Answer: भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
भारत में लोकतंत्र का आधार स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया है, और इस प्रक्रिया को सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी भारत के चुनाव आयोग (Election Commission of India - ECI) पर है। चुनाव आयोग एक स्वायत्त संवैधानिक निकाय है जो भारत में संसदीय, राज्य विधानसभाओं और राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति के चुनावों का संचालन करता है। इस आयोग का प्रमुख 'मुख्य चुनाव आयुक्त' (Chief Election Commissioner - CEC) होता है, जिसकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है।
मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति भारत के संविधान के अनुच्छेद 324 (2) के तहत भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। यह नियुक्ति मंत्रिपरिषद की सलाह पर होती है, लेकिन इस प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए हाल के वर्षों में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं। मूल रूप से, राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही नियुक्ति करते थे। हालांकि, 'मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और पद की अवधि) अधिनियम, 2023' के लागू होने के बाद, नियुक्ति प्रक्रिया में कुछ और संस्थाओं को शामिल किया गया है। इस अधिनियम के अनुसार, मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति एक समिति की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। इस समिति में प्रधानमंत्री (अध्यक्ष), लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री शामिल होते हैं।
मुख्य चुनाव आयुक्त का पद एक अत्यंत प्रतिष्ठित और शक्तिशाली पद है। वह चुनाव आयोग का अध्यक्ष होता है और आयोग के सभी निर्णयों में उसकी अंतिम भूमिका होती है। चुनाव आयुक्तों के विपरीत, मुख्य चुनाव आयुक्त के पास वीटो पावर (veto power) होता है, जिसका अर्थ है कि यदि किसी मुद्दे पर मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों के बीच असहमति होती है, तो मुख्य चुनाव आयुक्त का निर्णय अंतिम माना जाता है। यह व्यवस्था यह सुनिश्चित करने के लिए की गई है कि आयोग के निर्णय सुसंगत और प्रभावी हों।
चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने के प्रयास के बावजूद, मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में सर्वोच्च न्यायालय ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 2015 में, एक जनहित याचिका (Public Interest Litigation - PIL) के जवाब में, सर्वोच्च न्यायालय ने मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए एक कॉलेजियम प्रणाली (collegium system) की मांग की थी, जो न्यायपालिका और कार्यपालिका की तरह हो। न्यायालय ने कहा था कि स्वतंत्र निकायों के प्रमुखों की नियुक्ति में निष्पक्षता और योग्यता सर्वोपरि होनी चाहिए। यद्यपि न्यायालय ने सीधे तौर पर कॉलेजियम प्रणाली लागू नहीं की, लेकिन इसने सरकार को कानून बनाने के लिए प्रेरित किया, जिसके परिणामस्वरूप 2023 का अधिनियम बना।
मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल छह वर्ष या 65 वर्ष की आयु, जो भी पहले हो, तक होता है। उन्हें सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के समान वेतन और भत्ते मिलते हैं। उन्हें कदाचार या अक्षमता के आधार पर ही पद से हटाया जा सकता है, और यह प्रक्रिया भी काफी जटिल है। महाभियोग (impeachment) की प्रक्रिया के तहत, संसद के दोनों सदनों द्वारा विशेष बहुमत से पारित प्रस्ताव के बाद ही राष्ट्रपति उन्हें पद से हटा सकते हैं। यह सुरक्षा उपाय सुनिश्चित करता है कि मुख्य चुनाव आयुक्त स्वतंत्र रूप से कार्य कर सकें और किसी भी राजनीतिक दबाव से मुक्त रहें।
मुख्य चुनाव आयुक्त के कार्यों में चुनावों की अधिसूचना जारी करना, मतदाता सूचियों की तैयारी और संशोधन की देखरेख करना, मतदान केंद्रों का निर्धारण, मतदान मशीनों (EVMs) का प्रबंधन, चुनाव प्रचार की अवधि और व्यय की सीमा तय करना, राजनीतिक दलों का पंजीकरण और मान्यता देना, और चुनाव के दौरान आचार संहिता (Model Code of Conduct) लागू करना शामिल है। आयोग यह भी सुनिश्चित करता है कि चुनाव प्रक्रिया सभी के लिए सुलभ और न्यायसंगत हो, जिसमें दिव्यांगजन और दूरदराज के क्षेत्रों के मतदाता भी शामिल हैं।
चुनाव आयोग की निष्पक्षता और स्वायत्तता भारतीय लोकतंत्र की नींव है। मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता और योग्यता को प्राथमिकता देना इस स्वायत्तता को बनाए रखने के लिए अत्यंत आवश्यक है। यह सुनिश्चित करता है कि देश का नेतृत्व स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करा सके, जो स्वस्थ लोकतंत्र के लिए सर्वोपरि है।
मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति से संबंधित वर्तमान अधिनियम और भविष्य में इसमें होने वाले संभावित बदलाव, लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की परिपक्वता को दर्शाते हैं। यह एक सतत प्रक्रिया है जहाँ संस्थानों की जवाबदेही और निष्पक्षता को मजबूत करने के लिए लगातार प्रयास किए जाते हैं। क्या भविष्य में मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए और अधिक समावेशी या स्वतंत्र तंत्र विकसित करने की आवश्यकता होगी?