Answer: प्रशांत महासागर, जिसकी सबसे गहरी बिंदु मारियाना ट्रेंच में चैलेंजर डीप है, जिसकी अनुमानित गहराई लगभग 10,984 मीटर (36,037 फीट) है।
पृथ्वी की सतह का लगभग 71% हिस्सा पानी से ढका हुआ है, जिसमें से अधिकांश महासागरों में समाहित है। ये विशाल जलराशि न केवल पृथ्वी के जलवायु और पारिस्थितिक तंत्र को नियंत्रित करती है, बल्कि मानव सभ्यता के विकास और अन्वेषण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही है। महासागरों को मोटे तौर पर पांच प्रमुख भागों में विभाजित किया गया है: प्रशांत महासागर, अटलांटिक महासागर, हिंद महासागर, दक्षिणी महासागर (अंटार्कटिक महासागर) और आर्कटिक महासागर। इन महासागरों की अपनी अनूठी विशेषताएं, गहराई, जीव-जंतु और भूवैज्ञानिक संरचनाएं हैं।
विश्व का सबसे बड़ा और सबसे गहरा महासागर प्रशांत महासागर है। यह महासागर लगभग 165.25 मिलियन वर्ग किलोमीटर (63.8 मिलियन वर्ग मील) के क्षेत्र में फैला हुआ है, जो पृथ्वी के कुल समुद्री क्षेत्र का लगभग एक तिहाई है। यह उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका को एशिया और ऑस्ट्रेलिया से अलग करता है। प्रशांत महासागर की औसत गहराई लगभग 3,970 मीटर (13,025 फीट) है, लेकिन इसमें पृथ्वी के कुछ सबसे गहरे बिंदु भी शामिल हैं।
प्रशांत महासागर की गहराई का सबसे प्रमुख उदाहरण चैलेंजर डीप (Challenger Deep) है, जो मारियाना ट्रेंच (Mariana Trench) के दक्षिणी छोर पर स्थित है। मारियाना ट्रेंच पृथ्वी की सबसे गहरी ज्ञात समुद्री खदान है। चैलेंजर डीप की अनुमानित गहराई लगभग 10,984 मीटर (36,037 फीट) है। इस गहराई की कल्पना करना अत्यंत कठिन है; यदि माउंट एवरेस्ट, पृथ्वी का सबसे ऊंचा पर्वत, को चैलेंजर डीप में डुबो दिया जाए, तो भी उसके शिखर तक लगभग 2 किलोमीटर (1.2 मील) पानी होगा।
चैलेंजर डीप का नाम एच.एम.एस. चैलेंजर (HMS Challenger) नामक ब्रिटिश सर्वेक्षण जहाज के नाम पर रखा गया है, जिसने 1870 के दशक में अपने महासागरीय अन्वेषण के दौरान इस क्षेत्र का सर्वेक्षण किया था। बाद के वर्षों में, विभिन्न अभियानों ने इस बिंदु की सटीक गहराई को मापने का प्रयास किया है। 1960 में, ट्राइस्टे (Trieste) नामक पनडुब्बी ने पहली बार चैलेंजर डीप के तल तक पहुंचकर मानव इतिहास में एक नया अध्याय लिखा। इसके बाद, 2019 में, जेम्स कैमरून (James Cameron) जैसे अन्य अन्वेषकों ने भी इस अत्यंत दबाव वाले और अंधेरे वातावरण का दौरा किया है।
प्रशांत महासागर केवल अपनी गहराई के लिए ही नहीं, बल्कि अपनी अद्भुत जैव विविधता के लिए भी जाना जाता है। इसके विशाल जलक्षेत्र में अनगिनत प्रजातियों के समुद्री जीव निवास करते हैं, जिनमें सबसे बड़े ब्लू व्हेल से लेकर सबसे छोटे प्लवक तक शामिल हैं। यह विभिन्न प्रकार के समुद्री पारिस्थितिक तंत्रों का घर है, जैसे कि प्रवाल भित्तियां, गहरे समुद्र की खाई और खुले समुद्र के मैदान। इन जीवों का अस्तित्व महासागरों के स्वास्थ्य और संतुलन के लिए महत्वपूर्ण है।
प्रशांत महासागर की भूवैज्ञानिक गतिविधि भी उल्लेखनीय है। 'रिंग ऑफ फायर' (Ring of Fire) नामक क्षेत्र, जो प्रशांत महासागर के चारों ओर स्थित है, भूकंपीय और ज्वालामुखीय गतिविधि का एक प्रमुख केंद्र है। यहां दुनिया के अधिकांश सक्रिय ज्वालामुखी और भूकंप इसी क्षेत्र में आते हैं। यह टेक्टोनिक प्लेटों की गतिविधियों का प्रत्यक्ष परिणाम है, जो प्रशांत महासागर के नीचे और किनारों पर लगातार टकराती रहती हैं।
अन्य महासागरों की भी अपनी विशिष्टताएं हैं। अटलांटिक महासागर, दूसरा सबसे बड़ा महासागर, यूरोप और अफ्रीका को अमेरिका से जोड़ता है। हिंद महासागर, जो केवल एक ही महाद्वीप (एशिया) से घिरा हुआ है, अपने गर्म पानी और मानसून जलवायु के लिए जाना जाता है। दक्षिणी महासागर, जो अंटार्कटिका के चारों ओर स्थित है, अपने ठंडे पानी और अद्वितीय वन्यजीवों के लिए प्रसिद्ध है, जैसे पेंगुइन और सील। आर्कटिक महासागर, सबसे छोटा और सबसे उथला महासागर, उत्तरी ध्रुव पर स्थित है और अधिकांश वर्ष बर्फ से ढका रहता है।
महासागरों का अन्वेषण एक सतत प्रक्रिया है। आज भी, महासागरों के गहरे हिस्से रहस्यमय बने हुए हैं, जहां अनगिनत प्रजातियां और भूवैज्ञानिक संरचनाएं हैं जिनका अभी तक पता नहीं लगाया गया है। इन विशाल जलराशियों का अध्ययन न केवल हमारे ग्रह की समझ को बढ़ाता है, बल्कि हमें भविष्य की चुनौतियों, जैसे कि जलवायु परिवर्तन और समुद्री प्रदूषण, से निपटने के लिए भी तैयार करता है। प्रत्येक महासागर का अपना अनूठा इतिहास और भविष्य है, जो पृथ्वी के जीवन चक्र में एक अभिन्न भूमिका निभाता है। क्या हम इन गहन और रहस्यमय जलक्षेत्रों के बारे में उतना ही जानते हैं जितना कि हमें जानना चाहिए?