Answer: भारत के राष्ट्रपति
भारत का चुनाव आयोग (Election Commission of India - ECI) एक स्वायत्त संवैधानिक निकाय है जो भारत में राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय चुनावों का संचालन करता है। यह संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत स्थापित किया गया है। चुनाव आयोग का मुख्य कार्य स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना है ताकि देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया सुचारू रूप से चल सके। मुख्य चुनाव आयुक्त (Chief Election Commissioner - CEC) और अन्य चुनाव आयुक्तों (Election Commissioners - ECs) का कार्यकाल छह वर्ष या 65 वर्ष की आयु (जो भी पहले हो) तक होता है।
मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। यह नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 324 (2) के प्रावधानों के अनुसार होती है। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री की सलाह पर, मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करते हैं। हालांकि, राष्ट्रपति की नियुक्ति में एक निश्चित प्रक्रिया का पालन किया जाता है, जिसमें प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्रिमंडल और कभी-कभी विपक्ष के नेता की भी सलाह शामिल हो सकती है। यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि नियुक्ति निष्पक्ष हो और राजनीतिक पूर्वाग्रह से मुक्त हो।
चुनाव आयोग की स्थापना 25 जनवरी 1950 को हुई थी। इसका उद्देश्य देश में वयस्क मताधिकार के आधार पर संसद, राज्य विधानसभाओं और राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के पदों के लिए स्वतंत्र, निष्पक्ष और व्यवस्थित चुनाव कराना है। आयोग को चुनावों की अधिसूचना जारी करने, चुनाव कार्यक्रम तय करने, मतदान केंद्रों का निर्धारण करने, मतदाता सूचियों की तैयारी और संशोधन करने, राजनीतिक दलों को मान्यता देने और उनके चुनाव चिह्नों का आवंटन करने, चुनाव आचार संहिता लागू करने और उसके उल्लंघन पर कार्रवाई करने जैसी शक्तियां प्राप्त हैं।
मुख्य चुनाव आयुक्त की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। वह चुनाव आयोग का प्रमुख होता है और आयोग के सभी निर्णयों का नेतृत्व करता है। मुख्य चुनाव आयुक्त की अध्यक्षता में ही चुनाव आयोग नीतियों का निर्माण करता है और चुनावों के संचालन के लिए दिशानिर्देश जारी करता है। मुख्य चुनाव आयुक्त के पास चुनाव से संबंधित किसी भी मामले में निर्णायक मत देने का अधिकार होता है, खासकर जब चुनाव आयुक्तों के बीच कोई मतभेद हो।
चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के संदर्भ में, हाल के वर्षों में एक महत्वपूर्ण बदलाव आया है। पहले, मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पूरी तरह से राष्ट्रपति के विवेक पर (प्रधानमंत्री की सलाह पर) होती थी। हालांकि, 2023 में, संसद ने 'मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों (सेवा की शर्तें और कार्य) अधिनियम, 2023' पारित किया। इस अधिनियम के अनुसार, मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों के चयन के लिए एक समिति का गठन किया जाएगा। इस समिति में प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्रिमंडल के एक मंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता शामिल होंगे। राष्ट्रपति इस समिति की सिफारिश के आधार पर ही नियुक्ति करेंगे।
इस नई चयन समिति का उद्देश्य नियुक्ति प्रक्रिया में अधिक पारदर्शिता और निष्पक्षता लाना है। पहले जहां प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति नियुक्ति करते थे, वहीं अब एक त्रिपक्षीय समिति की सिफारिश महत्वपूर्ण हो गई है। विपक्ष के नेता की भागीदारी यह सुनिश्चित करती है कि सरकार के अलावा एक स्वतंत्र आवाज भी नियुक्ति प्रक्रिया में शामिल हो। हालांकि, इस अधिनियम को लेकर कुछ बहसें भी हुई हैं, खासकर समिति में सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश को शामिल न करने को लेकर।
चुनाव आयोग की निष्पक्षता और स्वायत्तता भारतीय लोकतंत्र के लिए अत्यंत आवश्यक है। यह सुनिश्चित करता है कि सत्ताधारी दल अपनी शक्ति का दुरुपयोग करके चुनावों को प्रभावित न कर सके। मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों के पद की गरिमा और स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए उनकी नियुक्ति प्रक्रिया का निष्पक्ष होना सर्वोपरि है।
भारतीय संविधान में मुख्य चुनाव आयुक्त को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है, जो देश की सर्वोच्च कार्यकारी शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह नियुक्ति प्रधानमंत्री की सलाह पर होती है, जो सरकार के मुखिया होते हैं। चुनाव आयोग की स्वायत्तता को बनाए रखने के लिए, यह आवश्यक है कि नियुक्ति प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष हो, और इसमें विभिन्न राजनीतिक विचारों का भी ध्यान रखा जाए।
मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों को उनके पद से केवल महाभियोग प्रक्रिया द्वारा ही हटाया जा सकता है, जो उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया के समान है। यह उन्हें कार्यकाल की सुरक्षा प्रदान करता है और उन्हें स्वतंत्र रूप से कार्य करने में सक्षम बनाता है।
चुनाव आयोग की जिम्मेदारियों में चुनावी धोखाधड़ी को रोकना, आदर्श आचार संहिता का प्रवर्तन, और सभी नागरिकों के लिए मतदान के अधिकार को सुनिश्चित करना शामिल है। उनकी भूमिका सिर्फ चुनाव कराने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि वे लोकतंत्र के प्रहरी के रूप में भी कार्य करते हैं।
संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत, चुनाव आयोग को संसद, राज्य विधानमंडलों और राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनावों के संचालन, निर्देशन और नियंत्रण की शक्ति प्रदान की गई है। इस शक्ति का प्रयोग करते हुए, चुनाव आयोग यह सुनिश्चित करता है कि भारत जैसे विशाल और विविध देश में भी चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से संपन्न हों।
चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया का इतिहास और वर्तमान स्वरूप, भारतीय लोकतंत्र की परिपक्वता और उसके संस्थानों की मजबूती को दर्शाता है। इन नियुक्तियों में निष्पक्षता बनाए रखना, भविष्य में होने वाले चुनावों की विश्वसनीयता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। क्या चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में और अधिक सुधारों की आवश्यकता है ताकि उनकी स्वायत्तता और निष्पक्षता को और मजबूती मिले?