Answer: डॉ. भीमराव अंबेडकर
भारतीय संविधान का निर्माण भारत के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। यह एक ऐसी प्रक्रिया थी जिसने न केवल भारत को एक गणराज्य के रूप में परिभाषित किया, बल्कि देश के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक ताने-बाने को भी एक नया आकार दिया। इस जटिल और अभूतपूर्व कार्य के पीछे जिन व्यक्तियों का प्रमुख योगदान था, उनमें से एक ऐसे व्यक्तित्व थे जिन्होंने अपने ज्ञान, दूरदर्शिता और अथक प्रयासों से इस संविधान को मूर्त रूप दिया। उन्हें 'भारतीय संविधान के जनक' के रूप में सम्मानित किया जाता है।
यह व्यक्ति और कोई नहीं बल्कि डॉ. भीमराव अंबेडकर थे। उनका जन्म 14 अप्रैल, 1891 को मध्य भारत में एक दलित परिवार में हुआ था। उस समय, भारत में जाति व्यवस्था अत्यंत कठोर थी और दलितों को समाज के सबसे निचले पायदान पर रखा जाता था। उन्हें अस्पृश्य माना जाता था और शिक्षा, सम्मान और अवसरों से वंचित रखा जाता था। अंबेडकर का प्रारंभिक जीवन इन सामाजिक असमानताओं और भेदभाव से जूझते हुए बीता, जिसने उनके मन में अन्याय के प्रति गहरी नफरत और सामाजिक परिवर्तन की तीव्र इच्छा पैदा की।
अपनी असाधारण प्रतिभा और सीखने की ललक के कारण, अंबेडकर ने प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और फिर उच्च शिक्षा के लिए कोलंबिया विश्वविद्यालय, न्यूयॉर्क (संयुक्त राज्य अमेरिका) गए, जहाँ उन्होंने अर्थशास्त्र में मास्टर डिग्री और पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। बाद में, उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (यूनाइटेड किंगडम) से अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। उनकी शिक्षाएँ उन्हें एक विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग के रूप में नहीं, बल्कि दलितों के अधिकारों और उत्थान के लिए एक शक्तिशाली हथियार के रूप में सेवा करने वाली थीं।
ब्रिटिश शासन के दौरान, अंबेडकर ने भारतीय राजनीति में एक प्रमुख आवाज़ के रूप में उभरना शुरू किया। उन्होंने दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष करने हेतु 'बहिष्कृत हितकारिणी सभा' (1924) और 'स्वतंत्र मजदूर पार्टी' (1936) जैसे संगठनों की स्थापना की। उन्होंने दलितों के लिए अलग निर्वाचक मंडल की मांग की, ताकि वे राजनीति में अपना प्रतिनिधित्व सुनिश्चित कर सकें। उनकी इन मांगों ने तत्कालीन राजनीतिक परिदृश्य में हलचल मचा दी और उन्हें एक विवादास्पद लेकिन प्रभावशाली नेता के रूप में स्थापित किया।
1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, डॉ. अंबेडकर को नवगठित संविधान सभा में नियुक्त किया गया। वे संविधान के मसौदा समिति के अध्यक्ष बने, जो भारतीय संविधान के निर्माण के लिए जिम्मेदार मुख्य समिति थी। इस भूमिका में, अंबेडकर ने संविधान के प्रत्येक अनुच्छेद, प्रत्येक खंड और प्रत्येक शब्द पर अत्यंत बारीकी से काम किया। उन्होंने देश के लिए एक ऐसे संविधान का निर्माण करने का लक्ष्य रखा जो न केवल एक मजबूत राष्ट्र की नींव रखे, बल्कि समानता, स्वतंत्रता, न्याय और बंधुत्व जैसे लोकतांत्रिक मूल्यों को भी स्थापित करे।
संविधान के मसौदा तैयार करने में अंबेडकर का योगदान अभूतपूर्व था। उन्होंने न केवल कानूनों का गहन ज्ञान प्रदर्शित किया, बल्कि सामाजिक न्याय और राष्ट्र निर्माण के प्रति अपनी गहरी प्रतिबद्धता को भी दर्शाया। उन्होंने विभिन्न देशों के संविधानों का अध्ययन किया और उन सर्वोत्कृष्ट तत्वों को भारतीय संदर्भ के अनुकूल बनाने का प्रयास किया। उनके विचारों और तर्कों ने संविधान सभा में अक्सर बहस को एक नई दिशा दी। उन्होंने जातिवाद, छुआछूत और सामाजिक भेदभाव के उन्मूलन के लिए कड़े प्रावधानों को शामिल करने पर जोर दिया।
डॉ. अंबेडकर के अथक प्रयासों के परिणामस्वरूप, भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों, राज्य के नीति निदेशक तत्वों और नागरिकता जैसे महत्वपूर्ण प्रावधान शामिल किए गए। उन्होंने अस्पृश्यता के उन्मूलन और अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए विशेष प्रावधानों पर विशेष जोर दिया, जो उनके जीवन भर के संघर्ष का प्रतीक था। संविधान के अनुच्छेद 17 ने अस्पृश्यता को समाप्त कर दिया और इसके किसी भी रूप में आचरण को दंडनीय अपराध घोषित किया।
संविधान निर्माण के बाद, डॉ. अंबेडकर स्वतंत्र भारत के पहले कानून और न्याय मंत्री बने। इस पद पर रहते हुए भी, उन्होंने कानूनी सुधारों को आगे बढ़ाया और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए हिंदू संहिता विधेयक जैसे महत्वपूर्ण कानून लाने का प्रयास किया, हालांकि उन्हें तत्कालीन राजनीतिक विरोध के कारण पूर्ण सफलता नहीं मिली। वे भारत में जल संसाधनों के विकास और प्रबंधन के भी प्रबल समर्थक थे, और उन्होंने कई बांधों और नहरों के निर्माण की वकालत की।
डॉ. अंबेडकर का भारतीय संविधान के निर्माण में योगदान इतना गहरा और व्यापक था कि उन्हें निस्संदेह 'भारतीय संविधान का जनक' कहा जाता है। यह उपाधि न केवल उनके द्वारा किए गए कठिन परिश्रम और बौद्धिक क्षमता का सम्मान करती है, बल्कि उस युग के सामाजिक और राजनीतिक संदर्भ में उनके द्वारा किए गए क्रांतिकारी बदलावों का भी प्रतीक है। उन्होंने एक ऐसा दस्तावेज तैयार किया जिसने भारत को एक सार्वभौम, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में स्थापित किया, और जिसने लाखों लोगों को स्वतंत्रता और गरिमा के साथ जीने का अधिकार दिया।
डॉ. भीमराव अंबेडकर को मरणोपरांत 1990 में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान, 'भारत रत्न' से सम्मानित किया गया। उनका जीवन आज भी लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है, खासकर उन लोगों के लिए जो सामाजिक न्याय और समानता के लिए संघर्ष कर रहे हैं। भारतीय संविधान, जिसे उन्होंने इतनी लगन से तैयार किया, आज भी भारत के शासन और न्याय प्रणाली की रीढ़ है, और यह उनकी विरासत का सबसे बड़ा प्रमाण है। भारतीय संविधान के जनक डॉ. भीमराव अंबेडकर के जीवन और कार्य भारतीय इतिहास और समाजशास्त्र के अध्ययन का एक अनिवार्य हिस्सा हैं। उनकी देन का अध्ययन हमें न केवल एक राष्ट्र के निर्माण की प्रक्रिया को समझने में मदद करता है, बल्कि उस समय की सामाजिक और राजनीतिक चुनौतियों का भी सामना करने के लिए प्रेरित करता है।
आज, जब हम भारतीय संविधान के आदर्शों को देखते हैं, तो हमें डॉ. अंबेडकर के दूरदर्शी विचारों और अथक प्रयासों की याद आती है। उन्होंने न केवल एक कानूनी दस्तावेज बनाया, बल्कि एक ऐसे समाज की नींव रखी जहाँ हर नागरिक को सम्मान और समानता का अधिकार प्राप्त हो। क्या आप भारतीय संविधान के निर्माण में उनके जैसे अन्य प्रमुख योगदानकर्ताओं और उनकी भूमिकाओं के बारे में विस्तार से जानना चाहेंगे?