Answer: अनुच्छेद 15
भारतीय संविधान, भारत का सर्वोच्च विधान है, जो शासन की रूपरेखा, सरकार के अंगों की शक्तियाँ, उनके कर्तव्य, नागरिकों के अधिकार, निर्देशक सिद्धांत और राज्य के नीति-निर्देशक तत्वों को परिभाषित करता है। यह दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान है, जिसे 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा द्वारा अपनाया गया था और 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था। संविधान का निर्माण एक लंबी और गहन प्रक्रिया का परिणाम था, जिसमें विभिन्न विचारों, बहसों और संशोधनों को शामिल किया गया था। यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के आदर्शों और आकांक्षाओं का प्रतीक है।
संविधान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मौलिक अधिकार हैं, जो नागरिकों को कुछ बुनियादी स्वतंत्रताएं और सुरक्षा प्रदान करते हैं। ये अधिकार किसी भी सरकारी हस्तक्षेप से सुरक्षित हैं और न्यायोचित हैं, जिसका अर्थ है कि यदि उनका उल्लंघन होता है तो नागरिक न्यायालय की शरण ले सकते हैं। मौलिक अधिकारों की सूची में समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार, सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार, और संवैधानिक उपचारों का अधिकार शामिल हैं। इन अधिकारों का उद्देश्य एक न्यायपूर्ण और समतावादी समाज का निर्माण करना है।
समानता का अधिकार, जो संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 तक विस्तृत है, भारतीय समाज के सभी वर्गों के लिए समान अवसर और व्यवहार सुनिश्चित करता है। इस अधिकार के तहत, विधि के समक्ष सभी समान हैं और विधियों का समान संरक्षण प्राप्त है। अनुच्छेद 15 विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर किसी भी प्रकार के भेदभाव को पूरी तरह से प्रतिबंधित करता है। यह अनुच्छेद इस सिद्धांत पर आधारित है कि प्रत्येक नागरिक समान है और किसी भी आधार पर उसके साथ असमान व्यवहार नहीं किया जा सकता।
अनुच्छेद 15 में कहा गया है कि राज्य किसी भी नागरिक के विरुद्ध केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा। इसका तात्पर्य है कि सार्वजनिक स्थानों, सरकारी सेवाओं, शिक्षा संस्थानों, या किसी अन्य सार्वजनिक सुविधा के उपयोग में कोई भी भेदभाव नहीं होगा। यह एक क्रांतिकारी प्रावधान था जिसने सदियों से चली आ रही सामाजिक असमानताओं को दूर करने का मार्ग प्रशस्त किया। विशेष रूप से, जाति व्यवस्था और लिंग आधारित भेदभाव को समाप्त करने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
इस अनुच्छेद के चार खंड हैं। पहला खंड, जैसा कि ऊपर बताया गया है, सामान्य निषेध की बात करता है। दूसरा खंड बताता है कि केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर कोई भी नागरिक दुकानों, सार्वजनिक भोजनालयों, होटलों और सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों तक पहुँच से वंचित नहीं किया जाएगा। तीसरा खंड यह स्पष्ट करता है कि महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान किए जा सकते हैं, जिसका अर्थ है कि कुछ सकारात्मक कार्रवाई की जा सकती है जो लैंगिक समानता के व्यापक लक्ष्य को बढ़ावा देती है। उदाहरण के लिए, महिलाओं के लिए आरक्षण या विशेष सुरक्षा कानून।
चौथा खंड सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए विशेष प्रावधानों की अनुमति देता है। इसमें अनुसूचित जातियों (SC), अनुसूचित जनजातियों (ST) और अन्य पिछड़े वर्गों (OBC) के लिए शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण जैसी नीतियां शामिल हैं। ये प्रावधान ऐतिहासिक असमानताओं को दूर करने और इन समुदायों को समाज की मुख्यधारा में लाने के उद्देश्य से किए गए हैं। हालांकि, इन प्रावधानों की व्याख्या और कार्यान्वयन को लेकर अक्सर बहसें होती रहती हैं।
अनुच्छेद 15 का उद्देश्य एक ऐसे समाज का निर्माण करना है जहाँ प्रत्येक व्यक्ति को उसकी योग्यता और क्षमता के आधार पर समान अवसर मिले, न कि उसके जन्म या पृष्ठभूमि के आधार पर। यह भारत को एक धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी और लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने के संवैधानिक वादे को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारतीय न्यायपालिका ने भी समय-समय पर विभिन्न मामलों में अनुच्छेद 15 की व्याख्या करते हुए इसके दायरे को स्पष्ट किया है और यह सुनिश्चित किया है कि इसका प्रभावी ढंग से पालन हो।
उदाहरण के लिए, विभिन्न अदालती फैसलों ने यह स्पष्ट किया है कि 'भेदभाव' शब्द का अर्थ केवल प्रत्यक्ष भेदभाव नहीं है, बल्कि अप्रत्यक्ष भेदभाव भी शामिल है। साथ ही, 'सार्वजनिक स्थान' की परिभाषा को भी व्यापक रूप से समझा गया है, जिसमें निजी स्वामित्व वाले स्थान भी शामिल हो सकते हैं यदि वे जनता के लिए खुले हों। अनुच्छेद 15 की भावना यह है कि सभी नागरिक समान रूप से गरिमा और सम्मान के पात्र हैं।
हालांकि, अनुच्छेद 15 ने भारत में समानता लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लेकिन सामाजिक असमानताओं और भेदभाव के मुद्दे अभी भी पूरी तरह से समाप्त नहीं हुए हैं। विभिन्न समुदाय आज भी विभिन्न रूपों में भेदभाव का अनुभव करते हैं। यह भारतीय संविधान की एक सतत चुनौती है कि वह इन सामाजिक बुराइयों से लड़ता रहे और सभी नागरिकों के लिए वास्तविक समानता सुनिश्चित करे। यह अनुच्छेद एक शक्तिशाली औजार है, लेकिन इसका प्रभावी कार्यान्वयन और समाज की सोच में बदलाव आवश्यक है।
अंततः, अनुच्छेद 15 भारतीय संविधान के उन मूल सिद्धांतों में से एक है जो भारत को एक समावेशी और समतावादी राष्ट्र बनाने की दिशा में मार्गदर्शन करता है। यह न केवल कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है, बल्कि एक ऐसी सामाजिक चेतना को भी बढ़ावा देता है जहाँ विविधता को महत्व दिया जाता है और किसी भी आधार पर किसी के साथ अन्याय नहीं होता। इस अनुच्छेद की प्रासंगिकता आज भी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी कि संविधान लागू होने के समय थी। क्या हम वास्तव में अपने समाज में धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग और जन्मस्थान से परे जाकर सभी व्यक्तियों को समान सम्मान और अवसर प्रदान करते हैं?