Answer: 16 सितंबर
विश्व ओजोन दिवस हर साल 16 सितंबर को मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य ओजोन परत के संरक्षण के महत्व और इसकी कमी से होने वाले खतरों के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। यह दिन मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर की याद दिलाता है, जो एक ऐतिहासिक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जिसका लक्ष्य ओजोन-क्षयकारी पदार्थों (ODS) के उत्पादन और खपत को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना है। ओजोन परत पृथ्वी के वायुमंडल का एक महत्वपूर्ण घटक है, जो हमें सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी (UV) विकिरण से बचाती है। इसके बिना, पृथ्वी पर जीवन वैसा नहीं होगा जैसा हम जानते हैं, क्योंकि अत्यधिक UV विकिरण मानव स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी तंत्र दोनों के लिए गंभीर खतरा पैदा करती है। इस दिवस को मनाना हमें याद दिलाता है कि जब दुनिया एक सामान्य उद्देश्य के लिए एकजुट होती है, तो पर्यावरणीय चुनौतियों पर काबू पाया जा सकता है।
ओजोन (O3) ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं से बना एक अणु है। वायुमंडल में इसकी उपस्थिति के आधार पर, यह या तो "अच्छा" या "बुरा" ओजोन हो सकता है। पृथ्वी की सतह के पास, ट्रोपोस्फीयर में, ओजोन एक प्रदूषक है जो श्वसन संबंधी समस्याएं पैदा करता है और वनस्पतियों को नुकसान पहुंचाता है। हालांकि, समताप मंडल (stratosphere) में, जो पृथ्वी की सतह से लगभग 10 से 50 किलोमीटर ऊपर है, ओजोन एक सुरक्षात्मक ढाल बनाता है जिसे ओजोन परत के रूप में जाना जाता है। यह "अच्छा" ओजोन है जो सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी विकिरण (विशेषकर UV-B और UV-C) के बहुमत को अवशोषित कर लेता है, जिससे उन्हें पृथ्वी की सतह तक पहुँचने से रोका जा सकता है। यह प्राकृतिक प्रक्रिया पृथ्वी पर जीवन के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि UV विकिरण के उच्च स्तर डीएनए को नुकसान पहुंचा सकते हैं, कोशिकाओं को उत्परिवर्तित कर सकते हैं और जीवन-रूपों को नष्ट कर सकते हैं।
ओजोन परत का महत्व अतिरंजित नहीं किया जा सकता है। यह पृथ्वी के प्राकृतिक सनस्क्रीन के रूप में कार्य करता है। यदि ओजोन परत कमजोर हो जाती है या नष्ट हो जाती है, तो अधिक UV-B और UV-C विकिरण पृथ्वी की सतह तक पहुंच जाएगा। मनुष्यों के लिए, इससे त्वचा कैंसर, मोतियाबिंद और प्रतिरक्षा प्रणाली के कमजोर होने का खतरा बढ़ जाता है। समुद्री जीवन भी गंभीर रूप से प्रभावित होगा, क्योंकि UV विकिरण फाइटोप्लांकटन को नुकसान पहुंचा सकता है, जो समुद्री खाद्य श्रृंखला का आधार है। फसलों और स्थलीय पौधों को भी नुकसान होगा, जिससे खाद्य सुरक्षा पर असर पड़ेगा और पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बिगड़ेगा। इसलिए, ओजोन परत का संरक्षण केवल एक वैज्ञानिक चिंता नहीं है, बल्कि मानव स्वास्थ्य, वैश्विक खाद्य सुरक्षा और ग्रह पर जैव विविधता के लिए एक मौलिक आवश्यकता है।
ओजोन परत के क्षरण की वैज्ञानिक खोज 1970 के दशक की शुरुआत में हुई, जब वैज्ञानिकों ने पहली बार चेतावनी दी कि क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFCs) जैसे मानव निर्मित रसायन समताप मंडल में ओजोन को नष्ट कर सकते हैं। अमेरिकी रसायनज्ञ शेरवुड रॉलैंड और मारियो मोलिना, साथ ही डच वैज्ञानिक पॉल क्रुट्जेन को इस काम के लिए 1995 में रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्होंने दिखाया कि CFCs जैसे स्थिर रसायन ऊपरी वायुमंडल में पहुँच सकते हैं, जहाँ वे सूर्य के प्रकाश से टूटकर क्लोरीन परमाणु छोड़ते हैं। ये क्लोरीन परमाणु ओजोन अणुओं को बार-बार तोड़कर ओजोन को नष्ट करने की एक श्रृंखला प्रतिक्रिया शुरू करते हैं। इन प्रारंभिक चेतावनियों ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का ध्यान अपनी ओर खींचा, लेकिन व्यापक कार्रवाई अभी बाकी थी।
क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFCs) एक समय रेफ्रिजरेटर, एयर कंडीशनर, एरोसोल स्प्रे और फोम उत्पादन में व्यापक रूप से उपयोग किए जाने वाले रसायन थे। इन्हें गैर-विषाक्त, गैर-ज्वलनशील और बहुत स्थिर माना जाता था, जिससे वे कई अनुप्रयोगों के लिए आदर्श बन जाते थे। हालाँकि, उनकी स्थिरता ही उनकी समस्या बन गई। वे वायुमंडल में सदियों तक बने रह सकते थे और धीरे-धीरे समताप मंडल में पहुँच जाते थे। CFCs के अलावा, अन्य ओजोन-क्षयकारी पदार्थ (ODS) जैसे हैलोन (अग्निशामक में प्रयुक्त), कार्बन टेट्राक्लोराइड (विलायक के रूप में प्रयुक्त) और मिथाइल ब्रोमाइड (कीटनाशक के रूप में प्रयुक्त) भी ओजोन परत को नुकसान पहुंचा रहे थे। इन रसायनों का बड़े पैमाने पर उत्पादन और उपयोग ओजोन परत के पतले होने का मुख्य कारण था।
1985 में, ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वेक्षण के वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिका के ऊपर समताप मंडल में ओजोन परत में एक नाटकीय और मौसमी गिरावट की घोषणा की, जिसे "ओजोन छेद" के रूप में जाना जाने लगा। यह खोज दुनिया भर में एक बड़ी चिंता का विषय बन गई और इसने तात्कालिक कार्रवाई की आवश्यकता को रेखांकित किया। अंटार्कटिक ओजोन छेद विशेष रूप से ध्रुवीय समताप मंडलीय बादलों (PSCs) और अत्यधिक ठंडे तापमान के कारण बनता है, जो क्लोरीन और ब्रोमीन रसायनों को ओजोन को नष्ट करने के लिए आदर्श स्थितियाँ प्रदान करते हैं। ओजोन छेद की छवियों ने जनता और नीति निर्माताओं को ओजोन परत के क्षरण की गंभीरता को समझने में मदद की, जिससे वैज्ञानिक चेतावनियों को कार्रवाई में बदलने के लिए वैश्विक दबाव बढ़ गया।
ओजोन परत के क्षरण के बढ़ते वैज्ञानिक प्रमाणों और ओजोन छेद की चौंकाने वाली खोज के जवाब में, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने कार्रवाई करना शुरू किया। पहला महत्वपूर्ण कदम 1985 में वियना कन्वेंशन फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ द ओजोन लेयर (ओजोन परत के संरक्षण के लिए वियना अभिसमय) पर हस्ताक्षर करना था। यह एक फ्रेमवर्क कन्वेंशन था, जिसका अर्थ है कि इसने देशों को ओजोन परत की रक्षा के लिए अनुसंधान, निगरानी और सूचना साझाकरण में सहयोग करने के लिए एक मंच प्रदान किया, लेकिन इसमें ओजोन-क्षयकारी पदार्थों के उत्पादन को कम करने के लिए विशिष्ट, कानूनी रूप से बाध्यकारी लक्ष्य शामिल नहीं थे। फिर भी, इसने बाद के और अधिक निर्णायक समझौते, मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल की नींव रखी।
वियना कन्वेंशन के दो साल बाद, 16 सितंबर 1987 को, मॉन्ट्रियल में 46 देशों ने ओजोन परत को क्षीण करने वाले पदार्थों पर मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए। यह अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण कानून में एक अभूतपूर्व समझौता था। मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल ने ओजोन-क्षयकारी पदार्थों (ODS) जैसे CFCs, हैलोन और कार्बन टेट्राक्लोराइड के उत्पादन और खपत को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिए विशिष्ट समय-सीमा और लक्ष्य निर्धारित किए। यह प्रोटोकॉल न केवल एक कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौता था, बल्कि इसने विकासशील देशों को ODS को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने में मदद करने के लिए एक बहुपक्षीय कोष भी स्थापित किया। 16 सितंबर को विश्व ओजोन दिवस के रूप में मनाने का कारण इस ऐतिहासिक प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर की याद दिलाना है।
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल की सफलता कई कारकों के कारण थी। इसने विकसित और विकासशील देशों के लिए अलग-अलग लेकिन सामान्य जिम्मेदारियों को मान्यता दी, जिसमें विकासशील देशों को कुछ अधिक समय दिया गया। प्रोटोकॉल में नए वैज्ञानिक, तकनीकी और आर्थिक विकास के आधार पर संशोधन करने की क्षमता भी थी, जिससे इसे समय के साथ मजबूत किया जा सके। इसने एक स्वतंत्र वैज्ञानिक पैनल और तकनीकी सलाहकार समितियों की स्थापना की, जिन्होंने निर्णय लेने के लिए विश्वसनीय जानकारी प्रदान की। परिणामस्वरूप, प्रोटोकॉल को सार्वभौमिक रूप से अनुमोदित किया गया है, जिसमें संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश शामिल हैं। इस अद्वितीय सहयोग के कारण, ओजोन-क्षयकारी पदार्थों के वैश्विक उत्पादन में 98% से अधिक की कमी आई है, जिससे ओजोन परत के ठीक होने की उम्मीद जगी है।
आज, वैज्ञानिकों का अनुमान है कि ओजोन परत धीरे-धीरे ठीक हो रही है और 2060 के दशक तक 1980 के स्तर तक वापस आने की उम्मीद है। अंटार्कटिक ओजोन छेद अभी भी बनता है, लेकिन इसके आकार और गहराई में धीरे-धीरे कमी आ रही है। यह मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल की जबरदस्त सफलता का प्रमाण है। हालाँकि, चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं। ओजोन-क्षयकारी पदार्थों का अवैध व्यापार, विशेष रूप से विकासशील देशों में, एक चिंता का विषय बना हुआ है। इसके अलावा, हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFCs), जिन्हें CFCs के विकल्प के रूप में पेश किया गया था, वे स्वयं शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैसें हैं, जो ग्लोबल वार्मिंग में योगदान करती हैं।
इस चुनौती का समाधान करने के लिए, मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के पक्षकारों ने 2016 में किगाली संशोधन (Kigali Amendment) को अपनाया। किगाली संशोधन का उद्देश्य HFCs के उत्पादन और खपत को चरणबद्ध तरीके से कम करना है, जिससे जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में एक और महत्वपूर्ण कदम उठाया जा सके। यह संशोधन जलवायु परिवर्तन और ओजोन परत के क्षरण के बीच के जटिल संबंधों को पहचानता है और दिखाता है कि कैसे एक पर्यावरण संधि को विकसित होते वैज्ञानिक ज्ञान के अनुकूल बनाया जा सकता है। यह एक अनुस्मारक है कि पर्यावरणीय सुरक्षा के लिए निरंतर निगरानी, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और नीतियों को अपनाने की आवश्यकता है जो उभरती हुई चुनौतियों का सामना कर सकें।
विश्व ओजोन दिवस हमें न केवल ओजोन परत के महत्व और मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल की सफलता की याद दिलाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि जब देश एक साथ काम करते हैं, तो वे वैश्विक पर्यावरणीय समस्याओं को हल कर सकते हैं। यह हमें जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता हानि जैसी अन्य पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रेरित करता है, जो आज भी मानवता के लिए गंभीर खतरा बनी हुई हैं। ओजोन परत के संरक्षण की कहानी विज्ञान, नीति और अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति की एक प्रेरणादायक गाथा है। यह दिखाती है कि मनुष्य अपने कार्यों के दीर्घकालिक परिणामों को पहचान कर और उन्हें ठीक करने के लिए सामूहिक रूप से कार्य करके ग्रह को बचा सकता है। क्या हम ओजोन परत के सफल संरक्षण से सीखे गए सबक को जलवायु परिवर्तन जैसे अन्य वैश्विक पर्यावरणीय संकटों पर भी लागू कर पाएंगे, और यदि हाँ, तो इसके लिए हमें किस स्तर के अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और व्यक्तिगत जिम्मेदारी की आवश्यकता होगी?