्रकृति से ही प्राप्त हुई हैं या उनसे प्रेरित हुई हैं।

जैव विविधता को मुख्य रूप से तीन स्तरों पर समझा जा सकता है: आनुवंशिक विविधता (Genetic Diversity), प्रजाति विविधता (Species Diversity) और पारिस्थितिक तंत्र विविधता (Ecosystem Diversity)। आनुवंशिक विविधता एक ही प्रजाति के सदस्यों के भीतर मौजूद जीनों की भिन्नता को दर्शाती है। यह प्रजातियों को बदलते पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुकूल होने में मदद करती है। प्रजाति विविधता एक निश्चित क्षेत्र में विभिन्न प्रजातियों की संख्या और उनकी प्रचुरता को संदर्भित करती है। पारिस्थितिक तंत्र विविधता विभिन्न प्रकार के पारिस्थितिक तंत्रों, जैसे वन, रेगिस्तान, झीलें, महासागर आदि की उपस्थिति को दर्शाती है।

वर्तमान में, जैव विविधता को कई गंभीर खतरों का सामना करना पड़ रहा है, जिनमें से सबसे प्रमुख मानवीय गतिविधियाँ हैं। आवासों का विनाश और विखंडन, जैसे वनों की कटाई, आर्द्रभूमियों का सूखना और शहरीकरण, प्रजातियों के अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा है। जलवायु परिवर्तन वैश्विक तापमान में वृद्धि और चरम मौसमी घटनाओं का कारण बन रहा है, जिससे कई प्रजातियाँ अपने प्राकृतिक आवासों से विस्थापित हो रही हैं या विलुप्त होने की कगार पर हैं।

प्रदूषण, चाहे वह वायु, जल या मिट्टी का हो, पारिस्थितिक तंत्र को गंभीर रूप से प्रभावित करता है और कई प्रजातियों के लिए विषैला साबित होता है। आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ (Invasive Alien Species) स्थानीय पारिस्थितिक तंत्रों में प्रवेश कर देशी प्रजातियों को विस्थापित कर देती हैं या उनका शिकार करती हैं, जिससे जैव विविधता को नुकसान पहुँचता है। अत्यधिक दोहन, जैसे अवैध शिकार, अत्यधिक मछली पकड़ना और वनों का अत्यधिक उपयोग, भी प्रजातियों की आबादी को तेजी से घटा रहा है।

इन गंभीर खतरों को पहचानते हुए, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने जैव विविधता के संरक्षण के लिए एकजुट होने का निर्णय लिया। इसी पृष्ठभूमि में, 1992 में रियो डी जनेरियो में आयोजित पृथ्वी शिखर सम्मेलन (Earth Summit) में 'जैव विविधता पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन' (Convention on Biological Diversity - CBD) को अपनाया गया। यह जैव विविधता के संरक्षण, इसके घटकों के सतत उपयोग और आनुवंशिक संसाधनों के उपयोग से होने वाले लाभों के उचित और न्यायसंगत बंटवारे से संबंधित एक बहुपक्षीय संधि है। यह एक कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय समझौता है।

सीबीडी 29 दिसंबर 1993 को प्रभावी हुआ, जब आवश्यक संख्या में देशों ने इसकी पुष्टि कर दी। इसका उद्देश्य सदस्य देशों को जैव विविधता के संरक्षण और सतत उपयोग के लिए राष्ट्रीय रणनीतियाँ विकसित करने और उन्हें लागू करने के लिए एक ढाँचा प्रदान करना है। सीबीडी के तीन मुख्य उद्देश्य हैं: जैव विविधता का संरक्षण, जैव विविधता के घटकों का सतत उपयोग और आनुवंशिक संसाधनों के उपयोग से होने वाले लाभों का उचित और न्यायसंगत बंटवारा।

पहला उद्देश्य, 'जैव विविधता का संरक्षण', विभिन्न स्तरों पर प्रजातियों और उनके आवासों की रक्षा करना है। इसमें राष्ट्रीय उद्यानों, वन्यजीव अभयारण्यों और बायोस्फीयर रिजर्व जैसे संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना और प्रबंधन शामिल है। दूसरा उद्देश्य, 'जैव विविधता के घटकों का सतत उपयोग', यह सुनिश्चित करना है कि प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग इस तरह से किया जाए कि वे भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी उपलब्ध रहें। इसमें टिकाऊ कृषि, वानिकी और मत्स्य पालन प्रथाओं को बढ़ावा देना शामिल है।

तीसरा और महत्वपूर्ण उद्देश्य, 'आनुवंशिक संसाधनों के उपयोग से होने वाले लाभों का उचित और न्यायसंगत बंटवारा', उन देशों और समुदायों को लाभ पहुँचाना है जहाँ से ये आनुवंशिक संसाधन प्राप्त हुए हैं। यह अक्सर जैव-समुद्री डकैती (biopiracy) जैसे मुद्दों को संबोधित करता है और स्वदेशी समुदायों के पारंपरिक ज्ञान के महत्व को मान्यता देता है। इस उद्देश्य को हासिल करने के लिए कई देशों ने राष्ट्रीय कानून और नीतियां बनाई हैं।

सीबीडी के तहत दो प्रमुख प्रोटोकॉल विकसित किए गए हैं जो इसके उद्देश्यों को मजबूत करते हैं। पहला, 'कार्टाजेना प्रोटोकॉल ऑन बायोसेफ्टी' (Cartagena Protocol on Biosafety), जिसे 2000 में अपनाया गया था और 2003 में प्रभावी हुआ। यह आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (Living Modified Organisms - LMOs) के सुरक्षित स्थानांतरण, हैंडलिंग और उपयोग से संबंधित है, जो जैव विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं। इसका उद्देश्य पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य की रक्षा करना है, खासकर जब LMOs को सीमा पार ले जाया जाता है।

दूसरा प्रोटोकॉल, 'नागोया प्रोटोकॉल ऑन एक्सेस एंड बेनिफिट-शेयरिंग' (Nagoya Protocol on Access and Benefit-Sharing), जिसे 2010 में अपनाया गया और 2014 में प्रभावी हुआ। यह सीबीडी के तीसरे उद्देश्य, यानी आनुवंशिक संसाधनों के उपयोग से होने वाले लाभों के उचित और न्यायसंगत बंटवारे को और अधिक विस्तार से संबोधित करता है। यह आनुवंशिक संसाधनों तक पहुँचने के लिए एक पारदर्शी ढाँचा प्रदान करता है और यह सुनिश्चित करता है कि इन संसाधनों का उपयोग करने वाले लाभों को उन देशों के साथ साझा करें जहाँ से वे उत्पन्न हुए हैं।

हाल के वर्षों में, वैश्विक स्तर पर जैव विविधता के संरक्षण के प्रयासों को नई गति मिली है। सीबीडी के तहत, 'कुनमिंग-मॉन्ट्रियल ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क' (Kunming-Montreal Global Biodiversity Framework - GBF) को दिसंबर 2022 में अपनाया गया। यह 2020 के बाद के वैश्विक जैव विविधता ढांचे के रूप में कार्य करता है और 2030 तक जैव विविधता के नुकसान को रोकने और उसे पलटने के लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्यों और उद्देश्यों का एक सेट निर्धारित करता है। यह आईची जैव विविधता लक्ष्यों (Aichi Biodiversity Targets) का स्थान लेता है, जो 2010-2020 की अवधि के लिए निर्धारित किए गए थे।

भारत जैव विविधता में समृद्ध एक 'मेगाडाइवर्स' देश है और इसने जैव विविधता संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण प्रतिबद्धताएँ दिखाई हैं। भारत सीबीडी का एक हस्ताक्षरकर्ता है और उसने 'जैव विविधता अधिनियम, 2002' (Biodiversity Act, 2002) जैसे मजबूत राष्ट्रीय कानून बनाए हैं। इस अधिनियम का उद्देश्य सीबीडी के प्रावधानों को भारत में लागू करना है, जिसमें जैव विविधता का संरक्षण, उसके घटकों का सतत उपयोग और आनुवंशिक संसाधनों के उपयोग से होने वाले लाभों का समान बंटवारा शामिल है।

भारत में 'राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण' (National Biodiversity Authority - NBA) की स्थापना की गई है ताकि अधिनियम के प्रावधानों को लागू किया जा सके। इसके अलावा, राज्य जैव विविधता बोर्ड और स्थानीय जैव विविधता प्रबंधन समितियाँ भी इस दिशा में काम कर रही हैं। भारत में संरक्षित क्षेत्रों का एक विशाल नेटवर्क है, जिसमें राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभयारण्य और बायोस्फीयर रिजर्व शामिल हैं, जो विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों और प्रजातियों के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

जैव विविधता का संरक्षण एक जटिल और बहुआयामी चुनौती है जिसके लिए वैज्ञानिक अनुसंधान, नीति निर्माण, सामुदायिक भागीदारी और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है। जलवायु परिवर्तन, बढ़ती जनसंख्या और सतत विकास की आवश्यकता के बीच संतुलन बनाना अत्यंत महत्वपूर्ण है। हमें न केवल प्रजातियों और पारिस्थितिक तंत्रों की रक्षा करनी होगी, बल्कि उन प्रक्रियाओं को भी संबोधित करना होगा जो जैव विविधता के नुकसान का कारण बन रही हैं। शिक्षा और जागरूकता भी इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, ताकि हर व्यक्ति प्रकृति के महत्व को समझ सके।

अंततः, जैव विविधता हमारे ग्रह का जीवन-आधार है, और इसका संरक्षण हमारी साझा जिम्मेदारी है। सीबीडी और उससे संबंधित प्रोटोकॉल वैश्विक स्तर पर इस दिशा में एक महत्वपूर्ण ढाँचा प्रदान करते हैं, लेकिन वास्तविक परिवर्तन जमीनी स्तर पर व्यक्तिगत और सामूहिक प्रयासों से ही आएगा। हमें यह समझना होगा कि मानव कल्याण सीधे तौर पर जैव विविधता के स्वास्थ्य से जुड़ा है। भविष्य में हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ और समृद्ध ग्रह कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं, यह एक ऐसा प्रश्न है जिस पर हमें गंभीरता से विचार करना होगा। क्या हम जैव विविधता के महत्व को समय रहते समझ पाएंगे और इसके संरक्षण के लिए पर्याप्त कदम उठा पाएंगे, या यह केवल एक दस्तावेजी प्रतिबद्धता बनकर रह जाएगी?


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