Answer: कार्बन डाइऑक्साइड
वैश्विक तापन, जिसे आमतौर पर ग्लोबल वार्मिंग के नाम से जाना जाता है, पृथ्वी की जलवायु प्रणाली का एक दीर्घकालिक तापन है, जिसे 1850 और 1900 के बीच पूर्व-औद्योगिक काल से देखा गया है। यह मुख्य रूप से मानवीय गतिविधियों, विशेषकर जीवाश्म ईंधन के जलने के कारण होता है, जिससे पृथ्वी के वायुमंडल में गर्मी फँसाने वाली ग्रीनहाउस गैसों का स्तर बढ़ जाता है। यह एक गंभीर पर्यावरणीय चुनौती है जिसके दूरगामी परिणाम होते हैं, जो न केवल प्राकृतिक प्रणालियों को प्रभावित करते हैं, बल्कि मानव समाज और अर्थव्यवस्था पर भी गहरा प्रभाव डालते हैं।
ग्रीनहाउस प्रभाव एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जो पृथ्वी को गर्म रखती है और जीवन के लिए आवश्यक है। वायुमंडल में कुछ गैसें, जिन्हें ग्रीनहाउस गैसें कहा जाता है, सूर्य से आने वाली गर्मी को अवशोषित करती हैं और उसे वायुमंडल में रोक लेती हैं, जिससे पृथ्वी का तापमान रहने योग्य बना रहता है। इस प्रक्रिया के बिना, पृथ्वी बहुत ठंडी होती और जीवन संभव नहीं होता। हालांकि, मानवीय गतिविधियों के कारण इन गैसों की सांद्रता में अत्यधिक वृद्धि ने इस प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ दिया है।
इन ग्रीनहाउस गैसों में, जल वाष्प के बाद, कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) ग्रीनहाउस प्रभाव में सबसे महत्वपूर्ण योगदानकर्ता है। कार्बन डाइऑक्साइड मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन जैसे कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस को जलाने से उत्पन्न होती है, जिसका उपयोग बिजली उत्पादन, परिवहन और औद्योगिक प्रक्रियाओं में किया जाता है। वनों की कटाई भी CO2 के स्तर को बढ़ाती है, क्योंकि पेड़ कार्बन को अवशोषित करते हैं और उनके कटने से यह वायुमंडल में वापस चला जाता है।
कार्बन डाइऑक्साइड के अलावा, अन्य प्रमुख ग्रीनहाउस गैसों में मीथेन (CH4), नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) और फ्लोरोनेटेड गैसें शामिल हैं। मीथेन कृषि गतिविधियों (जैसे पशुधन पालन और धान की खेती), अपशिष्ट निपटान (लैंडफिल) और जीवाश्म ईंधन उत्पादन से निकलती है। नाइट्रस ऑक्साइड कृषि पद्धतियों (नाइट्रोजन-आधारित उर्वरकों के उपयोग), जीवाश्म ईंधन के जलने और औद्योगिक प्रक्रियाओं से उत्सर्जित होती है। फ्लोरोनेटेड गैसें, जैसे हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFCs), परफ्लोरोकार्बन (PFCs) और सल्फर हेक्साफ्लोराइड (SF6), विभिन्न औद्योगिक प्रक्रियाओं में उपयोग की जाती हैं और उनकी वैश्विक तापन क्षमता बहुत अधिक होती है।
वैश्विक तापन के कारणों को मोटे तौर पर प्राकृतिक और मानव-जनित कारकों में विभाजित किया जा सकता है। प्राकृतिक कारक जैसे ज्वालामुखी विस्फोट और सौर विकिरण में परिवर्तन पृथ्वी के तापमान को प्रभावित कर सकते हैं, लेकिन वर्तमान में देखे गए तीव्र तापन के लिए ये जिम्मेदार नहीं हैं। वैज्ञानिक समुदाय इस बात पर सहमत है कि 20वीं सदी के मध्य से देखे गए तापन का अधिकांश हिस्सा मानवीय गतिविधियों के कारण है।
जीवाश्म ईंधन का जलना वैश्विक तापन का सबसे बड़ा मानव-जनित कारण है। कोयला-आधारित बिजली संयंत्र, वाहन और औद्योगिक सुविधाएँ बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों को वायुमंडल में छोड़ती हैं। यह ऊर्जा उत्पादन का एक प्रमुख स्रोत है, लेकिन इसका पर्यावरण पर विनाशकारी प्रभाव पड़ता है। जैसे-जैसे वैश्विक ऊर्जा की मांग बढ़ती जा रही है, जीवाश्म ईंधन का उपभोग भी बढ़ता जा रहा है, जिससे समस्या और गंभीर होती जा रही है।
वनों की कटाई भी एक महत्वपूर्ण योगदानकर्ता है। वन कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं, जिसका अर्थ है कि वे प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं। जब जंगलों को कृषि, शहरीकरण या लॉगिंग के लिए काटा जाता है, तो संग्रहित कार्बन वापस वायुमंडल में छोड़ दिया जाता है, और कार्बन को अवशोषित करने की उनकी क्षमता भी खो जाती है। अमेज़न और इंडोनेशिया जैसे क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर वनों की कटाई ने वैश्विक कार्बन चक्र को गंभीर रूप से प्रभावित किया है।
कृषि पद्धतियाँ भी ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। पशुधन, विशेषकर मवेशी, पाचन प्रक्रिया के दौरान बड़ी मात्रा में मीथेन का उत्पादन करते हैं। चावल के खेत और सिंथेटिक नाइट्रोजन उर्वरकों का उपयोग नाइट्रस ऑक्साइड के उत्सर्जन में योगदान देता है। औद्योगिक प्रक्रियाएँ, जैसे सीमेंट और स्टील का उत्पादन, भी बड़ी मात्रा में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करती हैं।
वैश्विक तापन के प्रभावों में से सबसे प्रमुख है वैश्विक तापमान में वृद्धि। पिछले कुछ दशकों में पृथ्वी का औसत सतह तापमान लगातार बढ़ा है, और यह प्रवृत्ति जारी रहने की उम्मीद है। यह तापमान वृद्धि पूरे विश्व में देखी जा सकती है, जिसके परिणामस्वरूप गर्म हवाओं की लहरें, चरम मौसम की घटनाएँ और मौसमी बदलाव आते हैं।
तापमान वृद्धि के प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में, आर्कटिक और अंटार्कटिक में ग्लेशियर और ध्रुवीय बर्फ की टोपियाँ तेजी से पिघल रही हैं। इससे समुद्र का स्तर बढ़ रहा है, जिससे निचले तटीय क्षेत्रों और छोटे द्वीपीय राष्ट्रों के लिए गंभीर खतरा पैदा हो रहा है। समुद्र के स्तर में वृद्धि से तटीय बाढ़, भूमि का क्षरण और खारे पानी का भूजल में प्रवेश बढ़ जाता है, जिससे पीने के पानी और कृषि भूमि की उपलब्धता पर असर पड़ता है।
वैश्विक तापन चरम मौसम की घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता को भी बढ़ाता है। इसमें अधिक तीव्र गर्मी की लहरें, लंबे समय तक चलने वाले सूखे, भारी वर्षा के कारण बाढ़, और अधिक शक्तिशाली उष्णकटिबंधीय तूफान शामिल हैं। ये घटनाएँ कृषि, बुनियादी ढाँचे और मानव जीवन के लिए विनाशकारी हो सकती हैं, जिसके परिणामस्वरूप आर्थिक नुकसान और विस्थापन होता है।
पारिस्थितिकी प्रणालियों और जैव विविधता पर भी गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। कई प्रजातियाँ तापमान और जलवायु पैटर्न में तेजी से हो रहे परिवर्तनों के अनुकूल नहीं हो पा रही हैं। इससे उनके आवास का नुकसान, प्रवास पैटर्न में बदलाव और कुछ प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा बढ़ रहा है। प्रवाल भित्तियाँ, जो समुद्री जैव विविधता के लिए महत्वपूर्ण हैं, समुद्र के बढ़ते तापमान और अम्लीकरण के कारण बड़े पैमाने पर ब्लीचिंग का अनुभव कर रही हैं।
समुद्र का अम्लीकरण भी एक बड़ी चिंता का विषय है। वायुमंडल में अतिरिक्त कार्बन डाइऑक्साइड समुद्र के पानी में घुल जाती है, जिससे उसका पीएच स्तर कम हो जाता है। यह समुद्री जीवों, विशेष रूप से शंख और प्रवाल जैसे कैल्शियम कार्बोनेट संरचना वाले जीवों के लिए हानिकारक है, जिससे उनकी जीवित रहने की क्षमता प्रभावित होती है और संपूर्ण समुद्री खाद्य श्रृंखला बाधित होती है।
मानव स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था भी वैश्विक तापन से अछूते नहीं हैं। गर्मी से संबंधित बीमारियाँ और मृत्यु दर बढ़ सकती है, विशेषकर कमजोर आबादी में। बदलते जलवायु पैटर्न से कृषि उत्पादकता प्रभावित होती है, जिससे खाद्य सुरक्षा पर असर पड़ता है। प्राकृतिक आपदाओं से होने वाला आर्थिक नुकसान अरबों डॉलर तक पहुँच सकता है, जिससे विकासशील देशों पर विशेष रूप से बोझ पड़ता है।
इस वैश्विक चुनौती का सामना करने के लिए विभिन्न शमन रणनीतियों की आवश्यकता है। सबसे महत्वपूर्ण कदम ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों, जैसे सौर और पवन ऊर्जा में परिवर्तन है। इन स्रोतों से कार्बन उत्सर्जन नहीं होता और ये जीवाश्म ईंधन पर हमारी निर्भरता को कम करने में मदद कर सकते हैं। सरकारों और उद्योगों को इस परिवर्तन को गति देने के लिए निवेश और नीतियों को बढ़ावा देना चाहिए।
ऊर्जा दक्षता और संरक्षण भी महत्वपूर्ण हैं। इमारतों में बेहतर इन्सुलेशन, कुशल उपकरणों का उपयोग, और सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना ऊर्जा की खपत और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम कर सकता है। व्यक्तियों को भी अपनी ऊर्जा खपत के बारे में जागरूक होना चाहिए और ऊर्जा-बचत प्रथाओं को अपनाना चाहिए।
वनीकरण और पुनर्वनीकरण (जंगलों को फिर से लगाना) कार्बन डाइऑक्साइड को वायुमंडल से हटाने का एक प्रभावी तरीका है। बड़े पैमाने पर पेड़ लगाने के कार्यक्रम कार्बन सिंक को बहाल करने और जैव विविधता को बढ़ावा देने में मदद कर सकते हैं। टिकाऊ भूमि उपयोग और कृषि पद्धतियों को अपनाना भी मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड के उत्सर्जन को कम करने में सहायक होगा।
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और नीतियाँ इस मुद्दे को संबोधित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। पेरिस समझौता और क्योटो प्रोटोकॉल जैसे समझौते वैश्विक स्तर पर उत्सर्जन को कम करने के लिए देशों को एक साथ लाने के प्रयास हैं। इन समझौतों का उद्देश्य वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 2 डिग्री सेल्सियस से काफी नीचे रखना है, और 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का प्रयास करना है।
व्यक्तिगत जिम्मेदारी भी मायने रखती है। हम अपने दैनिक जीवन में कई छोटे बदलाव कर सकते हैं, जैसे कम मांस का सेवन करना, कम यात्रा करना, स्थानीय उत्पादों का उपयोग करना और अपशिष्ट को कम करना। ये सभी कार्य सामूहिक रूप से बड़े प्रभाव डाल सकते हैं। शिक्षा और जागरूकता भी महत्वपूर्ण हैं ताकि लोग जलवायु परिवर्तन के बारे में सही जानकारी प्राप्त करें और कार्रवाई करने के लिए प्रेरित हों।
वैश्विक तापन एक जटिल और बहुआयामी समस्या है जिसके लिए तत्काल और समन्वित वैश्विक कार्रवाई की आवश्यकता है। यदि हम अपने ग्रह और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्थायी भविष्य सुनिश्चित करना चाहते हैं, तो जीवाश्म ईंधन से दूर हटना, नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाना और हमारे प्राकृतिक संसाधनों का अधिक जिम्मेदारी से प्रबंधन करना आवश्यक है। क्या हम इन चुनौतियों का सामना करने के लिए पर्याप्त तेजी से और पर्याप्त दृढ़ता से कार्य कर रहे हैं?