Answer: राजा मान सिंह प्रथम (Raja Man Singh I)
भारत, अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और गौरवशाली इतिहास के लिए विश्व भर में विख्यात है। इस विरासत के सबसे भव्य और प्रभावशाली प्रतीक यहाँ के अनगिनत किले और महल हैं। ये संरचनाएँ न केवल वास्तुकला के अद्भुत नमूने हैं, बल्कि उन साम्राज्यों, युद्धों, प्रेम कहानियों और वीरता की गाथाओं की मूक गवाह भी हैं जिन्होंने सदियों तक इस भूमि को आकार दिया। इन्हीं में से एक, जयपुर के पास स्थित आमेर किला, अपनी भव्यता और बेजोड़ स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है। आमेर, जिसे अंबर के नाम से भी जाना जाता है, कछवाहा राजपूतों की राजधानी हुआ करता था, और इस किले का निर्माण मुख्य रूप से राजा मान सिंह प्रथम ने करवाया था, जिन्होंने 16वीं शताब्दी के अंत में इसका कार्य शुरू किया था।
आमेर किले की नींव तो बहुत पहले रखी गई थी, लेकिन राजा मान सिंह प्रथम ने इसे एक भव्य और दुर्गम किले के रूप में विकसित किया। उनके बाद के शासकों, विशेषकर मिर्जा राजा जय सिंह और सवाई जय सिंह द्वितीय ने इसमें और भी विस्तार और सुधार किए। यह किला माओटा झील के किनारे एक पहाड़ी पर स्थित है, जो इसे एक रणनीतिक लाभ और साथ ही मनमोहक दृश्य प्रदान करता है। किले की दीवारें और प्रवेश द्वार लाल बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर से बने हैं, जो इसकी शोभा को और बढ़ाते हैं। इसकी वास्तुकला में राजपूत और मुगल शैलियों का एक अनूठा और सामंजस्यपूर्ण मिश्रण देखने को मिलता है, जो उस समय के राजनीतिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का प्रतीक है।
आमेर किले के भीतर कई शानदार संरचनाएँ हैं, जैसे 'दीवान-ए-आम' (आम लोगों के लिए सभागार), 'दीवान-ए-खास' (शाही परिवार और विशिष्ट अतिथियों के लिए सभागार), 'शीश महल' (दर्पणों का महल) और 'सुख निवास'। शीश महल विशेष रूप से प्रसिद्ध है, जहाँ दीवारों और छत पर छोटे-छोटे दर्पणों को इतनी कलात्मकता से जड़ा गया है कि एक मोमबत्ती की रोशनी पूरे कमरे को जगमगा देती है। सुख निवास में एक कृत्रिम झरने के माध्यम से हवा को ठंडा करने की प्राचीन वास्तुकला का उदाहरण मिलता है, जो उस समय की इंजीनियरिंग कौशल को दर्शाता है। किले के गणेश पोल, एक अलंकृत प्रवेश द्वार है, जो अपनी भव्यता और चित्रकला के लिए जाना जाता है।
आमेर किला सिर्फ अपनी सुंदरता के लिए ही नहीं, बल्कि अपनी मजबूत रक्षा प्रणालियों के लिए भी जाना जाता है। इसकी विशाल दीवारें और रणनीतिक स्थान इसे बाहरी आक्रमणों से सुरक्षित रखते थे। किले में पानी के संरक्षण और आपूर्ति की उत्कृष्ट व्यवस्था थी, जिसमें वर्षा जल संचयन के तरीके शामिल थे। आज, यह किला यूनेनेस्को विश्व धरोहर स्थल का हिस्सा है और हर साल लाखों पर्यटकों को आकर्षित करता है, जो यहाँ हाथी की सवारी का आनंद लेते हैं और राजपूत राजाओं के गौरवशाली अतीत को करीब से अनुभव करते हैं।
राजस्थान, जिसे 'राजाओं की भूमि' कहा जाता है, आमेर जैसे कई अन्य भव्य किलों और महलों का घर है, जो राज्य की विरासत को परिभाषित करते हैं। जोधपुर में स्थित मेहरानगढ़ किला, राव जोधा द्वारा निर्मित, भारत के सबसे बड़े किलों में से एक है। एक विशालकाय चट्टान पर स्थित यह किला अपनी अभेद्य दीवारों, जटिल नक्काशी और विस्तृत महलों जैसे मोती महल, फूल महल और शीश महल के लिए जाना जाता है। यह किला अपनी शानदार वास्तुकला और मनोरम दृश्यों के कारण एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण है।
उदयपुर का सिटी पैलेस, महाराणा उदय सिंह द्वितीय द्वारा निर्मित, पिछोला झील के किनारे स्थित महलों का एक प्रभावशाली परिसर है। यह अपने अद्वितीय स्थापत्य कला, सुंदर प्रांगणों, उद्यानों और रंगीन कांच की खिड़कियों के लिए प्रसिद्ध है। यह महल राजस्थानी और मुगल वास्तुकला का एक सुंदर मिश्रण प्रस्तुत करता है और आज भी मेवाड़ के शाही परिवार का निवास स्थान है, जिसके कुछ हिस्से संग्रहालयों में बदल दिए गए हैं।
जैसलमेर किला, जिसे 'सोनार किला' या 'गोल्डन फोर्ट' के नाम से भी जाना जाता है, रावत जैसल द्वारा 1156 ईस्वी में निर्मित, दुनिया के कुछ 'जीवित किलों' में से एक है। यह अपनी सुनहरी बलुआ पत्थर की दीवारों के कारण सूर्यास्त के समय सोने की तरह चमकता है। किले के भीतर दुकानें, होटल और प्राचीन हवेलियाँ हैं जहाँ आज भी लोग निवास करते हैं। यह किला थार रेगिस्तान के बीच में एक रत्न की तरह खड़ा है, जो प्राचीन व्यापार मार्गों की गवाही देता है।
चित्तौड़गढ़ किला, भारत के सबसे बड़े किलों में से एक है और मेवाड़ की वीरता और बलिदान का प्रतीक है। यह किला अपनी महान कहानियों और ऐतिहासिक घटनाओं के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें रानी पद्मिनी के जौहर की कहानी भी शामिल है। यहाँ कई महल, मंदिर और जलाशय हैं, जो इसे एक समृद्ध ऐतिहासिक स्थल बनाते हैं। इसका निर्माण मौर्य काल में शुरू हुआ माना जाता है, और समय-समय पर विभिन्न शासकों द्वारा इसका विस्तार किया गया।
राजस्थान से बाहर, भारत के अन्य हिस्सों में भी कई शानदार किले और महल हैं जो देश के इतिहास और वास्तुकला को दर्शाते हैं। उत्तर प्रदेश में आगरा किला, यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल, मुगल सम्राट अकबर द्वारा निर्मित, एक विशाल और प्रभावशाली संरचना है। यह लाल बलुआ पत्थर से बना है और मुगल वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, मुसम्मन बुर्ज और मोती मस्जिद जैसी कई सुंदर इमारतें हैं। यहीं से शाहजहाँ ने अपने अंतिम दिनों में ताजमहल को देखा था।
दिल्ली का लाल किला, मुगल सम्राट शाहजहाँ द्वारा बनवाया गया, भारतीय वास्तुकला के मुकुट में एक और गहना है। यह भी लाल बलुआ पत्थर से निर्मित है और अपनी भव्यता, विस्तृत उद्यानों और जटिल नक्काशी के लिए जाना जाता है। भारत के स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री यहीं से राष्ट्र को संबोधित करते हैं, जो इसे एक राष्ट्रीय प्रतीक बनाता है। इसमें दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, रंग महल और मोती मस्जिद जैसी संरचनाएं हैं।
मध्य प्रदेश में ग्वालियर किला, जिसे 'किले के किलों का रत्न' कहा जाता है, एक पहाड़ी पर स्थित है और सदियों से कई राजवंशों के उत्थान और पतन का गवाह रहा है। इसके अंदर मानसिंह पैलेस, गुजरी महल और कई मंदिर स्थित हैं, जो इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को बढ़ाते हैं। इस किले का निर्माण 8वीं शताब्दी में शुरू हुआ था, और यह अपनी अनूठी वास्तुकला और विशालता के लिए प्रसिद्ध है।
तेलंगाना में गोलकुंडा किला, अपनी समृद्ध हीरे की खानों और अद्वितीय ध्वनिक प्रणाली के लिए प्रसिद्ध है। इसका निर्माण काकतीय राजवंश ने करवाया था और बाद में कुतुब शाही राजवंश द्वारा इसका विस्तार किया गया। किले के मुख्य द्वार पर ताली बजाने की ध्वनि एक किलोमीटर दूर बालकिसार बारादरी तक सुनी जा सकती है, जो उस समय की इंजीनियरिंग का एक चमत्कार है। यह किला कई युद्धों और घेराबंदी का गवाह रहा है।
ये किले और महल केवल पत्थर की संरचनाएँ नहीं हैं, बल्कि ये शक्ति, कला, संस्कृति और जीवनशैली के प्रतीक हैं। इनका निर्माण रणनीतिक सुरक्षा, शाही निवास और दरबार संचालन के उद्देश्यों से किया गया था। इनमें से कई अपनी जल संचयन प्रणालियों, गुप्त मार्गों और भव्य उद्यानों के लिए भी उल्लेखनीय हैं। इन संरचनाओं में प्रयुक्त सामग्री स्थानीय रूप से उपलब्ध होती थी, जैसे राजस्थान में बलुआ पत्थर और कुछ स्थानों पर संगमरमर।
इन ऐतिहासिक स्थलों का महत्व केवल उनकी वास्तुकला और इंजीनियरिंग तक सीमित नहीं है, बल्कि ये भारत की कहानियों, किंवदंतियों और लोककथाओं के भंडार भी हैं। वे हमें सिखाते हैं कि कैसे विभिन्न संस्कृतियाँ और धर्म एक साथ सह-अस्तित्व में रहे और एक-दूसरे को प्रभावित किया, जिससे एक अद्वितीय भारतीय पहचान का विकास हुआ। ये भारत की 'अतुल्य भारत' ब्रांडिंग का एक अभिन्न अंग हैं और वैश्विक पर्यटन मानचित्र पर देश को एक विशेष स्थान दिलाते हैं।
आधुनिक युग में, इन किलों और महलों का संरक्षण एक बड़ी चुनौती है। सरकार और विभिन्न संगठन इन अमूल्य धरोहरों को भविष्य की पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। इन स्थलों का रखरखाव, जीर्णोद्धार और डिजिटलीकरण जैसी पहलें इन्हें संरक्षित करने और उनकी कहानियों को दुनिया के सामने लाने में मदद कर रही हैं। पर्यटन इन स्थलों के लिए राजस्व भी उत्पन्न करता है, जिससे उनके रखरखाव में सहायता मिलती है।
संक्षेप में, भारत के किले और महल केवल ईंट और गारे की संरचनाएँ नहीं हैं, बल्कि वे देश के गौरवशाली अतीत, उसकी रचनात्मकता और उसके अटूट भावना के प्रतीक हैं। वे हमें एक ऐसे युग में ले जाते हैं जहाँ राजा-महाराजाओं की कहानियाँ दीवारों में गूँजती थीं और हर पत्थर एक कहानी कहता था। क्या इन ऐतिहासिक स्मारकों का सिर्फ पर्यटन स्थल के रूप में प्रचार करना उनकी वास्तविक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक गहराई को अनदेखा करना नहीं है?