Answer: 1988
भारत में साक्षरता एक ऐसा महत्वपूर्ण कारक है जो देश के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विकास की दिशा को निर्धारित करता है। एक साक्षर आबादी न केवल व्यक्तिगत सशक्तिकरण का आधार बनती है, बल्कि राष्ट्र के समग्र उत्थान के लिए भी आवश्यक है। इसी महत्व को समझते हुए, भारत सरकार ने समय-समय पर साक्षरता दर को बढ़ाने और शिक्षा के अवसरों का विस्तार करने के लिए विभिन्न कार्यक्रम और मिशन शुरू किए हैं। राष्ट्रीय साक्षरता मिशन (NLM) ऐसा ही एक महत्वपूर्ण प्रयास था, जिसने देश में कार्यात्मक साक्षरता के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
राष्ट्रीय साक्षरता मिशन (NLM) की स्थापना 5 मई, 1988 को की गई थी। इस मिशन का प्राथमिक लक्ष्य भारत के सभी नागरिकों, विशेष रूप से उन लोगों तक, जो औपचारिक शिक्षा प्रणाली से वंचित रह गए थे, कार्यात्मक साक्षरता को पहुंचाना था। कार्यात्मक साक्षरता का अर्थ केवल अक्षरों और शब्दों को पढ़ना-लिखना सीखना ही नहीं है, बल्कि उस ज्ञान और कौशल का उपयोग दैनिक जीवन की समस्याओं को हल करने, अपने अधिकारों और कर्तव्यों को समझने, तथा समाज में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए करना है। NLM का दृष्टिकोण केवल अकादमिक शिक्षा तक सीमित नहीं था, बल्कि इसका उद्देश्य नागरिकों को सूचना तक पहुँचने, निर्णय लेने और अपनी आवाज़ उठाने में सक्षम बनाना था।
NLM के शुभारंभ के पीछे कई प्रमुख कारण थे। स्वतंत्रता के बाद से ही भारत सरकार ने शिक्षा के प्रसार पर जोर दिया था, लेकिन साक्षरता दर में अपेक्षित वृद्धि हासिल करना एक चुनौती बनी हुई थी। विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों, महिलाओं और सामाजिक रूप से वंचित समुदायों में निरक्षरता की दर चिंताजनक थी। इन समूहों में साक्षरता का अभाव उन्हें गरीबी, शोषण और सामाजिक बहिष्कार के प्रति अधिक संवेदनशील बनाता था। NLM को इन कमियों को दूर करने और एक समावेशी समाज के निर्माण के उद्देश्य से डिजाइन किया गया था।
मिशन के तहत, लक्षित आयु वर्ग 15 से 35 वर्ष रखा गया था, क्योंकि माना जाता था कि इस आयु वर्ग के लोगों को कार्यात्मक साक्षरता प्रदान करना अधिक प्रभावी और व्यावहारिक होगा। हालांकि, इसके दायरे को धीरे-धीरे सभी आयु समूहों तक विस्तारित किया गया। NLM ने एक विकेन्द्रीकृत और सहभागी दृष्टिकोण अपनाया, जिसमें स्थानीय समुदायों, गैर-सरकारी संगठनों (NGOs), स्वयंसेवकों और स्वैच्छिक एजेंसियों की सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहित किया गया। इस सहभागिता का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि शिक्षा कार्यक्रम स्थानीय आवश्यकताओं और परिस्थितियों के अनुरूप हों।
NLM की कार्यप्रणाली में कई अभिनव तरीके शामिल थे। इसने 'साक्षरता कक्षाओं' का आयोजन किया, जो अक्सर शाम के समय या स्थानीय समुदायों के लिए सुविधाजनक समय पर आयोजित की जाती थीं। इन कक्षाओं में स्वयंसेवकों द्वारा पढ़ाए जाने वाले छोटे, केंद्रित मॉड्यूल का उपयोग किया जाता था। इन मॉड्यूलों में केवल अक्षर ज्ञान ही नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, स्वच्छता, परिवार नियोजन, पर्यावरण, महिला सशक्तिकरण और नागरिक अधिकारों जैसे विषयों को भी शामिल किया गया था। इसका उद्देश्य शिक्षार्थियों को जीवनोपयोगी कौशल प्रदान करना था।
NLM की सफलता को मापने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण 'जन शिक्षा' (People's Education) का विचार था। इसके तहत, साक्षरता कार्यक्रमों को न केवल सरकारी संस्थानों द्वारा संचालित किया गया, बल्कि उन्हें सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के साथ एकीकृत किया गया। नुक्कड़ नाटकों, लोकगीतों, कविताओं और अन्य सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों का उपयोग साक्षरता के संदेश को फैलाने और लोगों को सीखने के लिए प्रेरित करने हेतु किया गया। इसने शिक्षा को एक बोझिल प्रक्रिया के बजाय एक आनंददायक अनुभव बनाने का प्रयास किया।
NLM के प्रमुख उद्देश्यों में साक्षरता के साथ-साथ कार्यात्मक कौशल का विकास, समाज में महिलाओं की स्थिति में सुधार, तथा आर्थिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देना शामिल था। मिशन ने विशेष रूप से महिला साक्षरता पर ध्यान केंद्रित किया, क्योंकि यह माना जाता था कि एक साक्षर महिला पूरे परिवार और समुदाय को सशक्त बना सकती है। महिलाओं की साक्षरता दर में वृद्धि से स्वास्थ्य, पोषण और बच्चों की शिक्षा जैसे क्षेत्रों में भी सकारात्मक बदलाव देखे गए।
समय के साथ, NLM का विस्तार हुआ और इसके कार्यक्रमों को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए इसमें संशोधन भी किए गए। 2009 में, NLM को सर्व शिक्षा अभियान (SSA) और अन्य मौजूदा योजनाओं के साथ एकीकृत कर दिया गया, और एक नई योजना 'राष्ट्रीय प्रारंभिक शिक्षा अभियान' (RTE) के तहत इसे पुनर्गठित किया गया। हालांकि, NLM की भावना और इसके द्वारा स्थापित नींव आज भी भारत में शिक्षा के प्रसार के प्रयासों को प्रेरित करती है।
NLM की सफलता के आंकड़ों से पता चलता है कि इसके तहत लाखों लोगों को साक्षर बनाया गया, जिसने निश्चित रूप से देश की साक्षरता दर में वृद्धि में योगदान दिया। इसने न केवल निरक्षरता को कम किया, बल्कि लोगों में आत्मविश्वास, जागरूकता और सशक्तिकरण की भावना भी पैदा की। यह मिशन एक सतत प्रक्रिया का हिस्सा था, जिसका लक्ष्य भारत को एक पूर्ण साक्षर राष्ट्र बनाना है।
राष्ट्रीय साक्षरता मिशन जैसे कार्यक्रमों ने भारत में शिक्षा की पहुंच को व्यापक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन पहलों के माध्यम से, देश ने निरक्षरता की समस्या से निपटने और नागरिकों को ज्ञान और कौशल से लैस करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। क्या शिक्षा के इन प्रयासों को जारी रखने और इसे और अधिक समावेशी बनाने के लिए और किन रणनीतियों की आवश्यकता है?