Answer: विक्टर हेस (Victor Hess)
कॉस्मिक किरणें, ब्रह्मांड के सबसे रहस्यमय और ऊर्जावान कणों में से एक हैं। ये अंतरिक्ष में लगभग प्रकाश की गति से यात्रा करने वाले उच्च-ऊर्जा वाले कण हैं, जो पृथ्वी पर लगातार बरसते रहते हैं। अपने नाम के विपरीत, ये किरणें वास्तव में विद्युत चुम्बकीय विकिरण (जैसे प्रकाश या एक्स-रे) नहीं हैं, बल्कि मुख्य रूप से प्रोटॉन, अल्फा कण और कुछ भारी परमाणु नाभिकों से बने आवेशित कण हैं। ब्रह्मांड के गहरे कोनों से उत्पन्न होकर, ये हमारे ग्रह पर एक अदृश्य, फिर भी शक्तिशाली प्रभाव डालते हैं, जो खगोल भौतिकी, भूभौतिकी और यहां तक कि अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। इनकी खोज ने हमें ब्रह्मांड की चरम स्थितियों और ऊर्जावान प्रक्रियाओं को समझने में एक नई दिशा दी है।
इन रहस्यमय कणों की खोज का श्रेय ऑस्ट्रियाई भौतिक विज्ञानी विक्टर हेस (Victor Hess) को दिया जाता है। 20वीं सदी की शुरुआत में, वैज्ञानिकों ने देखा कि एक इलेक्ट्रोस्कोप (जो आवेश का पता लगाता है) अपने आप डिस्चार्ज हो जाता है, भले ही उसे विकिरण स्रोतों से दूर रखा गया हो। शुरुआत में, इसका कारण पृथ्वी की चट्टानों में मौजूद रेडियोधर्मिता को माना गया। हेस ने इस अवधारणा को चुनौती दी। उन्होंने तर्क दिया कि यदि विकिरण पृथ्वी से आ रहा है, तो ऊंचाई बढ़ने पर यह कम होना चाहिए। इसके विपरीत, यदि यह बाहरी अंतरिक्ष से आ रहा है, तो ऊंचाई बढ़ने पर इसकी तीव्रता बढ़नी चाहिए क्योंकि वायुमंडल की परतें इसे अवशोषित करती हैं।
1911 और 1912 में, विक्टर हेस ने कई जोखिम भरी गुब्बारा उड़ानें भरीं, जो 5,300 मीटर (लगभग 3.3 मील) की ऊंचाई तक पहुंचीं। उन्होंने अपने साथ इलेक्ट्रोस्कोप और अन्य डिटेक्टर ले गए। इन उड़ानों के दौरान, उन्होंने पाया कि जैसे-जैसे वे ऊपर जाते थे, विकिरण की तीव्रता बढ़ती जाती थी, और सबसे ऊंची ऊंचाई पर यह समुद्र तल की तुलना में कई गुना अधिक थी। इस निर्णायक अवलोकन ने सिद्ध किया कि विकिरण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा पृथ्वी के वायुमंडल के बाहर से आ रहा था। हेस ने इसे 'उच्च ऊंचाई वाले विकिरण' कहा, जिसे बाद में रॉबर्ट मिलिकन ने 'कॉस्मिक किरणें' नाम दिया। इस अभूतपूर्व खोज के लिए विक्टर हेस को 1936 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। उनकी खोज ने खगोल भौतिकी के एक बिल्कुल नए क्षेत्र की नींव रखी।
कॉस्मिक किरणें मुख्य रूप से उच्च-ऊर्जा वाले प्रोटॉन (लगभग 90%), हीलियम नाभिक (अल्फा कण, लगभग 9%) और कुछ मात्रा में भारी तत्वों के नाभिक (लगभग 1%) से बनी होती हैं। इनमें इलेक्ट्रॉनों और पॉज़िट्रॉन की एक छोटी मात्रा भी शामिल होती है। इन कणों की ऊर्जा विशाल होती है, जो पृथ्वी पर सबसे शक्तिशाली कण त्वरक द्वारा प्राप्त की गई ऊर्जा से भी अरबों गुना अधिक हो सकती है और ये लगभग प्रकाश की गति से यात्रा करते हैं। आवेशित होने के कारण, ये ब्रह्मांडीय चुंबकीय क्षेत्रों द्वारा विक्षेपित होते हैं, जिससे इनके मूल स्रोत का पता लगाना मुश्किल हो जाता है। इन्हें मुख्य रूप से प्राथमिक और द्वितीयक प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है। प्राथमिक कॉस्मिक किरणें सीधे अंतरिक्ष से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करती हैं। जब ये वायुमंडल में परमाणुओं से टकराती हैं, तो वे एक जटिल 'कणों की बौछार' (Particle Shower) या 'द्वितीयक किरणें' उत्पन्न करती हैं, जिसमें म्यूऑन, इलेक्ट्रॉन, न्यूट्रिनो और प्रोटॉन जैसे कण शामिल होते हैं। इनमें से कुछ द्वितीयक कण पृथ्वी की सतह तक पहुँच पाते हैं।
कॉस्मिक किरणों की उत्पत्ति एक जटिल विषय है और इनके विभिन्न ऊर्जा स्तरों के लिए अलग-अलग स्रोत हैं। अधिकांश मध्यम-ऊर्जा वाली कॉस्मिक किरणें (गैलेक्टिक कॉस्मिक किरणें या GCRs) हमारी अपनी आकाशगंगा, मिल्की वे से उत्पन्न होती हैं। इन GCRs का मुख्य स्रोत सुपरनोवा अवशेष (SNR) माने जाते हैं, जहाँ तारों के विस्फोट से उत्पन्न शॉक वेव 'फर्मी त्वरण' (Fermi Acceleration) तंत्र के माध्यम से आस-पास के कणों को अत्यधिक ऊर्जा स्तरों तक पहुँचाती है। कुछ GCRs न्यूट्रॉन सितारों (पल्सर) से भी उत्पन्न हो सकती हैं। सबसे उच्च-ऊर्जा वाली कॉस्मिक किरणें (UHECRs) मिल्की वे के बाहर से आने वाली मानी जाती हैं, जिन्हें एक्स्ट्रा-गैलेक्टिक कॉस्मिक किरणें (EGCRs) कहा जाता है। इनके संभावित स्रोतों में सक्रिय आकाशगंगाई नाभिक (AGN) और गामा-रे बर्स्ट (GRBs) शामिल हैं। अपेक्षाकृत कम-ऊर्जा वाली कॉस्मिक किरणें हमारे अपने सूर्य से भी उत्पन्न होती हैं, जिन्हें सौर कॉस्मिक किरणें (SCRs) कहते हैं, जो सौर ज्वालाओं और कोरोनल मास इजेक्शन जैसी सौर घटनाओं के दौरान उत्पन्न होती हैं।
कॉस्मिक किरणों का पता लगाने के लिए विभिन्न तरीकों का उपयोग किया जाता है। अंतरिक्ष-आधारित डिटेक्टर, जैसे अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर अल्फा मैग्नेटिक स्पेक्ट्रोमीटर (AMS-02), प्राथमिक कॉस्मिक किरणों का सीधे पता लगाते हैं। भू-आधारित वेधशालाएं, जैसे अर्जेंटीना में पियरे औगर वेधशाला (Pierre Auger Observatory), बहुत बड़े क्षेत्रों में द्वितीयक कणों की बौछारों का पता लगाकर उच्च-ऊर्जा वाली कॉस्मिक किरणों का अध्ययन करती हैं। ये डिटेक्टर चेरेनकोव विकिरण या फ्लोरेसेंस प्रकाश का पता लगाते हैं। न्यूट्रिनो डिटेक्टर, जैसे कि अंटार्कटिका में आइसक्यूब (IceCube), उन न्यूट्रिनो का भी पता लगाते हैं जो कॉस्मिक किरणों के अंतःक्रियाओं से उत्पन्न होते हैं, जिससे कॉस्मिक किरणों के स्रोतों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है।
कॉस्मिक किरणें केवल वैज्ञानिक जिज्ञासा का विषय नहीं हैं, बल्कि इनके कई महत्वपूर्ण प्रभाव भी हैं। अंतरिक्ष यात्रियों और उपग्रहों के लिए, कॉस्मिक किरणें एक महत्वपूर्ण विकिरण खतरा पैदा करती हैं, जो दीर्घकालिक अंतरिक्ष मिशनों की योजना बनाते समय एक चुनौती है। ये उपग्रहों और विमानों के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में 'सिंगल इवेंट अपसेट' (SEU) नामक गड़बड़ी का कारण बन सकती हैं। पृथ्वी के वायुमंडल पर इनका प्रभाव वायुमंडलीय रसायन विज्ञान और बादल निर्माण में एक छोटी भूमिका निभा सकता है। वैज्ञानिक रूप से, कॉस्मिक किरणें ब्रह्मांड में चरम भौतिकी की प्रयोगशालाएं हैं, जो हमें सुपरनोवा, ब्लैक होल और आकाशगंगाओं के निर्माण जैसी घटनाओं को समझने में मदद करती हैं। ये हमें अंतरतारकीय माध्यम की संरचना और ब्रह्मांडीय चुम्बकीय क्षेत्रों के बारे में भी जानकारी प्रदान करती हैं।
वर्तमान में, कॉस्मिक किरणों पर अनुसंधान जारी है, जिसमें सबसे अधिक ऊर्जावान कणों के स्रोतों और त्वरण तंत्र को समझना एक प्रमुख लक्ष्य है। GZK कटऑफ की समस्या को सुलझाना, कॉस्मिक किरणों की संरचना में विसंगतियों का अध्ययन (जैसे पॉज़िट्रॉन अनुपात में अतिरिक्त), और डार्क मैटर के अप्रत्यक्ष संकेतों की खोज में भी ये महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। भविष्य के मिशन और वेधशालाएं इस रहस्यमय ब्रह्मांडीय प्रवाह के बारे में हमारी समझ को और गहरा करेंगे। ब्रह्मांड में इन ऊर्जावान यात्रियों का अध्ययन हमें न केवल उनके स्रोतों तक पहुंचाता है, बल्कि ब्रह्मांड के मूलभूत नियमों को समझने में भी मदद करता है। क्या हम कभी इन अदृश्य ऊर्जावान कणों के अंतिम स्रोत और उनके त्वरण के हर रहस्य को पूरी तरह से उजागर कर पाएंगे?