Answer: (D) धन विधेयक केवल राज्यसभा में ही प्रस्तुत किया जा सकता है।
भारतीय संसद भारत गणराज्य का सर्वोच्च विधायी निकाय है। यह भारत के संविधान के आधारशिला और भारतीय लोकतंत्र का प्रतीक है। संसद केवल कानून बनाने वाली संस्था नहीं है, बल्कि यह देश की जनता की आकांक्षाओं, विचारों और विविधताओं का प्रतिबिंब भी है। यह केंद्र सरकार के कार्यों की निगरानी करती है, नीतियों पर बहस करती है और देश के भविष्य की दिशा निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भारत जैसे विशाल और विविध देश में, एक मजबूत और प्रभावी संसद का होना लोकतांत्रिक शासन के लिए अनिवार्य है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 79 के अनुसार, संघ के लिए एक संसद होगी, जो राष्ट्रपति और दो सदनों से मिलकर बनेगी, जिनके नाम क्रमशः राज्यसभा और लोकसभा होंगे। राष्ट्रपति संसद का एक अभिन्न अंग होता है, हालांकि वह किसी भी सदन का सदस्य नहीं होता है। संसद का यह द्विसदनीय स्वरूप सरकार को अधिक प्रभावी और संतुलित बनाने में मदद करता है, जहां एक सदन (लोकसभा) सीधे जनता का प्रतिनिधित्व करता है और दूसरा (राज्यसभा) राज्यों का प्रतिनिधित्व करता है, जिससे संघीय ढांचे को मजबूती मिलती है।
लोकसभा, जिसे 'जनता का सदन' या निचला सदन भी कहा जाता है, संसद का सबसे शक्तिशाली और प्रतिनिधि सदन है। इसके सदस्य सीधे वयस्क मताधिकार के आधार पर भारत के लोगों द्वारा चुने जाते हैं। वर्तमान में, लोकसभा में अधिकतम 550 सदस्य हो सकते हैं (2019 के 104वें संविधान संशोधन अधिनियम के बाद आंग्ल-भारतीय समुदाय के लिए आरक्षित दो सीटों का प्रावधान समाप्त कर दिया गया है)। लोकसभा का सामान्य कार्यकाल पाँच वर्ष का होता है, हालांकि इसे प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा पहले भी भंग किया जा सकता है। सरकार बनाने के लिए किसी भी दल या गठबंधन को लोकसभा में बहुमत हासिल करना अनिवार्य है। यह सदन जनता के मुद्दों और शिकायतों को सीधे संसद में लाने का मंच प्रदान करता है।
राज्यसभा, जिसे 'राज्यों की परिषद' या ऊपरी सदन कहा जाता है, भारतीय संसद का दूसरा सदन है। यह सदन सीधे जनता द्वारा नहीं चुना जाता, बल्कि इसके सदस्य राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के माध्यम से चुने जाते हैं। इसकी अधिकतम सदस्य संख्या 250 हो सकती है, जिसमें से 238 सदस्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि 12 सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा कला, साहित्य, विज्ञान और समाज सेवा जैसे क्षेत्रों में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव रखने वाले व्यक्तियों में से मनोनीत किया जाता है। राज्यसभा एक स्थायी सदन है और इसे भंग नहीं किया जा सकता। इसके एक-तिहाई सदस्य हर दो साल में सेवानिवृत्त होते हैं, और उनका स्थान नए सदस्य लेते हैं। राज्यसभा देश के संघीय स्वरूप का प्रतिनिधित्व करती है और यह सुनिश्चित करती है कि कानून बनाने की प्रक्रिया में राज्यों के हितों का ध्यान रखा जाए।
भारत का राष्ट्रपति संसद का एक अविभाज्य हिस्सा होता है। हालांकि वह संसद के किसी भी सदन की कार्यवाही में भाग नहीं लेता है, फिर भी राष्ट्रपति की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। राष्ट्रपति संसद के सत्रों को बुलाता है (आहूत करता है), उनका सत्रावसान करता है और लोकसभा को भंग भी कर सकता है। राष्ट्रपति के बिना कोई भी विधेयक कानून नहीं बन सकता, क्योंकि संसद के दोनों सदनों से पारित होने के बाद विधेयक पर राष्ट्रपति की सहमति अनिवार्य होती है। जब संसद सत्र में न हो और किसी तत्काल कानून की आवश्यकता हो, तो राष्ट्रपति अध्यादेश जारी कर सकता है, जिसका वही बल होता है जो संसद द्वारा बनाए गए कानून का होता है।
संसद का प्राथमिक कार्य कानून बनाना है। यह संघ सूची, समवर्ती सूची और अवशिष्ट शक्तियों से संबंधित विषयों पर कानून बनाती है। कोई भी नया कानून बनाने के लिए विधेयक (बिल) का प्रारूप तैयार किया जाता है, जिसे फिर संसद के दोनों सदनों से पारित होना होता है। सामान्य विधेयक किसी भी सदन में प्रस्तुत किए जा सकते हैं, जबकि धन विधेयक केवल लोकसभा में ही प्रस्तुत किए जा सकते हैं। विधेयक को कानून बनने के लिए दोनों सदनों द्वारा पारित होने के बाद राष्ट्रपति की स्वीकृति आवश्यक होती है। यह प्रक्रिया गहन बहस, संशोधन और समितियों में विचार-विमर्श से गुजरती है, जिससे कानूनों की गुणवत्ता सुनिश्चित होती है।
संसद का एक अन्य महत्वपूर्ण कार्य कार्यपालिका पर नियंत्रण रखना है। मंत्री परिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है। संसद विभिन्न उपकरणों जैसे प्रश्नकाल, शून्यकाल, आधे घंटे की चर्चा, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव, स्थगन प्रस्ताव और अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से सरकार की नीतियों और कार्यों की जांच करती है और उसे जवाबदेह ठहराती है। प्रश्नकाल के दौरान, सदस्य मंत्रियों से प्रश्न पूछते हैं और सरकार को अपने निर्णयों का औचित्य साबित करना पड़ता है। अविश्वास प्रस्ताव सरकार को पद से हटाने का सबसे सीधा तरीका है, यदि वह लोकसभा में बहुमत खो देती है। यह तंत्र सरकार को मनमाने ढंग से कार्य करने से रोकता है और उसे जनता के प्रति जवाबदेह बनाए रखता है।
संसद के पास देश के वित्त पर पूर्ण नियंत्रण होता है। कोई भी कर बिना संसदीय अनुमोदन के लगाया या एकत्र नहीं किया जा सकता है। वार्षिक केंद्रीय बजट, जिसमें सरकार की आय और व्यय का विस्तृत विवरण होता है, संसद द्वारा ही अनुमोदित किया जाता है। धन विधेयक, जो कराधान, सरकारी उधार या भारत की संचित निधि से धन के विनियोग से संबंधित होते हैं, केवल लोकसभा में ही प्रस्तुत किए जा सकते हैं। राज्यसभा धन विधेयक में संशोधन की सिफारिश कर सकती है, लेकिन लोकसभा उन सिफारिशों को मानने के लिए बाध्य नहीं है। अंततः, लोकसभा को धन विधेयक के संबंध में अधिक शक्ति प्राप्त है, जो सीधे जनता के प्रतिनिधियों के हाथ में वित्त नियंत्रण की शक्ति को केंद्रित करता है।
संसद के पास संविधान में संशोधन करने की शक्ति है, जैसा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 368 में निर्धारित है। संविधान संशोधन विधेयक दोनों सदनों में विशेष बहुमत से पारित होना चाहिए। कुछ संशोधनों के लिए आधे राज्यों के विधानमंडलों के अनुसमर्थन की भी आवश्यकता होती है। इसके अलावा, संसद निर्वाचक मंडल के रूप में भी कार्य करती है। यह राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेती है। लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव भी लोकसभा के सदस्य अपने बीच से करते हैं, जबकि राज्यसभा के उपसभापति का चुनाव राज्यसभा के सदस्य करते हैं। यह प्रक्रियाएं संसद को न केवल एक विधायी बल्कि एक महत्वपूर्ण संवैधानिक और चुनावी निकाय बनाती हैं।
संसद के पास कुछ न्यायिक शक्तियाँ भी हैं। यह राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों, मुख्य चुनाव आयुक्त, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक जैसे उच्च पदाधिकारियों के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू कर सकती है और उन्हें पद से हटा सकती है। इसके अतिरिक्त, संसद के पास राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा को अनुमोदित करने, राज्यों के नाम और सीमाओं को बदलने, नए राज्यों का गठन करने और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए कानून बनाने की शक्ति है। यह विभिन्न समितियों के माध्यम से विस्तृत जांच और विचार-विमर्श करती है, जो कानूनों और नीतियों के गहन अध्ययन में सहायक होती हैं।
भारतीय संसद अपने कार्यों को सुचारु रूप से चलाने के लिए विभिन्न प्रक्रियाओं और नियमों का पालन करती है। संसद के तीन मुख्य सत्र होते हैं: बजट सत्र (फरवरी-मई), मानसून सत्र (जुलाई-सितंबर), और शीतकालीन सत्र (नवंबर-दिसंबर)। इन सत्रों के दौरान, प्रश्नकाल, शून्यकाल, विधेयकों पर बहस, और विभिन्न प्रस्तावों पर चर्चा होती है। संसदीय समितियाँ, जिनमें स्थायी समितियाँ और तदर्थ समितियाँ शामिल हैं, विधेयकों की विस्तृत जांच करने, मंत्रालयिक बजटों का विश्लेषण करने और सरकार के कामकाज पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये समितियां विशेषज्ञों की राय और सार्वजनिक प्रतिक्रिया को कानून बनाने की प्रक्रिया में शामिल करने का माध्यम बनती हैं।
भारतीय संसद भारत के लोकतंत्र की आत्मा है। यह विविध आवाजों को एक मंच प्रदान करती है, जहाँ राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर व्यापक बहस और विचार-विमर्श होता है। यह सरकार को जनता के प्रति जवाबदेह ठहराती है और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करती है। हालांकि, संसद को कई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है, जैसे कि सत्रों के दौरान व्यवधान, विधेयकों को बिना पर्याप्त बहस के पारित करना, और सदस्यों द्वारा अपने कर्तव्यों का समुचित निर्वहन न करना। इन चुनौतियों के बावजूद, संसद भारतीय लोकतंत्र का सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ बनी हुई है, जो देश के प्रगति और सुशासन को सुनिश्चित करने में केंद्रीय भूमिका निभाती है। क्या वर्तमान संसदीय प्रणाली, अपनी सभी खूबियों और खामियों के साथ, इक्कीसवीं सदी की जटिलताओं और तेजी से बदलती सामाजिक-आर्थिक आवश्यकताओं को प्रभावी ढंग से पूरा करने में सक्षम है?