Answer: भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, जो भारत के अटॉर्नी जनरल से परामर्श कर सकते हैं।
भारत का मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India - CJI) भारतीय न्यायपालिका का सर्वोच्च पद है। वह भारत के सर्वोच्च न्यायालय का प्रमुख होता है और भारतीय न्यायिक प्रणाली का नेतृत्व करता है। मुख्य न्यायाधीश की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है, न केवल न्यायिक मामलों के निपटान में, बल्कि संवैधानिक व्याख्या, न्यायिक सुधारों और न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने में भी। यह पद भारतीय लोक प्रशासन में उच्चतम गरिमा और अधिकार रखता है।
मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। यह नियुक्ति एक जटिल प्रक्रिया का हिस्सा है जिसमें संवैधानिक प्रावधान और परम्पराएँ दोनों शामिल हैं। संविधान का अनुच्छेद 124 (2) यह निर्धारित करता है कि सर्वोच्च न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश की नियुक्ति, जिसमें मुख्य न्यायाधीश भी शामिल हैं, राष्ट्रपति द्वारा 'परामर्श' के बाद की जाएगी। हालांकि, 'परामर्श' शब्द की व्याख्या समय के साथ विकसित हुई है। प्रारंभिक वर्षों में, राष्ट्रपति अपनी इच्छानुसार किसी से भी परामर्श कर सकते थे, लेकिन धीरे-धीरे सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायिक नियुक्तियों में 'कॉलेजियम' प्रणाली को स्थापित किया।
कॉलेजियम प्रणाली के तहत, मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए, राष्ट्रपति को सर्वोच्च न्यायालय के उन न्यायाधीशों से परामर्श करना होता है जिन्हें वह उपयुक्त समझता है, और यदि राष्ट्रपति उचित समझता है, तो उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों से भी परामर्श कर सकता है। हालांकि, मुख्य न्यायाधीश के मामले में, यह परंपरा बन गई है कि राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करते हैं। यह वरिष्ठता का सिद्धांत सदियों से चला आ रहा है और इसने नियुक्ति प्रक्रिया में निरंतरता और पूर्वानुमेयता सुनिश्चित की है।
मुख्य न्यायाधीश के कार्यकाल के संबंध में, संविधान में कोई निश्चित आयु या अवधि निर्धारित नहीं है, जब तक कि वह 65 वर्ष की आयु प्राप्त न कर ले। 65 वर्ष की आयु पूरी होने पर, मुख्य न्यायाधीश स्वतः सेवानिवृत्त हो जाते हैं। कार्यकाल के दौरान, मुख्य न्यायाधीश को संसद द्वारा महाभियोग की प्रक्रिया से ही हटाया जा सकता है, यदि वे कदाचार या अक्षमता के दोषी पाए जाते हैं। यह प्रक्रिया अत्यंत कठिन है और इसके लिए संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है।
मुख्य न्यायाधीश के कर्तव्य अत्यंत व्यापक होते हैं। वह सर्वोच्च न्यायालय की पीठ की अध्यक्षता करते हैं, मामलों का आवंटन करते हैं, न्यायिक बैठकों का संचालन करते हैं, और सर्वोच्च न्यायालय के प्रशासनिक प्रमुख के रूप में कार्य करते हैं। इसके अतिरिक्त, मुख्य न्यायाधीश भारत के राष्ट्रपति को परामर्श देने का कार्य भी कर सकते हैं, विशेष रूप से संविधान की व्याख्या से संबंधित मामलों में। वह न्यायाधीशों के स्थानांतरण और नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति प्रक्रिया में 'कॉलेजियम' का महत्व सर्वोपरि है। कॉलेजियम में भारत के मुख्य न्यायाधीश और सर्वोच्च न्यायालय के चार सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश शामिल होते हैं। यह कॉलेजियम उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए नामों का प्रस्ताव करता है। मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के मामले में, कॉलेजियम वर्तमान मुख्य न्यायाधीश की सिफारिश पर सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश को प्रस्तावित करता है, जिसे राष्ट्रपति अंतिम मंजूरी देते हैं।
न्यायपालिका की स्वतंत्रता भारत के संविधान की एक मूल संरचना है। मुख्य न्यायाधीश इस स्वतंत्रता को बनाए रखने में एक प्रहरी की भूमिका निभाता है। उन्हें ऐसे निर्णय लेने होते हैं जो निष्पक्ष और कानून के शासन के अनुरूप हों, भले ही वे सरकार के लिए असुविधाजनक हों। मुख्य न्यायाधीश की निष्पक्षता और सत्यनिष्ठा न्यायपालिका में जनता के विश्वास को बनाए रखने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
मुख्य न्यायाधीश के वेतन और भत्ते संसद द्वारा निर्धारित किए जाते हैं। उनका वेतन भारत के कैबिनेट सचिव के बराबर होता है, जो उन्हें सार्वजनिक क्षेत्र में उच्चतम भुगतान वाले पदों में से एक बनाता है। इसके अतिरिक्त, उन्हें विभिन्न भत्ते और विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं, जो उनके पद की गरिमा और जिम्मेदारियों के अनुरूप होते हैं।
भारतीय न्यायिक प्रणाली में सुधारों के लिए भी मुख्य न्यायाधीश का योगदान महत्वपूर्ण होता है। वे अदालतों के कामकाज को सुव्यवस्थित करने, न्यायिक प्रक्रिया को तेज करने और न्याय को अधिक सुलभ बनाने के लिए पहल कर सकते हैं। न्यायिक रिक्तियों को भरने, न्यायाधीशों के प्रशिक्षण और न्यायिक बुनियादी ढांचे के विकास जैसे क्षेत्रों में भी उनकी भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
हालांकि, कॉलेजियम प्रणाली और न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया पर समय-समय पर बहस और आलोचना भी होती रही है। राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) जैसे प्रयासों को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा असंवैधानिक घोषित किया गया है, जिससे कॉलेजियम प्रणाली की सर्वोच्चता बनी रही। यह इंगित करता है कि मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति और न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने की प्रक्रिया में निरंतर संवैधानिक और विधायी विचार-विमर्श आवश्यक है।
मुख्य न्यायाधीश की भूमिका केवल न्यायिक निर्णय लेने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें न्यायपालिका के प्रशासनिक और नेतृत्वकारी पहलू भी शामिल हैं। वे न्यायपालिका के समग्र दृष्टिकोण को आकार देते हैं और देश में कानून के शासन को मजबूत करने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। उनकी निष्पक्षता, विवेक और संवैधानिक सिद्धांतों के प्रति अटूट प्रतिबद्धता भारत के लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण है।
भारत के अटॉर्नी जनरल, जो भारत सरकार के मुख्य कानूनी सलाहकार होते हैं, की नियुक्ति भी राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, और उनकी भूमिका मुख्य न्यायाधीश से भिन्न होती है, हालांकि दोनों ही न्यायपालिका और सरकार के कानूनी पहलुओं से जुड़े होते हैं। अटॉर्नी जनरल सरकार का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि मुख्य न्यायाधीश निष्पक्ष न्याय प्रदान करने वाली सर्वोच्च अदालत का नेतृत्व करते हैं।
संविधान के अनुच्छेद 124 (2) में 'परामर्श' शब्द के अर्थ की व्याख्या सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न निर्णयों, जैसे 'फर्स्ट जजेज केस' (1981), 'सेकंड जजेज केस' (1993), और 'थर्ड जजेज केस' (1998) में की गई है, जिसने कॉलेजियम प्रणाली को स्थापित किया। इन निर्णयों ने स्पष्ट किया कि मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए राष्ट्रपति को वरिष्ठ न्यायाधीशों के परामर्श को 'प्रधानता' देनी होगी।
मुख्य न्यायाधीश का पद देश की संवैधानिक व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। उनकी निष्पक्षता, विवेक और न्याय के प्रति प्रतिबद्धता भारतीय लोकतंत्र के सुचारू संचालन के लिए अनिवार्य है। उनकी नियुक्ति प्रक्रिया, जिसके महत्व को सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों ने समय के साथ और मजबूत किया है, यह सुनिश्चित करती है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता बनी रहे।
क्या न्यायाधीशों की नियुक्ति की वर्तमान कॉलेजियम प्रणाली, जो काफी हद तक मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व में चलती है, भारत में न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को बनाए रखने का सबसे प्रभावी तरीका है, या इसमें सुधार की गुंजाइश है?